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‘प्रैस आजादी दिवस’ पर स्वयं को आईना दिखाना आवश्यक

Edited By ,Updated: 03 May, 2025 05:31 AM

it is necessary to show ourselves the mirror on press freedom day

विश्व प्रैस स्वतंत्रता दिवस 3 मई को मनाया जाता है। इसके अगले दिन 4 मई को इस बार विश्व हास्य दिवस भी संयोग से पड़ रहा है। ये दोनों ही लिखने से संबंधित हैं। दोनों में एक समानता है और वह यह कि दोनों ही कलम के जरिए कलमकारों को सभी प्रकार के सामाजिक,...

विश्व प्रैस स्वतंत्रता दिवस 3 मई को मनाया जाता है। इसके अगले दिन 4 मई को इस बार विश्व हास्य दिवस भी संयोग से पड़ रहा है। ये दोनों ही लिखने से संबंधित हैं। दोनों में एक समानता है और वह यह कि दोनों ही कलम के जरिए कलमकारों को सभी प्रकार के सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी बंधनों से मुक्त करने की बात करते हैं।

प्रैस की आजादी का अर्थ यह लगाया जाता है कि समाचार पत्रों, जनसंपर्क के विभिन्न माध्यमों और मीडिया तथा मनोरंजन के साधनों के जरिए लोगों को पढऩे, सुनने और देखने के लिए कुछ भी परोसा जा सकता है। जहां एक ओर निष्पक्ष पत्रकारिता किसी भी लोकतंत्रवादी देश की पहचान है, वहां अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी लिखने, सुनाने और दिखाने को अपना मौलिक अधिकार समझ लिया जाना गलत है। इससे न केवल भ्रम की स्थिति पैदा होती है बल्कि समाज में अव्यवस्था भी फैलती है जिससे लोगों के बीच तनाव उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है।

आलोचना और उसकी मर्यादा : सामान्य व्यक्ति के सामने आज चुनौती यह है कि वह किस की बात को सही माने, पत्रकारों, लेखकों और फिल्मकारों की या सरकार द्वारा रखा गया पक्ष जिसे बड़ी सफाई से संविधान और उसके अंतर्गत बने कानूनों के तहत सही ठहरा दिया जाता है। तर्क यह दिया जाता है कि जिस प्रकार कोई पत्रकार गहन खोजबीन करने के बाद ही किसी मामले पर कुछ लिखता है, उसी प्रकार सरकार भी तथ्यों के आधार पर अपनी बात रखती है, कानून बनाती है और उन पर अमल करवाती है। प्रश्न यह नहीं कि कौन सही या गलत है बल्कि यह कि यदि इन दोनों में कहीं मतभेद या अंतर है तो दोनों पक्षों द्वारा इसे तार्किक बहस से सुलझाया जाना चाहिए जो सामान्यता होता नहीं, दोनों ही हठ पर उतर आते हैं कि वही ठीक हैं। सरकार के पास डंडा चलाने का अधिकार है तो वह व्यक्ति या संस्थान के प्रति कठोर कार्रवाई कर अपनी शक्ति दिखाती है तो दूसरी ओर मीडिया कर्मी भी पाठकों और दर्शकों तक अपनी व्यापक पहुंच के बल पर मोर्चा संभाल लेते हैं। 

हमारा देश प्रैस की आजादी के मामले में 180 देशों की सूची में 159 के क्रम पर है। समझा जा सकता है कि हमारी स्थिति क्या है और यह भी कि इसके पीछे कौन जिम्मेदार है? हकीकत यह है कि यदि कोई व्यक्ति, संस्थान या संचार माध्यम अगर चाहे भी तो सत्य को बिना सरकार की अनुमति के उजागर नहीं कर सकता। किसी भी विषय को संवेदनशील कहकर उस पर कुछ भी बोलने से मना कर देना उचित नहीं कहा जा सकता। इससे सच्चाई का पता नहीं चल सकता, आप अंधेरे में रहते हैं और गलत नीति की बदौलत देश को नुकसान पहुंचाते हैं। आज भी संसार में अनेक देश हैं जहां हमारे यहां आपातकाल के समय की स्थिति है। वहां कुछ भी प्रकाशित करने या दिखाने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होती है। मीडिया संसाधनों पर नियंत्रण इस हद तक है कि किसी भी प्रकार का विरोध किया ही नहीं जा सकता। हमारे देश में ऐसी स्थिति तो नहीं है लेकिन यह भय बना रहता है कि यदि सत्य होने के बावजूद और सभी प्रमाण होने पर भी कुछ लिखा या दिखाया गया तो जांच-पड़ताल और छापे से लेकर किसी भी मामले में कार्रवाई से पहले गिरफ्तारी की तलवार लटकी रह सकती है।

वर्तमान चुनौतियां : कृत्रिम बुद्धिमता यानी आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस के दौर में यह और भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि ए.आई. गलत जानकारी भी देता है, डीपफेक तकनीक से किसी के चरित्र का चीरहरण हो सकता है। यह इतना तेज है कि संभलने का मौका भी नहीं मिलता और दुनिया भर में गलत छवि फैल जाती है। इसके जरिए पत्रकारों की निगरानी करना आसान हो गया है, कुछ भी व्यक्तिगत या गोपनीय नहीं रहता। यह अलग तरह की हिंसा और उत्पीडऩ है जिसका प्रतिकार करना मुश्किल है। राजनीतिक दबाव के चलते ऑनलाइन ट्रोलिंग का इस्तेमाल किया जाता है, पत्रकार या रचनाकार को कमजोर करने के प्रयत्न किए जाते हैं।

जिस स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया को लोकतंत्र की आधारशिला माना जाता था वह ढांचा अब चकनाचूर होकर ढह गया है। इसका कारण एक तो यह है कि अब वैश्विक स्तर पर अपनी बात रखने के अनेक संसाधन उपलब्ध हैं और पलक झपकते ही पूरी दुनिया जान सकती है कि आप क्या सोचते हैं और दूसरा यह कि जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोग आपकी आलोचना करने लगते हैं तो कितनी ही कोशिश कर लीजिए, संशय तो पैदा हो ही जाता है। हालांकि यह दुरुपयोग है लेकिन हमारे बहुत से नेता अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए विदेशों में ही बयानबाजी करते रहते हैं जिससे देश में अस्थिरता का वातावरण पैदा किया जा सके। सरकार आपराधिक तथा मानहानि जैसी धाराओं के तहत कार्रवाई करती है।

प्रश्न यह है कि क्या सरकार और पूंजीपतियों तथा बुद्धिजीवियों के सम्मिलित प्रयास से कोई ऐसी व्यवस्था लागू की जा सकती है जिसके अंतर्गत वे सभी साधन उपलब्ध कराए जा सकते हों जिनकी आवश्यकता किसी समाचारपत्र या चैनल को होती है। इसमें केवल यह होगा कि जो धन लिया या संसाधन इस्तेमाल किए, उन्हें निश्चित समय में वापस करना होगा या फिर उन्हें किसी विशेष परिस्थिति में अवधि में वृद्धि अथवा पूर्ण रूप से छोड़ा जा सकता है। यदि हमारा मीडिया स्वतंत्र और निष्पक्ष होगा तो समाज में सहिष्णुता बढ़ेगी और लोगों को वास्तविक जानकारी मिलेगी। इसके साथ ही विश्व हास्य दिवस के अवसर पर मंद-मंद मुस्कुराते हुए, चेहरे पर मुस्कान के साथ खुलकर हंसने-हंसाने और ठहाके लगाने की अग्रिम बधाई।-पूरन चंद सरीन

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