राज्यों द्वारा बनाए जाने वाले कानूनों पर बहस आवश्यक

Edited By ,Updated: 27 Sep, 2021 03:47 AM

debate needed on laws to be made by states

भारत ग्रेट ब्रिटेन द्वारा जारी कॉमन लॉ की प्रणाली का अनुसरण करता है। हालांकि भारत ने एक स्वतंत्र राष्ट्र होने के नाते अपने कानून में नयापन लाने की कोशिश की और इसमें से एक साबित करने की जिम्मेदारी को पलटना शामिल है। भारत में अनेकों आपराधिक कानूनों...

भारत ग्रेट ब्रिटेन द्वारा जारी कॉमन लॉ की प्रणाली का अनुसरण करता है। हालांकि भारत ने एक स्वतंत्र राष्ट्र होने के नाते अपने कानून में नयापन लाने की कोशिश की और इसमें से एक साबित करने की जिम्मेदारी को पलटना शामिल है। भारत में अनेकों आपराधिक कानूनों तथा विशेषकर वे कानून जो 2014 के बाद अस्तित्व में आए, उनमें साबित करने की जिम्मेदारी को पलटा गया है। इसका मतलब यह है कि यहां पर दोष की संभावना है।सरकार मानती है कि आपने कुछ गलत किया है और खुद को बेगुनाह साबित करना होगा। 

साधारण आपराधिक कानून का यह बिल्कुल विपरीत ढंग है। मिसाल के लिए यदि कोई एक शव के साथ चाकू को पकड़े पाया जाता है तो यह सरकार के लिए है कि वह यह साबित करे कि व्यक्ति ने हत्या को अंजाम दिया है। हालांकि यहां पर ऐसे कानून भी हैं जिनमें सरकार दोष की धारणा के साथ शुरूआत करती है। ऐसी एक मिसाल में असम में नैशनल रजि. ऑफ सिटीजन्स शामिल हैं। 

असम में सभी को सरकारी दस्तावेजों को प्रस्तुत करना था जिनमें यह दर्शाना था कि उनके पूर्वज 1971 से पहले नागरिक के तौर पर असम में रहते थे जो सरकारी ट्रिब्यूनलों के समक्ष नहीं आए तथा प्रमाणित किया कि वे वैध हैं। यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उन्हें जेलों में बंद कर दिया गया। आज इसी के चलते जेलों में सैंकड़ों लोग बंद हैं और ज्यादा जेलों का निर्माण किया जा रहा है। ब्रिटिश कानूनों का कहना है कि  जहां एक ओर प्रतिवादी पर कानूनी तौर पर साबित करने की जिम्मेदारी है तो उन्हें उचित संदेह से परे मुद्दे को साबित करने की जरूरत नहीं। भारत में कानून ऊंचा है और यह बात हम असम तथा अन्य क्षेत्रों में देख सकते हैं। 

भारत ने अनेकों भाजपा शासित राज्यों में धार्मिक कानूनों की स्वतंत्रता का कानून बनाया है। धर्मांतरण के लिए साबित करने की जिम्मेदारी को पलटा गया है। कानून को पहली बार 2018 में उत्तराखंड में पास किया गया था तथा उसके बाद हिमाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट 2019 लाया गया। फिर उसके बाद उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म समपरिवर्तन प्रतिषेद अध्यादेश, 2020 (धार्मिक अध्यादेश के गैर-कानूनी धर्मांतरण निषेद), मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रीय अध्यादेश, 2020 (धार्मिक अध्यादेश की स्वतंत्रता) तथा गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलिजन (संशोधन) एक्ट, 2021 लाया गया। यह कानून हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच शादी का अपराधीकरण करते हैं। कानूनों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति शादी के बाद या पूर्व धर्म परिवर्तन करता है तो सरकार शादी को अमान्य घोषित करती है। ऐसा बच्चों के होने के बावजूद भी किया जाता है। साबित करने की जिम्मेदारी दर्शाती है कि धर्मांतरण कोई धोखाधड़ी नहीं है। सरकार को भेजे गए एक निवेदन के बिना अपना धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों को जेल में भेजा जाता है। इन कानूनों के बारे में एक अन्य विचित्र बात यह है कि यह हिंदुओं पर लागू नहीं होते। 

हिमाचल प्रदेश में मूल कानून का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति अपने पूर्व के धर्म में वापस लौटता है तो इसे धर्मांतरण नहीं माना जाना चाहिए। यह कानून पैतृक कानून का उल्लेख नहीं करते मतलब यह कि यह कानून स्पष्ट है। जो लोग ङ्क्षहदू धर्म में परिवर्तित नहीं होते उन्हें सजा नहीं मिलेगी। पिछले वर्ष सी.ए.ए. प्रदर्शनों के दौरान 21 प्रदर्शनकारियों को यू.पी. पुलिस के गोली मारे जाने के बाद उत्तर प्रदेश रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट 2020 बनाया गया। यह कानून राज्य सरकार को सरकारी सम्पत्ति को क्षतिग्रस्त करने वाले कथित लोगों पर जुर्माना करने का अधिकार देता है। इसके अलावा ऐसे लोगों के घरों तथा उनकी सम्पत्तियों को जब्त करने का अधिकार भी देता है और यदि अपराधी ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश होने में असमर्थ होता है तो अटैचमैंट के लिए निर्देश पास किए जा सकते हैं जिनके बारे में कोई भी अपील नहीं की जा सकती। 

2014 के बाद और कानून अस्तित्व में आए जिनमें गौहत्या पर साबित करने की जिम्मेदारी को पलटना भी है। ऐसे कानूनों को भाजपा शासित राज्य सरकारों ने भी पारित किया। इनमें महाराष्ट्र एनिमल प्रिजर्वेशन (अमैंडमैंट) एक्ट, 2015, हरियाणा गौवंश संरक्षण एवं गौ संवर्धन एक्ट, 2015, गुजरात एनिमल प्रिजर्वेशन (अमैंडमैंट) एक्ट, 2017 तथा कर्नाटक प्रिवैंशन ऑफ स्लाटर एंड प्रिजर्वेशन ऑफ कैटल शामिल हैं। 

गौहत्या के लिए गुजरात में सजा एक आॢथक अपराध है क्योंकि इसका मकसद पशुपालन का संरक्षण करना है। इस कानून के तहत इसके लिए आपको उम्र भर जेल में रहना पड़ सकता है। कोई भी आॢथक अपराध इस सजा को नहीं सुनाता। 2019 में एक नए कानून के तहत एक मुसलमान व्यक्ति को 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई। उस पर अपनी बेटी की शादी पर बीफ परोसे जाने का अपराध था। हालांकि पुलिस यह साबित नहीं कर पाई कि आखिर ऐसा हुआ है। उस मामले में जज ने कहा कि यह व्यक्ति पर है कि वह साबित करे कि वह निर्दोष था क्योंकि खाया गया खाना टैस्ट नहीं किया जा सकता था इसलिए यह साबित नहीं हो सका और कोर्ट ने व्यक्ति को जेल भेज दिया। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने अपने पूर्व के रूप में जनसंघ के तौर पर निवारक निरोध कानूनों का विरोध किया था मगर आज यह ऐसे कानूनों की चैम्पियन है। दूसरी बात नोट करने वाली यह है कि दोष की अवधारणा कानूनों की गिनती 2014 के बाद से बढ़ी है मगर उसका कोई विरोध नहीं हुआ और न ही उन पर कोई बहस ही हुई कि क्या हमारे पास ऐसे कानून होने चाहिएं या नहीं।-आकार पटेल

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