देश के भविष्य, स्वरूप और सामाजिक ढांचे को तय करेंगे चुनाव

Edited By Updated: 21 May, 2024 05:44 AM

elections will decide the future form and social structure of the country

न्यायपालिका, चुनाव आयोग और मीडिया के सरकारी दबाव से मुक्त स्वतंत्रता, निष्पक्षता और मानक प्रक्रिया किसी भी लोकतांत्रिक ढांचे के स्वस्थ कामकाज के लिए एक आवश्यक और बुनियादी शर्त है। इसके विपरीत यदि ये संस्थाएं दबाव या किसी प्रलोभन में आकर सत्ता...

न्यायपालिका, चुनाव आयोग और मीडिया के सरकारी दबाव से मुक्त स्वतंत्रता, निष्पक्षता और मानक प्रक्रिया किसी भी लोकतांत्रिक ढांचे के स्वस्थ कामकाज के लिए एक आवश्यक और बुनियादी शर्त है। इसके विपरीत यदि ये संस्थाएं दबाव या किसी प्रलोभन में आकर सत्ता प्रतिष्ठान यानी तत्कालीन सरकार से समझौता कर संवैधानिक आवश्यकताओं और नैतिक मूल्यों का उल्लंघन करती हैं तो ऐसे ढांचे को ध्वस्त कर देना चाहिए। यदि ऐसा हुआ तो लोकतंत्र के इन स्तंभों समेत पूरे समाज को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। लोगों की राजनीतिक व्यवस्था के लिए बड़े खतरे तब सामने आते हैं जब पूरी संरचना सामाजिक-आर्थिक संकटों से घिर जाती है और चतुर्भुज संकट के परिणामस्वरूप वामपंथी और प्रगतिशील ताकतें लोगों की अशांति का मार्गदर्शन करने में असमर्थ हो जाती हैं। 

आम लोग भूख-गरीबी, महंगाई-बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, दमन और अफरा-तफरी जैसी मुसीबतों के अलावा अवसाद और अन्य मानसिक विकारों के भी शिकार थे। इन परिस्थितियों में इटली, जर्मनी, जापान आदि देशों में फासीवाद का सूर्य उदय हुआ।भारत के 2024 के लोकसभा चुनाव को बाहरी रूप में लोकतांत्रिक व्यवस्था के अस्तित्व का प्रमाण कहा जा सकता है। यह समझ आंशिक रूप में सही कही जा सकती है। हालांकि, गंभीर आॢथक परिस्थितियों में ये लोकसभा चुनाव हो रहे हैं और वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था (पूंजीवादी) की कट्टर आलोचक और शत्रु आर.एस.एस. की अनुयायी भाजपा, सत्तारूढ़ दल के रूप में इन परिस्थितियों को समझ चुकी है। 

जन-समर्थक दृष्टिकोण से उचित परिप्रेक्ष्य, सुलह की बजाय, सरकार साम्राज्यवादी लुटेरों और उनके मिलीभगत वाले कॉर्पोरेट घरानों के पक्ष में देश के भाग्य को गढऩे की कोशिश कर रही है इससे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। सत्तारूढ़ दल प्रतिगामी और सांप्रदायिक प्रचार के माध्यम से और पक्षपाती  मीडिया की अप्रत्यक्ष भूमिका के माध्यम से, अपार धन और मानव संसाधनों का उपयोग करके इन चुनावों को जीतने के लिए हर चाल आजमा रहा है। भारत का चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाने की बजाय सत्ताधारी दल का पक्ष लेता नजर आ रहा है। हमारे प्रिय मोदी जी द्वारा मतदाताओं को धोखा देने के लिए न केवल धर्म का खुलेआम दुरुपयोग किया जा रहा है, बल्कि अपने निम्नस्तरीय भाषणों से उन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को भी धूमिल किया है। 

भारत का चुनाव आयोग, जिसने चुनाव की तारीखों की घोषणा करते समय निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए भारत के संविधान के प्रति अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता की घोषणा की थी, अब यह मूकदर्शक बनकर देख रहा है। विपक्षी दलों द्वारा सत्तारूढ़ दल के खिलाफ की गई चुनाव आचार संहिता के घोर उल्लंघन की शिकायतों को नजरअंदाज किया जा रहा है। विपक्षी दलों के नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने रूखा जवाब देते हुए यहां तक कहा, ‘‘राजनीतिक दलों को इन शिकायतों के निवारण की तारीख तय करने या की गई किसी भी शिकायत के संबंध में की जाने वाली किसी भी संभावित कार्रवाई के बारे में सूचित नहीं किया गया है।’’ प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों के बारे में चुनाव आयोग को की गई शिकायत के जवाब में चुनाव आयोग प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए जहरीले, भड़काऊ और सांप्रदायिक घृणा वाले भाषणों का उचित नोटिस लेने में विफल रहा है। 

बांसवाड़ा (राजस्थान) की एक चुनावी रैली में भाजपा के ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’ जे.पी. नड्डा ने साफ कहा है, ‘‘प्रधानमंत्री द्वारा कांग्रेस पार्टी को ङ्क्षहदू विरोधी कहना बिल्कुल सही है, क्योंकि कांग्रेस नेता अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा में शामिल नहीं हुए थे।’’ अपने जवाब में भाजपा अध्यक्ष ने कांग्रेस पार्टी की तुलना मुस्लिम लीग से करने की भी हिम्मत दिखाई। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं, जहां चुनाव के दौरान भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए बेहद आपत्तिजनक बयानों को नजरअंदाज किया गया और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के नेताओं को हर तरह से परेशान किया गया और उनकी छवि को देश की नजर में खराब करने की कोशिश की गई। चुनाव आयोग के इन एकतरफा और असंवैधानिक कृत्यों से इस संस्था की गरिमा को काफी ठेस पहुंची है और आम लोगों के मन में इस कार्यशैली और पारदर्शिता को लेकर गंभीर संदेह पैदा हो गया है। यह पहला चुनाव है जिसमें फेसबुक, ट्विटर (एक्स), इंस्टाग्राम आदि सोशल मीडिया साइट्स पर तीनों चुनाव आयुक्तों का मजाक उड़ाया जा रहा है। खासकर अखबारों और पत्रिकाओं ने भी चुनाव आयोग के खराब प्रदर्शन के बारे में संपादकीय लिखे हैं। 

‘गोदी मीडिया’ कहे जाने वाले भाजपा समर्थक टी.वी. चैनलों ने पत्रकारिता के गिरते स्तर के विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े बड़ी संख्या में टी.वी. चैनलों के ज्यादातर एंकर, पत्रकार और समाचार प्रसारक लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के प्रवक्ता की तरह व्यवहार कर रहे हैं। राजनीतिक बहसों के दौरान टी.वी. एंकरों द्वारा भारतीय समाज की हर बुराई के लिए अल्पसंख्यकों खासकर पूरे मुस्लिम समुदाय को जिम्मेदार ठहराकर हर मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। विपक्षी दलों के नेताओं के जटिल सवालों, संतुलित राय और गंभीर शंकाओं का पर्याप्त जवाब सत्ताधारी दल के प्रतिनिधियों या प्रवक्ताओं से मांगने के बजाय उलटा सवाल पूछने वालों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। सरकारी दबाव में काम कर रहे चुनाव आयोग ने ऐसे टी.वी. चैनलों या एंकरों से स्पष्टीकरण तक नहीं मांगा। 

मीडिया को सरकार की निंदा करने की बजाय, उसकी नीतियों का निष्पक्ष विश्लेषक होना चाहिए और इन नीतियों के कारण लोगों को होने वाली समस्याओं को उजागर करने के लिए तैयार रहना चाहिए। जिस दिन सरकार, मीडिया और न्यायपालिका ये तीन संस्थाएं एक हो गईं और एक-दूसरे की सहयोगी बन गईं, समझो उस दिन जनता की राजनीतिक व्यवस्था दफन हो गई। लोकतंत्र को पूरी तरह से धनकुबेरों का शिकार बनाने वाली असंवैधानिक चुनावी बॉन्ड योजना को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सर्वसम्मति से न केवल खारिज कर दिया, बल्कि सरकार को इस योजना के माध्यम से विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अर्जित कुल धन का पूरा विवरण देने का भी निर्देश स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को दिया, जिसे सरकार और बैंक किसी भी हालत में नहीं देना चाहते थे। इस फैसले से भारतीय जनता के मन में न्याय व्यवस्था और सुप्रीम कोर्ट के प्रति सम्मान और विश्वास बहाल हुआ है। 

इस साहसिक निर्णय से भाजपा सरकार द्वारा किए जा रहे झूठे दावों और तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाइयों की पोल खुल गई है, जिसके कारण लोग चुनावी बांड योजना को आधुनिक समय का सबसे बड़ा घोटाला मान रहे हैं। 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे देश के भविष्य के स्वरूप, राजनीतिक और सामाजिक ढांचे को बहुत प्रभावित करेंगे, इसलिए सभी देशवासियों को उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा।-मंगत राम पासला

Related Story

    Trending Topics

    IPL
    Royal Challengers Bengaluru

    190/9

    20.0

    Punjab Kings

    184/7

    20.0

    Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

    RR 9.50
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!