क्या ‘आप’ आगामी चुनावों में ‘अकेले’ चलने पर विचार कर रही!

Edited By Updated: 01 Jul, 2025 05:19 AM

is aap considering going  alone  in the upcoming elections

गुजरात और पंजाब उपचुनावों में हाल ही में मिली जीत से आम आदमी पार्टी खुश है। परंपरागत रूप से भाजपा के वर्चस्व वाले राज्यों में यह जीत राजनीतिक बदलाव में उल्लेखनीय बदलाव का संकेत देती है। ‘आप’  जिसे कभी दिल्ली केंद्रित पार्टी के रूप में देखा जाता था...

गुजरात और पंजाब उपचुनावों में हाल ही में मिली जीत से आम आदमी पार्टी खुश है। परंपरागत रूप से भाजपा के वर्चस्व वाले राज्यों में यह जीत राजनीतिक बदलाव में उल्लेखनीय बदलाव का संकेत देती है। ‘आप’  जिसे कभी दिल्ली केंद्रित पार्टी के रूप में देखा जाता था और जो केवल दिल्ली में शासन करती थी, पिछले कुछ वर्षों में फैल गई है और राष्ट्रीय चरित्र प्राप्त कर रही है। अब यह पंजाब पर शासन करती है और गुजरात जैसे राज्यों में पैठ बनाने लगी है, जिसे लंबे समय से भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से अलग होने के बाद 2012 में अरविंद  केजरीवाल ने भारतीय राजनीति को बदलने के लिए ‘आप’ की स्थापना की थी।

केजरीवाल पहली बार 2014 में दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने कुछ महीनों के लिए पद छोड़ दिया। हालांकि, केजरीवाल 2015 में 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटें जीतकर सत्ता में वापस आए। उन्होंने 2025 तक दिल्ली पर शासन किया। हाल ही में फरवरी में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद यह उपचुनाव जीत केजरीवाल के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्हें और उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने हाल के चुनाव परिणामों पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘लुधियाना पश्चिम और विसावदर में जीत दर्शाती है कि लोग प्रभावी शासन चाहते हैं। अरविंद केजरीवाल के दृष्टिकोण को कम आंकना एक गलती है-उनका लक्ष्य अपने मॉडल को पूरे देश में लागू करना है। लुधियाना और विसावदर के लोगों को बधाई और पंजाब और गुजरात के सभी  कार्यकत्र्ताओं को शुभकामनाएं।’’

पंजाब में लुधियाना पश्चिम विधानसभा सीट पर पार्टी ने जीत दर्ज की, जहां संजीव अरोड़ा ने कांग्रेस के भारत भूषण आशु को 10,637 वोटों से हराया। गुजरात के जूनागढ़ जिले में, प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने विसावदर में भाजपा के किरीट पटेल को 17,554 वोटों से हराया। 2022 के चुनावों में ‘आप’ ने दोनों सीटें जीतीं और इस बार दोगुने अंतर से जीत हासिल की। पंजाब और गुजरात में जीत से ‘आप’ के निराश नेताओं, कार्यकत्र्ताओं और समर्थकों में उम्मीद जगी है। राजनीति में हार-जीत आम बात है। मायने यह रखता है कि कोई पार्टी कितनी जल्दी उभर पाती है और अपना वजूद बचा पाती है। 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ‘आप’ की दोहरी जीत से साफ संकेत मिलता है कि ‘आप’ अभी भी बाहर नहीं हुई है। 

फरवरी में ही ‘आप’ को दिल्ली विधानसभा चुनावों में झटका लगा था, जिसके परिणामस्वरूप उसका 10 साल का शासन खत्म हो गया था और भाजपा ने 70 में से 48 सीटें जीती थीं। इन उपचुनावों में ‘आप’ की जीत से पार्टी के कार्यकत्र्ताओं और समर्थकों में जोश भरने की संभावना है। राजनीतिक किस्मत बहुत जल्दी बदल सकती है और इस बार यह केजरीवाल और उनकी पार्टी के पक्ष में है। ‘आप’ प्रमुख ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा दोनों की हार उनके लिए एक बड़ा झटका थी। हाल ही में हुए उपचुनावों में मिली जीत ने ‘आप’ के कार्यकत्र्ताओं में जोश भर दिया है। उपचुनावों में यह वापसी पार्टी की दृढ़ता और असफलताओं से उबरने की क्षमता को दर्शाती है। आम आदमी पार्टी को आगामी राज्यसभा चुनावों में एक सीट मिलने की उम्मीद है। कई लोगों का मानना  है कि अरविंद केजरीवाल राज्यसभा में प्रवेश करेंगे, जबकि उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था। हालांकि, उनकी अप्रत्याशितता स्पष्ट है।

उपचुनावों में ‘आप’ की जीत का राष्ट्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? पार्टी का इतिहास सफलताओं और असफलताओं दोनों से भरा हुआ है। पिछले 12 वर्षों में, यह एक राष्ट्रीय पार्टी और एक राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी है। इसने पंजाब और दिल्ली (फरवरी तक) पर शासन किया। केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पद की आकांक्षा व्यक्त की है और 2014 में मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। कल्याणकारी नीतियों को अपनाने और मुफ्त लाभ देने से पार्टी की वृद्धि को बढ़ावा मिला है। कुशल सार्वजनिक सेवा वितरण और नागरिकों के साथ सीधे जुड़ाव पर केंद्रित ‘आप’ का दृष्टिकोण जीवन की गुणवत्ता में तत्काल सुधार को प्राथमिकता देता है। 

इस नए दृष्टिकोण ने पार्टी को भारतीय राजनीति में एक अनूठी पहचान दी है। ‘आप’ को तब बड़ा झटका लगा जब 2025 के विधानसभा चुनावों में वह भाजपा के हाथों हार गई। उसे तब झटका लगा जब उसके संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल के साथ-साथ उनके कुछ वरिष्ठ सहयोगियों ने भी अपनी सीटें खो दीं। इस बीच, पार्टी की छवि में भारी गिरावट आई जब केजरीवाल और उनके कुछ मंत्रियों को कथित भ्रष्टाचार के लिए जेल जाना पड़ा। उन्होंने चुनाव तक अपनी सहयोगी आतिशी को सत्ता सौंप दी। हार के और भी कारण थे। इसमें ‘आप’ और उसके नेताओं से मध्यम वर्ग का मोहभंग शामिल है। कई समर्थक इस बात से निराश थे कि  ‘आप’ की कल्याणकारी योजनाएं मुख्य रूप से निम्न आय वर्ग को लाभ पहुंचाती हैं जबकि वेतनभोगी मध्यम वर्ग की उपेक्षा की जाती है। झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले, प्रवासी कामगार और दिहाड़ी मजदूर ‘आप’ के वफादार मतदाता आधार सबसिडी और नकद हस्तांतरण प्राप्त करते हैं, जिससे मध्यम आय वर्ग के लोग उपेक्षित महसूस करते हैं।

आम आदमी पार्टी   विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का हिस्सा है और 2024 के चुनावों में कांग्रेस के साथ काम किया है। हालांकि, दोनों दलों ने महसूस किया है कि इस सांझेदारी से किसी को भी मदद नहीं मिली है। अब ‘आप’ आगामी चुनावों में स्वतंत्र रूप से चलने पर विचार कर रही है। यह निर्णय, हाल ही में हुए उपचुनावों में जीत के बाद विपक्ष में ‘आप’ की मजबूत उपस्थिति के साथ, भारतीय राजनीति में पार्टी के भविष्य को  काफी दिलचस्प बनाता है।-कल्याणी शंकर
 

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