भ्रष्ट व्यवस्था से कब तक होती रहेंगी निर्दोषों की मौतें

Edited By Updated: 07 Oct, 2025 05:33 AM

how long will innocent people continue to die due to this corrupt

राजनीतिक दलों और सरकारों की निगाहों में देश में आम लोगों के जीवन की कोई कीमत नहीं रह गई है। इसका नया प्रमाण मध्य प्रदेश और राजस्थान में दूषित खांसी के सिरप से होने वाली मौतें हैं। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में मिलावटी सिरप पीने से 11 और राजस्थान में...

राजनीतिक दलों और सरकारों की निगाहों में देश में आम लोगों के जीवन की कोई कीमत नहीं रह गई है। इसका नया प्रमाण मध्य प्रदेश और राजस्थान में दूषित खांसी के सिरप से होने वाली मौतें हैं। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में मिलावटी सिरप पीने से 11 और राजस्थान में 3 बच्चों की मौत हो गई। यह पहली बार नहीं है जब देश में स्वास्थ्य सेवाओं से खिलवाड़ का मामला सामने आया है। इससे पहले भी विदेश में निर्यात किए जाने वाले खांसी के सिरप से मौतों के मामले सामने आ चुके हैं। उस वक्त यदि देश के औषधि विभाग ने सख्त कदम उठाए होते तो जहरीला सिरप पीने से बच्चों की होने वाली मौतों को रोका जा सकता था।

आश्चर्य की बात यह कि राजस्थान और मध्य प्रदेश की सरकारें मानने से ही इंकार करती रहीं कि बच्चों की मौतें विषाक्त सिरप पीने से हुई हैं,  जब मृतकों की संख्या बढऩे लगी तब कहीं जाकर सरकार ने बेमन से इस हादसे को स्वीकार किया। छिंदवाड़ा में जहरीले कफ  सिरप से 11 बच्चों की मौत के बाद प्रशासन ने डॉक्टर प्रवीण सोनी को गिरफ्तार किया।  कम्पनी और डाक्टर पर मामला दर्ज कर सरकार ने सिरप व श्रेसन फार्मा की सभी दवाओं पर प्रतिबंध लगाया। इसके बावजूद राजस्थान की सरकार नहीं चेती। राजस्थान में भाजपा सरकार बच्चों की मौतों के मामलों में लीपापोती ही करती नजर आई।

तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमैंट की लैब जांच में कोल्ड्रिफ सिरप में 46.2 प्रतिशत   डायएथिलीन ग्लाइकॉल की पुष्टि हुई। यह जहरीला कैमिकल किडनी फेलियर का कारण बनता है। वहीं, नेक्स्ट्रो.डीएस और मेफटॉल पी सिरप की रिपोर्ट सुरक्षित आई। केंद्र सरकार ने बच्चों को कफ  सिरप देने में सावधानी बरतने की सलाह दी है। इस मामले की गहराई से जांच करने के लिए केंद्र और राज्य की एजैंसियों ने मिलकर एक बड़ी पड़ताल की। जांचकत्र्ताओं ने पुष्टि की है कि जिन कफ  सिरप पर संदेह था, उनमें कोई भी जहरीला रसायन नहीं मिला है। जांच अभी पूरी नहीं हुई है और अन्य संभावित कारणों की पड़ताल जारी है।

यह पहला मामला नहीं जब कफ  सिरप से मौतों को लेकर बवाल मचा है। साल 2022-23 में गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में भी भारतीय कफ सिरप्स से बच्चों की मौत हुई थी। गाम्बिया में 70 बच्चों की मौत हो गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन मौतों को सिरप से जोड़ते हुए कहा था कि दवाओं में विषाक्त पदार्थों का स्तर अस्वीकार्य पाया गया है। इसका मेडेन फार्मास्युटिकल्स और भारत सरकार दोनों ने खंडन किया था। भारत ने कहा था कि घरेलू स्तर पर परीक्षण के दौरान सिरप गुणवत्ता मानकों के अनुरूप पाए गए।

उज्बेकिस्तान सरकार ने दिसंबर 2022 में 65 बच्चों की जान लेने वाले दूषित कफ  सिरप वितरित करने वाली कम्पनी पर देश के अनिवार्य गुणवत्ता परीक्षण से बचने के लिए स्थानीय अधिकारियों को 33,000 डॉलर की रिश्वत देने का आरोप लगाया था। कम्पनी ने आरोपों से इंकार किया था। इसी तरह दिसंबर 2022 में नेपाल ने 16 भारतीय दवा कम्पनियों को काली सूची में डाल दिया। काली सूची में डाली गई 16 कम्पनियों ने इन दावों का कोई जवाब नहीं दिया है। वर्ष 2013 में रैनबैक्सी ने एक अमरीकी अदालत में आपराधिक अपराध के 7 मामलों में दोषी ठहराया और 50 करोड़ डॉलर (44.5 करोड़ पाऊंड) का जुर्माना भरने पर सहमति जताई, तब भारतीय वाणिज्य मंत्रालय ने दावा किया था कि निहित स्वार्थ भारत में विनिर्माण गुणवत्ता को लेकर छिटपुट मुद्दे उठा रहे हैं।

भारतीय दवा निर्यात की गुणवत्ता के बारे में शिकायत करने वाले केवल अमरीकी और यूरोपीय देश ही नहीं थे। 2014 में, वियतनाम ने 45 भारतीय दवा कम्पनियों को काली सूची में डाल दिया और उसके बाद 2016 में 39 और कम्पनियों को काली सूची में डाल दिया। श्रीलंका, घाना, नाइजीरिया और मोजाम्बिक  ने भारतीय दवा निर्यात की गुणवत्ता के बारे में शिकायत की थी। इन मामलों में केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया प्रतिस्पर्धी भारतीय कंपनियों को बदनाम करने की विदेशी दवा कंपनियों की साजिश के रूप में चित्रित करने की रही है। हमारे देश में भारतीय सरकारी प्रयोगशालाओं में दवाओं के गुणवत्ता परीक्षण में विफल होने के हजारों मामले सामने आए हैं। यह आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज है। भारत सरकार द्वारा संचालित एक डाटाबेस में 8,000 से ज्यादा ऐसी दवाइयां सूचीबद्ध हैं जो गुणवत्ता परीक्षणों में विफल रहीं।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा जैनेरिक दवाओं का निर्यातक है, जो विकासशील देशों की अधिकांश चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करता है। मार्च 2023 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में भारत ने 25.4 अरब डॉलर  मूल्य की दवाइयां निर्यात कीं। इनमें से 3.6 अरब डॉलर की दवाइयां अफ्रीकी देशों को निर्यात की गईं। सवाल यही है कि आखिर राजनीतिक दल और सरकारें कब तक यूं ही लोगों को भ्रष्ट व्यवस्था का शिकार बनते हुए देखती रहेंगी। किसी एक घटना के स्मृति से विलुप्त होने के बाद ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति आखिर कब थमेगी? देश में इतने कानून होने के बावजूद ऐसी घटनाएं कैसे होती हैं?-योगेन्द्र योगी
 

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