बढ़ते धरने-प्रदर्शन बढ़ा रहे हैं शहरों की मुश्किलें

Edited By ,Updated: 13 Feb, 2024 05:20 AM

increasing protests and demonstrations are increasing the problems of cities

कभी कहीं किसान आंदोलन, कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन, तो कभी धार्मिक जलूस समेत महानगरों की सड़कों पर रोज-रोज होते आंदोलन, प्रदर्शन, रैलियां, जलूस और धरने ट्रैफिक जाम का बड़ा कारण बन रहे हैं।

कभी कहीं किसान आंदोलन, कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन, तो कभी धार्मिक जलूस समेत महानगरों की सड़कों पर रोज-रोज होते आंदोलन, प्रदर्शन, रैलियां, जलूस और धरने ट्रैफिक जाम का बड़ा कारण बन रहे हैं। ऊपर से तेज रफ्तार से बढ़ती आबादी और उसके नतीजतन सड़कों पर दौड़ते वाहनों की बढ़ती तादाद सुचारू दिनचर्या में मुश्किलें खड़ी कर रही है। 

दिल्ली पुलिस के हालिया आंकड़ों से जाहिर होता है कि दिल्ली में 2022 के मुकाबले बीते साल 2023 में प्रदर्शनों, रैलियों, जलूसों, धरनों वगैरह में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है। बीते साल 2041 धरने, 1627 प्रदर्शन, 929 जलूस, 472 बैठकें, 172 रैलियां, 107 बंद-हड़तालें और 2,985 विरोध मिलाकर सड़कों पर कुल 8,333 ऐसे कार्यक्रम हुए। इस प्रकार दिल्ली में कहीं न कहीं औसतन रोज करीब 23 प्रदर्शन- धरने हुए। जबकि 2022 के दौरान दिल्ली की सड़कों पर 5847 प्रदर्शन-धरने ही हुए थे। इस प्रकार साल भर में तमाम प्रदर्शन, रैलियां और धरने 70 फीसदी से ज्यादा बढ़ गए। सबसे ज्यादा दोगुने से ऊपर प्रदर्शन, धरने और जलूस बढ़े हैं, जबकि मार्च/ रैलियां और हड़तालें घटी हैं। 

सवाल उठता है कि ऐसे हालात में देश की राजधानी दिल्ली और प्रदेशों की राजधानियां कैसे चल पाएंगी? हालांकि प्रदर्शन-धरने को पूरी तरह रोका तो नहीं जा सकता क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (्र) अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार देता है। लेकिन अनुच्छेद 19 (1) (क्च) कहता है कि नागरिक अपनी मांग और किसी मुद्दे के विरोध के लिए शांतिपूर्ण तरीके से ही एक स्थल पर एकत्रित हो सकते हैं। साथ ही, अनुच्छेद 19(1)(3) उस पर कई तरह की पाबंदियां भी लगाता है। इसलिए छोटे- बड़े किसी भी पैमाने के धरना, प्रदर्शन, जलूस, रैली वगैरह के लिए पुलिस से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है। 

कानून व्यवस्था बेशक राज्य का मसला है। इसको लेकर अलग- अलग राज्यों में थोड़ी-बहुत भिन्न-भिन्न व्यवस्था लागू है। मोटे तौर पर हर राज्य का पुलिस विभाग प्रदर्शन का मिजाज, लोकेशन, तारीख, समय, अवधि और सम्मिलित होने वाले लोगों की संख्या की पूर्व जानकारी लेकर ही इजाजत देता है। उस समय और स्थान पर ट्रैफिक, अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों के आवागमन, कानून और व्यवस्था जैसे विभिन्न पहलुओं के मद्देनजर ही इजाजत दी जाती है। इजाजत देने के कुछ निर्धारित मापदंड हैं। रैलियों के आयोजकों को पुलिस सुझाती है कि तय मार्ग पर ही रहें और दूसरों को भड़काने वाली गतिविधियों से परे रहें। जनता की सहूलियत के लिए पुलिस अखबारों और सोशल मीडिया के जरिए ट्रैफिक एडवाइजरी जारी करती है। 

गौरतलब है कि धरना-प्रदर्शन में किसी प्रकार की हिंसा या उपद्रव की जगह नहीं है। मौलिक अधिकारों का हवाला देकर भी लाजिमी है कि कानून और व्यवस्था का पालन किया जाए। इसीलिए कुछ कारणों से धरना- प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी जाती- पहला, अगर इससे राज्य की सुरक्षा को किसी प्रकार का खतरा है। दूसरा, अगर इसके चलते पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर असर पडऩे की आशंका है। तीसरा, अगर इसके चलते आम जनजीवन के डिस्टर्ब होने की संभावना है। चौथा, अगर इससे अदालत की अवमानना का मामला बनता है। और पांचवां, अगर इससे देश की एकता और अखंडता पर खतरा खड़ा हो सकता है। जाहिर है कि अगर पुलिस को लगता है कि इससे शहर या इलाके की शांति भंग होने का अंदेशा है या तनाव या हिंसा के हालात पैदा हो सकते हैं, तो पुलिस इजाजत देने से इंकार कर सकती है। 

इजाजत देने के बावजूद पुलिस को प्रदर्शन-धरनों के दौरान सड़कों पर आए दिन चुनौतियों से दो-चार होना पड़ता है। ऐसे हालात तब बनते हैं, जब संभावित संख्या से अधिक प्रदर्शनकारी जुट जाते हैं या फिर प्रदर्शन उग्र रूप अख्तियार कर लेता है। क्योंकि सुरक्षा घेरा बनाने के लिए बैरिकेडिंग करने से लेकर महिला पुलिस बल की तैनाती तक हर प्रदर्शन- धरने के मिजाज मुताबिक पुलिस बल के इंतजाम किए जाते हैं। स्थलों और रास्तों पर दंगा रोकने वाले विशेष पुलिस वाहन तैनात किए जाते हैं। 

इनमें अश्रु गैस के गोले दागने वाले वज्र वाहन, वाटर कैनन और प्रदर्शनकारियों की धर- पकड़ के लिए सवारी बसों का इंतजाम शामिल है। हर हाल में सुरक्षा कायम रखने के लिए ड्रोन से हवाई नजर रखी जाती है। सी.सी.टी.वी. से लैस विक्रांत वाहन पुलिस बल को लाने-ले जाने के अलावा प्रदर्शनकारियों पर गहन गश्त करते हैं। प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए पुलिस बल को समूची ट्रेनिंग दी जाती है क्योंकि इस दौरान पुलिस का संयम हरगिज नहीं डगमगाना चाहिए। प्रदर्शन रूद्र रूप ले, तो भी पुलिस बल को भावनाओं में बहने की जल्दबाजी नहीं करने के आदेश जारी किए जाते हैं। 

जैसे दिल्ली में दिन में ट्रकों और अन्य भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक है, और रात को निर्धारित समय के बीच ही इनके संचालन की अनुमति है वैसे ही धरना-प्रदर्शन, आंदोलन और रैलियों को रात के वक्त ही सीमित क्यों नहीं किया जा सकता? अगर ऐसा हो जाए, तो दिल्ली और प्रदेशों की राजधानियों को रैली-धरनों- जलूसों से उत्पन्न ट्रैफिक जाम और सुचारू दैनिक गतिविधियों में अड़चन की समस्या से काफी हद तक निजात मिल सकती है। साथ ही, घंटों जाम से हो रहे प्रदूषण और ईंधन के नुकसान से भी छुटकारा मिल सकता है। हालांकि रात के वक्त कम पुलिस बल की मौजूदगी का बहाना बनाकर ऐसी व्यवस्था को टाला जाता है लेकिन पुलिस और प्रशासन चाहें तो ऐसा क्या मुमकिन नहीं है?-अमिताभ स.
 

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