अंतरिम बजट से गायब हुआ किसान

Edited By ,Updated: 06 Feb, 2024 05:43 AM

farmer missing from interim budget

सरकार द्वारा चुनाव से 2 महीने पहले प्रस्तुत अंतरिम बजट से यूं तो किसानों ने कोई बड़ी उम्मीद नहीं बांधी थी।

सरकार द्वारा चुनाव से 2 महीने पहले प्रस्तुत अंतरिम बजट से यूं तो किसानों ने कोई बड़ी उम्मीद नहीं बांधी थी। लेकिन कृषि संकट को देखते हुए किसानों को कुछ न्यूनतम अपेक्षाओं का अधिकार था। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उस हल्की-सी उम्मीद पर भी पानी फेर दिया। अपने भाषण में किसान का नाम तो कई बार लिया, लेकिन इस अंतरिम बजट में उसे अंतरिम राहत भी नहीं दी। न पैसा दिया और न ही कृषि क्षेत्र का पूरा सच ही देश के सामने रखा। उलटे कृषि और प्रमुख योजनाओं का बजट भी घटा दिया। 

बजट से 2 दिन पहले संसद में प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा दस्तावेज यह रेखांकित करता है कि इस वर्ष कृषि क्षेत्र में वृद्धि (ग्रॉस वैल्यू एडेड दर) केवल 1.8 प्रतिशत हुई है।  यह दर पिछले वर्षों के कृषि वृद्धि की औसत दर की आधी भी नहीं है और इस वर्ष बाकी सब क्षेत्र में हुई वृद्धि का एक चौथाई के बराबर है। इसलिए किसानों और कुछ कृषि विशेषज्ञों की उम्मीद थी कि सरकार इस संकट को देखते हुए कुछ अंतरिम राहत देगी। किसान सम्मन निधि की राशि 5 साल पहले 6000 सालाना तय हुई थी, आज उसकी कीमत 5000 से भी कम रह गई है। ऐसी चर्चा थी कि सरकार इसे बढ़ाकर 9000 सालाना कर देगी।

अभी भूमिहीन और बटाईदार किसान इस योजना की परिधि से बाहर हैं। उन्हें इसमें शामिल करने की आशा थी। कम से कम इतनी उम्मीद तो थी ही कि सरकार इस योजना के लाभार्थी किसानों की संख्या में गिरावट को रोकेगी। अफसोस की बात यह है कि इस योजना की राशि या लाभाॢथयों की संख्या बढ़ाने की बजाय वित्त मंत्री ने पूरा सच भी संसद के सामने नहीं रखा। उन्होंने इस योजना के लाभाॢथयों की संख्या 11.8 करोड़ बताई जबकि सरकार के अपने आंकड़े के मुताबिक नवंबर 2023 में दी गई अंतिम किस्त केवल 9.08 करोड़ किसानों को गई है। यही नहीं उन्होंने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लाभार्थी किसानों की संख्या 4 करोड़ बताई जबकि सरकार के अपने आंकड़े केवल 3 करोड़ 40 लाख की संख्या दर्शाते हैं। 

पिछले साल की तरह इस साल भी वित्त मंत्री ने इस सरकार द्वारा किसानों को किए गए सबसे बड़े वायदे और दावे के बारे में चुप्पी बनाए रखी। वर्ष 2016 के बजट से पहले प्रधानमंत्री ने 6 वर्ष में किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा किया था। यह अवधि फरवरी 2022 में पूरी हो गई। सरकार ने इसे खींचकर 2023 किया। लेकिन 7 वर्ष तक आय डबल करने की डुगडुगी बजाने के बाद सरकार ने इस पर पूरी तरह चुप्पी बना ली। पिछले और इस बजट में इस जुमले का जिक्र भी नहीं हुआ, न ही सरकार ने यह आंकड़ा बताया कि किसान की आय आखिर कितनी बढ़ी या घटी। अर्थशास्त्रियों के अनुमान बताते हैं कि इन 7 सालों में किसानों की आमदनी उतनी भी नहीं बढ़ी जितनी कि पिछली सरकार के आखिरी 7 सालों में बढ़ी थी। 

देश के सभी किसान संगठन पिछले 2 वर्ष से एम.एस.पी. को कानूनी दर्जा दिए जाने का इंतजार कर रहे हैं। दिल्ली में किसान मोर्चा उठते वक्त सरकार ने किसानों को लिखित आश्वासन दिया था कि इस उद्देश्य के लिए एक कमेटी बनाकर सभी किसानों को एम.एस.पी. सुनिश्चित की जाएगी लेकिन आंदोलन समाप्त होने के 2 वर्ष बाद भी कमेटी ने सुचारू रूप से काम करना भी शुरू नहीं किया है। ऊपर से वित्त मंत्री ने यह दावा भी जड़ दिया कि किसानों को पर्याप्त एम.एस.पी. मिल रही है यानी कि सरकार का इसमें सुधार करने का कोई इरादा भी नहीं है। सच यह है कि इस सरकार के 10 वर्ष में 23 में से 21 फसलों में एम.एस.पी. वृद्धि की दर उतनी भी नहीं रही जितनी कि पिछली यू.पी.ए. सरकार के 10 वर्ष में रही थी। 

वित्त मंत्री ने किसानों के लिए गाजे-बाजे के साथ की गई बड़ी योजनाओं की प्रगति रिपोर्ट भी नहीं रखी। वर्ष 2020 में सरकार ने एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के नाम से 1 लाख करोड़ रुपए की योजना की घोषणा की थी जिसे 5 साल में पूरा किया जाना था। अब 4 साल बीतने के बाद उसे योजना में 22,000 करोड़ यानी एक चौथाई से भी कम फंड आबंटित हुआ है। इसी तरह ऐसा लगता है कि एग्रीकल्चर एक्सीलेरेटर फंड  पर ब्रेक लग गई है। सरकार की घोषणा पांच साल में 2516 करोड़ रुपए की थी, लेकिन अब तक सिर्फ 106 करोड़ आबंटित हुए हैं। 

किसी को कुछ देना तो दूर की बात है, दरअसल सरकार ने इस बजट में किसान का हिस्सा छीन लिया है। पिछले चुनाव से पहले किसान सम्मन निधि की घोषणा के बाद देश के कुल बजट में कृषि बजट का हिस्सा 5.44 प्रतिशत था। पिछले 5 सालों में यह अनुपात हर वर्ष घटता गया है। पिछले साल कुल बजट का 3.20 प्रतिशत कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए प्रस्तावित था, लेकिन संशोधित अनुमान के हिसाब से वास्तविक खर्च 3.13 प्रतिशत ही हुआ। इस साल के बजट अनुमान में इसे और घटाकर 3.08 प्रतिशत कर दिया गया है। 

यह कोई छोटी कटौती नहीं है मसलन खाद की सबसिडी पिछले साल में हुए 1.88 लाख करोड़ के खर्चे से घटकर 1.64 लाख करोड़ कर दी गई है, खाद्यान्न सबसिडी 2.12 लाख करोड़ के खर्चे से घटकर 2.05 लाख करोड़ और आशा योजना का खर्च 2200 करोड़ से घटकर 1738 करोड़ कर दिया गया है। राज्यों को सस्ती दाल देने की योजना का आबंटन शून्य कर दिया गया है। मतलब कि पिछले 10 वर्ष की तरह इस साल भी किसानों को बड़े-बड़े शब्द और बड़ा-सा धोखा मिला है। इसीलिए संयुक्त किसान मोर्चा ने आगामी लोकसभा चुनाव में देश भर के किसानों को ‘भाजपा हराओ’ का नारा दिया है।-योगेन्द्र यादव
 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!