विकट अर्थव्यवस्था के बावजूद चमक-दमक रहा सोने का बाजार

Edited By ,Updated: 03 Jul, 2022 05:26 AM

despite the troubled economy the gold market was shining

1 जुलाई  से सोने के आयात पर कस्टम ड्यूटी 10.75 से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने के पीछे सरकार की मंशा है कि सोने की भारतीय दीवानगी से मोटी कमाई कर ली जाए। महामारी के बाद भारत

1 जुलाई  से सोने के आयात पर कस्टम ड्यूटी 10.75 से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने के पीछे सरकार की मंशा है कि सोने की भारतीय दीवानगी से मोटी कमाई कर ली जाए। महामारी के बाद भारत में 2020 के मुकाबले बीते साल सोने की खपत 78 फीसदी से ज्यादा बढ़कर रिकॉर्ड 800 टन के करीब पहुंच गई थी। हर ओर घोर मंदी का आलम है, बढ़ती बेरोजगारी ने हालात बदतर कर दिए हैं, देश की अर्थव्यवस्था विकट परिस्थितियों से गुजर रही है, बावजूद इनके कैसे चमक-दमक रहा है सोने का बाजार? सरकार की नजर सोने पर पड़ गई है। सो, सोने के बढ़ते आयात को थामने के लिए 1 जुलाई से कस्टम ड्यूटी 10.75 से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दी गई है। इससे रातों-रात सोने का भाव करीब 1,200 रुपए प्रति 10 ग्राम बढ़ गया। 

वैसे, सोने पर कस्टम ड्यूटी पहले 7.5 प्रतिशत थी, जो 12.5 प्रतिशत कर दी गई। इस पर 2.5 प्रतिशत एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डिवैल्पमैंट सैस वसूला जाता था, जिसे मिलाकर कस्टम ड्यूटी का कुल भार 15 प्रतिशत बैठता है। बताते हैं कि विगत मई में भारत में 107 टन सोना आयात हुआ, और जून में भी कम नहीं था। फॉरेन ट्रेड डाटा के मुताबिक पिछले साल मई के मुकाबले इस मई में भारत में 789 फीसदी ज्यादा सोना आयात के रास्ते से आया। 

अब बढ़े आयात शुल्क के पीछे सरकार की मंशा है कि भारतीयों को सोने का आयात करने/खरीदने के लिए हतोत्साहित किया जाए। वर्ना कस्टम ड्यूटी से मोटी कमाई कर ली जाए। भारतीय स्वर्ण इतिहास बताता है कि सोने की खरीदारी पर अंकुश लगाने के जब-जब प्रयास हुए, सोने की खपत उलटा ज्यादा तेज़ी से बढ़ती गई। वल्र्ड गोल्ड काऊंसिल के ताजा आंकड़े जाहिर करते हैं कि भारत में सोने की खरीदारी निरंतर छलांगें लगा रही है। बीते साल 2021 में भारतीयों ने रिकॉर्ड 797.3 टन सोना खरीदा। सोने की इस खपत में 610.9 टन सोने के गहने सम्मिलित हैं। खास बात है कि यह 2020 की भारतीय स्वर्ण खपत 446.4 टन (315.9 टन गहने मिलाकर) से 78.6 फीसदी उछाल है। इतनी बढ़त तो दुनिया के सबसे बड़े स्वर्ण खरीदार चीन की खपत में भी नहीं हुई। 

उल्लेखनीय है कि सोने की खपत के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर बीते बीस साल से बना हुआ है। इससे पहले 1990 के दशक में भारत पहले नंबर पर था। आंकड़े बताते हैं कि 2021 में चीन में 1120.9 टन सोने की खपत हुई, जबकि 2020 में लॉकडाऊन के चलते खपत 820.98 टन तक गिरकर करीब 36 फीसदी उठी थी। दसेक साल पहले 2011 में चीन में सोने की 761.05 टन खपत हुई थी। 

दुनिया भर के देशों में चीन के बाद दूसरे नंबर पर सोने की खपत भारत में हो रही है। वल्र्ड गोल्ड काऊंसिल के आंकड़ों के मुताबिक यह ट्रैंड 1990 से फैलता गया है। भारत में 1990 में 240 टन, फिर पांच साल बाद 1995 में करीब दोगुनी 477 टन सोने की खपत हुई। अगले पांच साल बाद सदी के अंत तक सोने की खपत 1000 टन से अधिक हो गई। लेकिन आबादी के लिहाज से, टनोंटन सोने की खपत के बावजूद प्रति व्यक्ति औसत बेहद नीची बैठती है। अंदाजा है कि भारत में हर साल केवल 9 प्रतिशत वयस्क सोना खरीदते हैं और प्रति व्यक्ति सोने की खपत महज 0.89 ग्राम से कम बैठती है। 

भारत में, 1990 के दशक में सोने की बढ़ी खरीदारी और सोने की ललक के पीछे प्रमुख कारण रहा है स्वर्ण नियन्त्रण कानून का हटना। स्वर्ण नियंत्रण कानून चमकते-दमकते कारोबार में बाधक बना रहा। सोने पर सरकारी रोक-टोक हटने के बाद उपभोक्ताओं के चयन का दायरा बढ़ा, जिससे खुलेआम दुकानों में ही नहीं, बैंकों तक में सोने के बिस्कुट, छड़ें और सिक्के बिकने लगे। सोने के 10 तोले (116.64 ग्राम) के बिस्कुट स्विट्जरलैंड, कनाडा वगैरह से आने लगे और खुलेआम बिकने लगे। 

देश में, सोने के भाव की उठापटक सोने के अंतर्राष्ट्रीय भाव, डॉलर की रुपए में तुलनात्मक कीमत, शेयर बाजार और शादी ब्याह के सीजन पर डिमांड पर निर्भर करती है। फरवरी 1996 में, सोना बीती सदी के सबसे ऊंचे भाव 5,800 रुपए प्रति 10 ग्राम पर बिका। आजादी के बाद 1950 में सोने का भाव करीब 100 रुपए प्रति 10 ग्राम था। सोने की खपत थामने की तरह शुरू से ही जब-जब सरकार ने सोने के भाव को कम करने के लिए कदम उठाए, तब-तब सोना उछलता गया।

स्मरणीय है कि 1962 में तत्कालीन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई द्वारा स्वर्ण नियंत्रण कानून लागू किया गया। उस समय सोने का भाव 160 रुपए प्रति 10 ग्राम था, जो 10 वर्षों के बाद 1977 में 595 रुपए प्रति 10 ग्राम हो गया। सन 1977 में जनता सरकार ने सरकारी खजाने में पड़े स्वर्ण भंडार की नीलामी कर दी। फिर तो सोने के भाव ऐसे बढ़े कि रुकने का नाम नहीं लिया। नवम्बर 1987 में सोने का भाव बढ़ते-बढ़ते 2600 रुपए प्रति 10 ग्राम हो गया। 

बीती सदी के नब्बे के दशक में खाड़ी युद्ध छिडऩे से सोना 4000 रुपए को छू गया। फिर 1990 में केन्द्रीय बजट पेश करते हुए जनता मोर्चा सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री मधु दंडवते ने स्वर्ण नियन्त्रण कानून समाप्त करने की घोषणा क्या की, तीन दिनों के भीतर सोने के भाव 400 रुपए प्रति 10 ग्राम तक गिरे। सोना फिर बढ़ता गया। लेकिन 2020 के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के बहाने सोने के भाव अब तक के सबसे ऊंचे 54,000 रुपए प्रति 10 ग्राम के सातवें आसमान पर चढ़ गए। वैसे, फिलहाल भाव 52,500 से 55,000 रुपए प्रति 10 ग्राम के बीच डोलने की उम्मीद है। जाहिर होता है कि कोविड 19 महामारी के बीच सोना सबसे सुरक्षित इन्वैस्टमैंट बनकर उभरा। इसीलिए अब हमारी सरकार को लगा है कि भारतीयों की इस दीवानगी से मोटी कमाई की जा सकती है।-अमिताभ एस. 
 

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