सैनिकों की संख्या में कटौती संभव नहीं

Edited By ,Updated: 19 May, 2022 05:21 AM

it is not possible to cut the number of soldiers

भारतीय सेना द्वारा अपनी 13.50 लाख मजबूत सेना में से 1 लाख सैनिकों की कटौती करने की खबरों पर ज्यादा बहस नहीं हुई। कुछ अन्य देशों ने भी अपने सैनिकों की संख्या कम कर दी है। भारतीय

भारतीय सेना द्वारा अपनी 13.50 लाख मजबूत सेना में से 1 लाख सैनिकों की कटौती करने की खबरों पर ज्यादा बहस नहीं हुई। कुछ अन्य देशों ने भी अपने सैनिकों की संख्या कम कर दी है। भारतीय सेना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सशस्त्र बलों में से एक है। 

हाल ही में चीन ने अपने बहुप्रचारित हल्के युद्धक टैंकों को सेवा में रखा है, जिन्हें वह तिब्बत जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में तैनात करना चाहता है, ताकि उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अपनी युद्धक क्षमताओं को बढ़ाया जा सके। टाइप-15 के रूप में पहचाने जाने वाले नई पीढ़ी के इस टैंक में 105 मि.मी. की बंदूक है जो इसका मुख्य हथियार है। यह कवच-भेदी  गोले दाग सकती है और निर्देशित मिसाइलें लांच कर सकती है। टाइप-15 एक हाइड्रो-न्यूमैटिक  सस्पैंशन सिस्टम से लैस है जो अच्छी गतिशीलता सुनिश्चित करता है। 

हमें पी.एल.ए. को चीनी राष्ट्रपति शी-जिनपिंग के आदेश के बारे में संतुलित दृष्टिकोण रखने की जरूरत है ताकि वह अपनी लड़ाकू क्षमताओं को मजबूत करना जारी रखे और हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहे और दूसरी ओर अपने सैनिकों की ताकत में कटौती करें। इसका यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि पी.एल.ए. आक्रामक व्यवहार की एक नई लहर शुरू करने वाली है। हालांकि, संभवत: कहीं और लक्षित एक संदेश है। 

भारतीय सेना 4000 किलोमीटर की विवादित सीमा के पार चीन का सामना करती है और हिंद महासागर में पी.एल.ए. की नौसेना की गतिविधियों का सामना करना सीख रही है। पी.एल.ए. के रणनीतिक समर्थन बल प्लास्फ (क्करु्रस्स्स्न) को लड़ाकू हथियारों के साथ अंतरिक्ष, साइबर स्पेस और इलैक्ट्रोमैग्नेटिक स्पैक्ट्रम में क्षमताओं को एकीकृत करने के लिए स्थापित किया गया है। चीन ने 4 परमाणु-संचालित विमान वाहक पोत बनाने और नए वाहक पोत आधारित लड़ाकू जैट विकसित करने की योजना बनाई है, क्योंकि पेइङ्क्षचग शक्तिशाली अमरीकी सेना का मुकाबला करने के लिए अपने नौसैनिक कौशल और अंतरिक्ष युद्ध क्षमताओं को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है। पी.एल.ए. की योजना 2035 तक अपनी सेना को अत्याधुनिक बनाने की है।

आई.एस. और अन्य समूहों द्वारा आयोजित आतंकवादी हमलों में भारतीयों की सामूहिक हत्याएं पाकिस्तान की नीति की निरंतर विशेषता रही है। फिर भी, कुछ महीनों के भीतर, हम ‘शरम अल शेख शिखर सम्मेलन के बाद पाकिस्तान के साथ समग्र वार्ता’ पर वापस आ गए, जहां ध्यान का विषय भारत में आतंकवादी हमले नहीं था, बल्कि बलूचिस्तान में स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय संलिप्तता के निराधार आरोप थे। यह भारतीय कूटनीति की सबसे खराब अभिव्यक्ति थी। 

बालाकोट एयर स्ट्राइक को इसराईली स्पाइस-2000 बमों के उपयोग  द्वारा चिह्नित किया गया था, जो घातक सटीकता के साथ काम करते हैं। पाकिस्तान को इस बात का एहसास कराना चाहिए कि भारत का हवाई हमला एक नए दृष्टिकोण की शुरूआत मात्र है। नई दिल्ली में निर्णय लेने वालों के लिए यह समझने का समय है कि विदेशी धरती पर हमारे गुप्त कार्यों को उन्नत करने की आवश्यकता होगी। वैश्विक राजनीतिक, राजनयिक और आर्थिक परिदृश्य बदल गया है।

भारत विदेशी आक्रमणकारियों के लिए एक आसान लक्ष्य रहा है और अब तक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। यह केवल हमारी आंतरिक कलह और झगड़ों, सीमाओं की उपेक्षा, कमजोर कूटनीति, नम्र नेतृत्व, जासूसी एजैंसियों की विफलता और रणनीतिक सोच की कमी के कारण है। भारत सरकार ने कई बार अपने क्षेत्रों पर दावा त्यागा है। आजादी के बाद अंग्रेज चाहते थे कि कोको द्वीप भारत का हिस्सा बने लेकिन हमारे नेता यह कह कर इसे नजरअंदाज कर देते कि इसका कोई महत्व नहीं है। देश का कोई भी हिस्सा, चाहे वह सामरिक महत्व का हो या नहीं, किसी दूसरे देश को नहीं दिया जा सकता। 

अब चीन ने कोको द्वीप में अपना नौसेना बेस स्थापित किया है, जो म्यांमार का एक हिस्सा था और हमारे मिसाइल प्रौद्योगिकी परीक्षणों और इसरो के अंतरिक्ष कार्यक्रमों की ट्रैकिंग की क्षमता रखता है। पाकिस्तान सियाचिन ग्लेशियर पर और चीन लेह-लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश पर दावा जताता है। चीनियों ने भूटान, मालदीव्स, बंगलादेश और नेपाल में भारतीय प्रभाव को कम करते हुए घुसपैठ भी की। भारत लगातार गुप्त युद्धों के खतरे में रहा है, इसलिए हमारी सीमाओं को पर्याप्त रूप से संचालित किया जाना चाहिए और दूरसंचार के परिष्कृत उपकरणों के साथ-साथ गोला-बारूद से लैस होना चाहिए। 

जैसे-जैसे हमारे विरोधी अपना रक्षा खर्च बढ़ा रहे हैं, भारत को भी अपने रक्षा बजट की जांच करनी चाहिए। भारत की रक्षा नीति का उद्देश्य एशियाई उपमहाद्वीप में स्थायी शांति बनाए रखना और उसे बढ़ावा देना तथा बाहरी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए रक्षा बलों को पर्याप्त रूप से लैस करना है। इसमें भू-रणनीतिक हित शामिल नहीं हैं। भारत की रक्षा रणनीति की समीक्षा करने की भी जरूरत है। 

हमारे देश में सैनिकों की कटौती कुछ कारणों से संभव नहीं है। सबसे पहले, भारत एक अत्यधिक भेद्य देश है जो सदियों से अपने धार्मिक, समाजवादी, जातिवादी कारणों से कई दुश्मनों से घिरा हुआ है। दूसरे, हमारी बढ़ती जनसंख्या एक अभिशाप रही है लेकिन सेना अवसर देती है और हमारे समाज को अद्वितीय बनाती है और लोगों में एकता की सोच फैलती है, जो हमारे देश को बांधने वाली एक शक्ति है। 

तीसरा, चीनी सैनिकों में कटौती करने की खबरों के कारण ही सैनिकों को कम करना विनाशकारी है क्योंकि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि चीन वास्तव में ऐसा कर रहा है या भारत को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उसकी कूटनीति है। चौथा, यदि हमारा राजनीतिक-नौकरशाही नेतृत्व चाहता है कि भारत विश्व स्तरीय सशस्त्र बलों के साथ एक शक्तिशाली देश बन जाए, तो ऐसा करने के लिए भारत को एक अत्यधिक मशीनीकृत और आधुनिक कृषि प्रधान देश बनाना है, जिसमें अतिरिक्त खाद्यान्न उपलब्ध हो और अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर पैदा हों। 

सेना को कम करने की नहीं, बल्कि वायु सेना, नौसेना और विशेष बलों को रक्षा मंत्रालय द्वारा बेहतर नैटवर्क उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है। तीनों सेवाओं के एकीकरण से बड़ी बचत हो सकती है। भारत के लिए महत्वपूर्ण है कि वह अपनी रक्षा प्रणाली के किसी भी महत्वपूर्ण सुधार और पुनर्गठन को आगे बढ़ाए। हम नई पीढ़ी के अंतरिक्ष और इलैक्ट्रोमैग्नेटिक युद्ध के लिए तैयार नहीं हैं। यहां तक कि हमारी नौसैन्य क्षमताएं भी पर्याप्त नहीं हैं। नई पीढ़ी की युद्ध प्रणालियों के लिए कुछ करने का समय आ गया है, ताकि शत्रु हमारे विरुद्ध युद्ध करने की हिम्मत न जुटा पाएं।-राहुल देव 
 

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