मोहन भागवत के हालिया व्यक्त विचारों को कैसे आंकें

Edited By Updated: 18 Jul, 2021 05:30 AM

how to judge the recently expressed views of mohan bhagwat

एक दुखद स्थिति यह है कि विपक्षी नेताओं ने भागवत के स्पष्ट बयान की सराहना करने की बजाय उन पर पाखंड का आरोप लगाया है। दार्शनिक अली-इब्न-अबी तालिब ने एक बार कहा था, ‘‘यह मत देखो कि कौन कह रहा है; देखो वह क्या कह रहा

एक दुखद स्थिति यह है कि विपक्षी नेताओं ने भागवत के स्पष्ट बयान की सराहना करने की बजाय उन पर पाखंड का आरोप लगाया है। दार्शनिक अली-इब्न-अबी तालिब ने एक बार कहा था, ‘‘यह मत देखो कि कौन कह रहा है; देखो वह क्या कह रहा है!’’ ऋग्वेद कहता है, ‘‘सभी कोनों से अच्छे विचार आने दें।’’ 

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में आयोजित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच द्वारा आयोजित पुस्तक विमोचन के एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) प्रमुख मोहन भागवत ने मुसलमानों से आग्रह किया कि वे भारत में इस्लाम के खतरे के बारे में ‘भय के चक्र में न फंसें’। उन्होंने कहा कि जो लोग मुसलमानों को देश छोडऩे के लिए कह रहे हैं, वे खुद को हिंदू नहीं कह सकते और जो लोग गायों के नाम पर लोगों की हत्या कर रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि वे हिंदुत्व के खिलाफ हैं। सभी भारतीयों का डी.एन.ए. एक ही है। भागवत ने कहा कि उनका संगठन दृढ़ता से मानता है कि भारत जैसे लोकतंत्र में हिंदुओं या मुसलमानों की बजाय भारतीयों का ही प्रभुत्व हो सकता है। 

भागवत की बयानबाजी के एक दिन बाद विपक्षी नेताओं ने इस तरह की टिप्पणियों के पीछे की मंशा पर सवाल उठाया। कांग्रेस ने कहा कि अगर भागवत अपनी बात पर खरे हैं तो उन्हें निर्देश देना चाहिए कि निर्दोष मुसलमानों को ‘परेशान’ करने वाले सभी भाजपा नेताओं को उनके पदों से हटा दिया जाए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘‘मोहन भागवत जी, क्या आप इन विचारों को अपने शिष्यों, प्रचारकों, विश्व हिंदू परिषद/ बजरंग दल के कार्यकत्र्ताओं तक भी पहुंचाएंगे? क्या आप ये शिक्षाएं मोदी-शाह जी और भाजपा के मुख्यमंत्रियों को भी देंगे?’’ ए.आई.एम.आई.एम. प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी भागवत के बयान की समान रूप से आलोचना की। मायावती ने एक हिंदी कहावत का इस्तेमाल करते हुए कहा कि आर.एस.एस. प्रमुख का बयान ‘मुंह में राम, बगल में छुरी’ जैसा था। 

तर्कसंगतता के सिद्धांत के आधार पर, किसी को यह जवाब देने की आवश्यकता है कि क्या मोहन भागवत, आर.एस.एस. के एक अनुभवी नेता होने के नाते, अल्पसंख्यक समुदाय के वोटों को कम करने के तर्क को समझने की बुद्धि नहीं रखते, जो संभवत: हिंदुओं के वोटों को खो सकते हैं, जो उनके शब्दों से नाराजगी का कारण बन सकते हैं? विपक्षी नेताओं को यह तथ्य स्वीकार करना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आत्मनिरीक्षण, सुधार और प्राप्ति के लिए हमेशा जगह होती है। इस तरह की प्राप्ति के लिए कोई निश्चित समय या उम्र नहीं है। 

सम्राट अशोक ने कलिंग के खिलाफ एक विनाशकारी युद्ध छेड़ा था, जिसके परिणामस्वरूप 100,000 मौतें और 150,000 निर्वासन हुए थे। फिर उन्होंने अपने कार्यों पर पश्चाताप किया और बौद्ध धर्म अपना लिया। चेतना स्वयं (आत्मा) का सार है। भागवत के कथन को ताॢकक रूप से स्वयं की चेतना की श्रेष्ठता का संकेत क्यों नहीं माना जा सकता? महान बौद्ध विचारकों के लिए, तर्क मुख्य शस्त्रागार था, जिस पर उन्होंने विनाशकारी आलोचना का मुकाबला करने के लिए ‘हथियार’ बनाए। अवरोधक, ठंडी आलोचना के पीड़ादायक प्रभावों को दिमाग से साफ करने में तर्क एक भाव भेदक के रूप में काम कर सकता है। प्रत्येक मनुष्य आत्मा की अंधेरी सुरंग से आध्यात्मिक प्रकाश और बोध के चरणों को पार करते हुए, ऊपर की ओर जाने के लिए सफलतापूर्वक कदम बढ़ा सकता है। 

इसके अलावा, आर.एस.एस. प्रमुख के बयान की सत्यता का पता लगाने के लिए कई मापदंड हैं। पहला परीक्षण यह है कि क्या भागवत की बयानबाजी योगी आदित्यनाथ और अनुराग ठाकुर के समान है? दूसरे, क्या उनके बयानों से सकारात्मकता या नकारात्मकता का पता चलता है? संघ परिवार के घटकों की ओर से भागवत के बयानों पर दो प्रतिक्रियाएं आ सकती हैं। हिंदुत्व का समूह उनके आग्रह का अनुसरण कर सकता है और अपनी विचार प्रक्रिया को बदल सकता है। या, वे उनके बयानों से खुद को दूर कर लेंगे। यदि इनमें से कोई भी प्रतिक्रिया सामने नहीं आती है तो समय के साथ भागवत के स्वस्थ विचार फीके पड़ जाएंगे। 

राष्ट्रहित में हिंदू-मुस्लिम एकता की तत्काल आवश्यकता है। कई समाज सुधारकों ने धार्मिक मान्यताओं को तोड़कर समाज को एक करने के लिए संघर्ष किया है। महात्मा गांधी, जो जीवन भर महान एकीकरणकत्र्ता थे, ने भाईचारे को संस्थागत बनाने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कहा- ‘‘धर्म से मेरा मतलब औपचारिक धर्म से नहीं है, बल्कि उस धर्म से है जो सभी धर्मों को रेखांकित करता है, जो हमें हमारे बनाने वाले के साथ आमने-सामने लाता है।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘हम मृत स्तर पर नहीं, बल्कि विविधता में एकता तक पहुंचना चाहते हैं।’’

महान सुधारक, सर सैयद अहमद खान ने इसी तरह की भावनाओं को प्रतिध्वनित किया- ‘‘सदियां बीत चुकी हैं, जब से परमात्मा ने चाहा कि हिंदू और मुसलमान इस भूमि की जलवायु और उपज को सांझा कर सकें और इस पर एक साथ रह तथा मर सकें।’’ इस तरह दुनिया एक परिवार है।-एच. खुर्शीद

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