किसी उत्सव के लायक नहीं है जी.एस.टी. दरों में कटौती

Edited By Updated: 28 Sep, 2025 05:20 AM

gst rate cuts are not cause for celebration

आर.बी.आई. के मासिक बुलेटिन में प्रकाशित होने वाला एक लेख, जिसका मैं हर महीने बेसब्री से इंतजार करता हूं, वह है ‘अर्थव्यवस्था की स्थिति’। इसकी शुरुआत में एक चेतावनी है जो मुझे हमेशा प्रभावित करती है। इसमें लिखा है, ‘‘उप-गवर्नर डा. पूनम गुप्ता द्वारा...

आर.बी.आई. के मासिक बुलेटिन में प्रकाशित होने वाला एक लेख, जिसका मैं हर महीने बेसब्री से इंतजार करता हूं, वह है ‘अर्थव्यवस्था की स्थिति’। इसकी शुरुआत में एक चेतावनी है जो मुझे हमेशा प्रभावित करती है। इसमें लिखा है, ‘‘उप-गवर्नर डा. पूनम गुप्ता द्वारा दिए गए मार्गदर्शन और टिप्पणियों का आभार। इस लेख में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिजर्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते।’’ यह कोई रहस्य नहीं है कि गवर्नर की स्वीकृति के बिना आर.बी.आई. का एक भी शब्द बच नहीं सकता। यहां तक कि किसी उप-गवर्नर का अकादमिक शोधपत्र या भाषण भी गवर्नर द्वारा अनुमोदित होता है।

अनिश्चितता और लचीलापन: कोई भी इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लेता और लेख को व्यापक रूप से पढ़ा जाता है और खूब उद्धृत किया जाता है। लेख में एक शब्द कई बार आता है: ‘अनिश्चितता’। सरकार और आर.बी.आई. द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों के बावजूद, मुद्रास्फीति, कीमतों, रोजगार, वेतन और मजदूरी, निवेश, आय कर और विदेशी व्यापार को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। यह अनिश्चितता गैर-आर्थिक क्षेत्रों जैसे सार्वजनिक परीक्षा, मतदाता सूची और चुनाव, कानून और उनका क्रियान्वयन, विदेश नीति, पड़ोस नीति आदि पर भी फैल रही है। दरअसल अनिश्चितता ही देश की वर्तमान स्थिति को परिभाषित करती है।

मौजूदा अनिश्चित आर्थिक परिस्थितियों के लिए ‘ठप्प’ का जवाब वही चिर-परिचित ‘रट’ है कि ‘अर्थव्यवस्था लचीली है’। सरकार की तरह,  ठप्प भी तिनके का सहारा ले रहा है। सबसे ताजा तमाशा जी.एस.टी. दरों में कटौती है। आर.बी.आई. दरों में कटौती को ऐतिहासिक जी.एस.टी. सुधार बता रहा है। कर की ऊंची और बहुविध दरों में कटौती जो मूल पाप थे, आखिर ‘सुधारात्मक’ क्या है? जी.एस.टी. कानूनों का डिजाइन गलत था, कर ढांचा गलत था, नियम और कानून गलत थे, कर दरें गलत थीं और जी.एस.टी. कानूनों का क्रियान्वयन गलत था। मेरी राय में, त्रुटिपूर्ण बहुविध कर दरों को सुधारना कोई क्रांतिकारी सुधार नहीं है।

कोई अतिशयोक्ति नहीं: हालांकि, जी.एस.टी.  दरों में कटौती से अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत अच्छी है। जी.एस.टी. दरों में कटौती से उपभोक्ताओं के हाथ में लगभग 2,00,000 करोड़ रुपए आने की उम्मीद है। 2025-26 में 357,00,000 करोड़ रुपए के नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले ‘अतिरिक्त’ धन 0.56 प्रतिशत है। भारत में वार्षिक खुदरा बाजार का अनुमान 82,00,000 करोड़ रुपए है और ‘अतिरिक्त’ धन 2.4 प्रतिशत होगा। अतिरिक्त खुदरा व्यय से उपभोग तो बढ़ेगा लेकिन अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है। इसके अलावा 2,00,000 करोड़ रुपए का सारा हिस्सा उपभोग में नहीं जाएगा। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, घरेलू ऋण बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत हो गया है और घरेलू बचत घटकर सकल घरेलू उत्पाद का 18.1 प्रतिशत रह गई है। इसलिए, परिवारों के हाथ में जीएसटी का कुछ ‘धन’ ऋण कम करने में और कुछ बचत बढ़ाने में जाएगा। मैं मानता हूं कि उपभोग व्यय में वृद्धि होगी  लेकिन क्या इससे उपभोग, उत्पादन और निवेश के चक्र को कोई महत्वपूर्ण बढ़ावा मिलेगा? सरकारी अर्थशास्त्रियों को छोड़कर सभी ने इस प्रश्न पर अपना निर्णय सुरक्षित रखा है।वित्त मंत्रालय और आर.बी.आई. एक ही राग अलाप रहे हैं। 19 जून, 2025 को वित्त मंत्रालय की सलाहकार समिति को प्रस्तुत एक शोधपत्र में, पहली तीन स्लाइडों (पृष्ठों) के शीर्षक इस प्रकार हैं:-
- वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के उच्च स्तर से ग्रस्त है।
-वैश्विक व्यापार और निवेश में मंदी आ गई है।
-इस पृष्ठभूमि में,भारत का आर्थिक प्रदर्शन मजबूत रहा है।
अज्ञात कारणों से, मुख्य आर्थिक सलाहकार कठोर सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए न तो इच्छुक हैं और न ही सक्षम। कठोर सुधार प्रधानमंत्री के ‘जीवन को आसान बनाने’ और ‘व्यापार करने में आसानी’ को बढ़ावा देने के आह्वान से कहीं आगे जाते हैं।

खुला और प्रतिस्पर्धी : भारत को एक खुली और प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बनना होगा। हमारा अनुभव रहा है कि जब एक दरवाजा खुलता है  तो एक खिड़की बंद हो जाती है। एक ‘खुली’ अर्थव्यवस्था को दुनिया के सभी देशों के साथ व्यापार के लिए खुला होना चाहिए। एक ‘प्रतिस्पर्धी’ अर्थव्यवस्था बनने के लिए हमें अधिक द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौतों को अपनाना होगा। एक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था को चिप्स, जहाज और बाकी सबकुछ नहीं बनाना चाहिए क्योंकि वह ऐसा नहीं कर सकती। हमें केवल वही चीजें (वस्तुएं और सेवाएं) बनानी चाहिएं जिन्हें हम प्रतिस्पर्धी रूप से बना सकें।

एक और कठिन सुधार है विनियमन-मुक्ति। कानून प्रवर्तन से लेकर कर प्रशासन तक, हर कोई नियम और कानून बनाना पसंद करता है। मंत्रियों को विधेयकों की जानकारी तो दी जाती है लेकिन नियमों, विनियमों, प्रपत्रों, अधिसूचनाओं, दिशा-निर्देशों आदि के बारे में उन्हें अंधेरे में रखा जाता है। इस तरह जी.एस.टी. जैसा एक बेहतरीन विचार ‘गब्बर सिंह टैक्स’ बन गया। 1991-96 में देश में विनियमीकरण की पहली लहर आने के बाद, नियंत्रण और नियम व्यवस्था में फिर से घुस आए हैं। और हर दिन नए-नए नियम और कानून बनाए जा रहे हैं। अगर सरकार नियमों और विनियमों के ढेर को हटाने के लिए एक सशक्त प्राधिकारी नियुक्त कर जो हथियार से लैस हो तो यह एक बड़ा सुधार होगा। एक बड़े कदम से, सरकार प्रधानमंत्री के ‘जीवन की सुगमता’और ‘व्यापार करने की सुगमता’ के लक्ष्यों को काफी हद तक हासिल कर लेगी।-पी. चिदम्बरम 

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!