राष्ट्र निर्माण से जुड़े रहे गांधीवादी डा. जयदेव

Edited By Updated: 21 Nov, 2023 04:55 AM

gandhian dr jaidev remained associated with nation building

यह राष्ट्र निर्माण क्या है? कैसे होता है? कौन करता है? डाक्टर जयदेव के देहांत और अम्बाला में उनकी स्मृति सभा में शामिल होने के बाद से मैं इन सवालों से उलझ रहा हूं। ‘राष्ट्र्र निर्माण’ जैसा शब्द हमारे मानस पटल पर बड़े राष्ट्रीय नेताओं की तस्वीर...

यह राष्ट्र निर्माण क्या है? कैसे होता है? कौन करता है? डाक्टर जयदेव के देहांत और अम्बाला में उनकी स्मृति सभा में शामिल होने के बाद से मैं इन सवालों से उलझ रहा हूं। ‘राष्ट्र्र निर्माण’ जैसा शब्द हमारे मानस पटल पर बड़े राष्ट्रीय नेताओं की तस्वीर उभारता है। हमारे मन को दिल्ली या किसी बड़े शहर की ओर ले जाता है, किसी नेता, अफसर या किसी नामी-गिरामी उद्योगपति की ओर लेकर जाता है। राष्ट्र निर्माण का जिक्र आने पर हम सरकार की बात सोचते हैं, बड़ी राष्ट्रीय नीतियों की चर्चा करते हैं। ऐसा सोचना गलत नहीं है, लेकिन केवल यही सोचना जमीन पर हो रहे राष्ट्र निर्माण को हमारी नजरों से ओझल कर देता है। 

आजकल राष्ट्रवाद की छिछली समझ चल निकली है। अमरीका की तर्ज पर आजकल जो पैसा कमा ले उसे रोजगार सृजक के नाम पर राष्ट्र निर्माता कह दिया जाता है। जो डिग्री देने की बड़ी दुकान खोलकर उसकी कमाई के सहारे बिजनैस के साथ राजनीति का धंधा चलाए उसे शिक्षाविद और भविष्य निर्माता बता दिया जाता है। जो टी.वी. स्टूडियो में बैठकर पड़ोसियों को गाली दे और उनके खिलाफ जनता को भड़काए उसे राष्ट्रवादी का तमगा मिल जाता है। यह हमारे राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्र निर्माण के साथ एक भद्दा मजाक है। इनसे इतर कभी-कभार हमारी नजर उन सामाजिक संगठनों और आंदोलनों पर भी पड़ जाती है जो देश के भविष्य के लिए कुछ बड़ा काम कर रहे हैं। अब इस दायरे में भी बड़े एन.जी.ओ. और अंतर्राष्ट्रीय संगठन आ गए हैं जो मोटी तनख्वाह देकर समाज सेवा करवाते हैं। उनके अलावा कुछ ऐसे आंदोलन भी हुए हैं जो स्वयंसेवा की परंपरा को बनाए रखते हुए अंतिम व्यक्ति के लिए कुछ कर गुजरने का संकल्प रखते हैं।

इन संगठनों और आंदोलनों के बाहर भी हमारे देश में ऐसे लाखों व्यक्ति हैं जो बिना किसी सरकारी ग्रांट के, बिना किसी बड़े बैनर के और बिना किसी शोर-शराबे के अनवरत कुछ निर्माण का काम करते जाते हैं। ऐसे ‘छोटे’ कामों को जोडऩे से जो होता है वह बहुत बड़ा होता है, उसे राष्ट्र निर्माण कहना चाहिए। ऐसे ही एक राष्ट्र निर्माता थे डाक्टर जयदेव जिनका निधन 98 वर्ष की आयु में गत 15 नवम्बर को अंबाला में हुआ। पिछले एक दशक से उनका आशीर्वाद मुझे मिला लेकिन वह अपने बारे में इतने संकोची थे कि उनकी स्मृति सभा में ही उनके व्यक्तित्व के सभी आयामों को समझने का अवसर मिल सका। अंबाला के लोग उन्हें एक सफल व्यापारी, उद्योगपति, गांधीवादी और समाजसेवी के रूप में जानते रहे हैं। लेकिन केवल समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण में फर्क है।

किसी दुखियारे की मदद करना एक खूबसूरत मानवीय गुण है लेकिन ऐसा दुख हो ही न पाए उसकी व्यवस्था करना समाज सुधारक और राष्ट्र निर्माता का काम है। इस दीर्घकालिक मिशन के लिए समाज सेवा के साथ-साथ जरूरी है संस्था निर्माण, चरित्र निर्माण और मूल्य का निर्माण। डाक्टर जयदेव ने अपने लंबे और सार्थक जीवन में ये तीनों काम किए। गुरुकुल कांगड़ी से चिकित्सा की डिग्री लिए डाक्टर साहब के पास कोई पारिवारिक जायदाद नहीं थी। उन्होंने जो कुछ किया वो अपने दम पर और सहयोगियों की टीम के सहारे किया। पहले एक दवाखाना शुरू किया, फिर दवाइयों का थोक व्यापार किया और उसे पूरे उत्तर भारत में फैलाया। कालांतर में उन्होंने अपने वैज्ञानिक बेटे के सहयोग से माइक्रो डिवाइसेज या MDI नामक कंपनी बनाई जो अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक उत्पाद बनाती है और जिसका सालाना टर्नओवर अब 1000 करोड़ के करीब है। उन्होंने यह सब गांधीवादी रास्ते पर चलते हुए किया, मुनाफे के लिए कभी ईमान से समझौता नहीं किया। 

उन्होंने और उनके पूरे परिवार ने गांधी जी की ट्रस्टीशिप के सिद्धांत का अनुसरण करते हुए अपनी कमाई को अपने ऐशो-आराम पर लुटाने की बजाय सादगी से जीवन जीते हुए समाज के लिए समर्पण भाव से काम किए। उनके मन में टीस थी कि आजादी के बाद अंबाला शहर को तमाम सरकारों और नेताओं द्वारा नजरअंदाज किया गया, इसलिए उन्होंने अंबाला में श्रेष्ठ संस्थाएं खड़ी करने का बीड़ा उठाया। अंबाला कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड अप्लाइड रिसर्च के माध्यम से ऐसी शैक्षणिक संस्था की बुनियाद डाली जिसने मैनेजमैंट कोटा के नाम पर पैसे वसूलने की बजाय केवल मैरिट पर दाखिले किए (इसके चलते स्वयं उनकी नातिन का प्रवेश कॉलेज में नहीं हो सका)। 

शिक्षा के नाम पर दुकानदारी के रिवाज से अलग हटते हुए यह कालेज आज भी अब तक 4000 विद्यार्थियों को शिक्षा दे चुका है। कुष्ठ रोगियों के लिए डाक्टर साहब ने सरकारी मदद से एक गृह बनवाया जो पिछले 60 वर्षों से उनकी सेवा कर रहा है। मूक और बधिर विद्यार्थियों के लिए एक स्कूल बनवाया। अब उनके परिवार ने मूक-बधिर लोगों की साइन लैंग्वेज को आवाज में बदलने का नया सॉफ्टवेयर तैयार करने का बीड़ा उठा लिया है। अंबाला में अच्छे अस्पताल की कमी को महसूस करते हुए उन्होंने रोटरी क्लब के अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर 100 बिस्तर वाले एक कैंसर और मल्टीस्पैशलिटी अस्पताल की स्थापना की जो हर साल एक लाख मरीजों का इलाज करता है। चैरिटेबल अस्पतालों के नाम पर दुकानदारी की बजाय इस अस्पताल में मरीज केवल लागत खर्च देते हैं। 

डा. जयदेव पिछले 60 वर्षों से अंबाला में संगीतालोक नामक संस्था के संरक्षक थे जोकि वार्षिक संगीत सम्मेलन का आयोजन करते हैं। इसमें उस्ताद आमिर खान, कुमार गंधर्व, जसराज, राजन और साजन मिश्रा, किशोरी आमोनकर, अमजद अली खान तथा जाकिर हुसैन जैसे श्रेष्ठ कलाकार शामिल हुए हैं। आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में संस्था निर्माण, चरित्र निर्माण और मूल्यों के निर्माण की इस नायाब कोशिश को राष्ट्र्र निर्माण न कहें तो और क्या कहें? डाक्टर जयदेव को श्रद्धांजलि के साथ कर्मांजलि देने का संकल्प अंबालावासियों ने लिया। उनके बहाने हमें इस देश के अनगिनत और गुमनाम राष्ट्र निर्माताओं को भी याद करना चाहिए।-योगेन्द्र यादव
 

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