जे तूं न संभलेया राजेया, वे तैनूं करू मखौलां जग्ग

Edited By ,Updated: 24 Sep, 2021 05:19 AM

je tum na sambleya rajeya they tainu karu makhaulan jagga

छोटे -छोटे होते थे तो गली-मोहल्ले में शादियों पर बुजुर्ग महिलाएं गीत गातीं जिसके शुरूआती बोल ये

छोटे -छोटे होते थे तो गली-मोहल्ले में शादियों पर बुजुर्ग महिलाएं गीत गातीं जिसके शुरूआती बोल ये होते : 

राजेया राज करेंदेया
वे तूं सांभ के रक्खीं पग्ग
जे तूं न संभलेया राजेया
वे तैनूं करू मखौलां जग्ग 

इस लोकगीत के बोलों के भाव बहुत सीधे-सपाट हैं। महिलाएं तत्कालीन शासक को चेता रही हैं। समझ दे रही हैं कि यदि तूने अपनी पगड़ी न संभाली तो जगत में मजाक का पात्र बन जाएगा। समझदार शासक हमेशा अपने साथ समझदार सलाहकार रखते रहे, जबकि मूर्खों के साथ मूर्ख टोले घूमते-फिरते रहते थे। उनकी उलटी सलाहें शासकों को औंधे मुंह गिरा देती थीं, इन बातों का इतिहास गवाह है। राजा अकबर का सलाहकार बीरबल बड़ा चॢचत था और समझदार भी बहुत था। मजाकिया भी बहुत था और राजा को मजाक-मजाक में ही समझदारीपूर्ण सलाह दे जाता था। उसने कई बार राजा अकबर को बड़ी-बड़ी मुसीबतों से नेक सलाहें देकर निकाला था। अत: आज डायरीनामा में हम कुछ ऐसे सलाहकारों की सलाहों की बातें करते हैं। 

यदि आज हमारे राजा के भी सलाहकार सूझवान होते तो राजा जी अपने राजपाट का समय पूरा जरूर करते। राजा के सलाहकारों बारे मीडिया में कई लोगों ने राजा को सलाह दी थी मगर वह सलाह नजरअंदाज कर दी गई। एक समझदार व्यक्ति ने राजा को यह सलाह भी दी थी कि जितने अधिक सलाहकार होंगे उतनी ही सलाहें कमजोर होंगी, वजनदार बात करने वाला तो एक व्यक्ति ही बहुत होता है। 

महाराजा पटियाला का विभाग : महाराजा पटियाला यादविंद्र सिंह को किसी ने समझदारीपूर्ण सलाह दी थी कि पंजाब की मातृभाषा पंजाबी के विकास तथा प्रचार के लिए पंजाबी विभाग स्थापित करो तो राजा ने सलाह पर तुरन्त गौर करते हुए 1948 में महकमा पंजाबी बनाया और किले में ही उसका दफ्तर खोल दिया। बाद में इस महकमे का नाम बदल कर भाषा विभाग पंजाब रखा गया। भाषा के विकास तथा सेवा की खातिर इस विभाग की बहुत उपलब्धियां हैं। इस विभाग से बड़े-बड़े मंत्री बने। करोड़ों रुपए का बजट होता था। पर आजकल मातृभाषा के इस विभाग की हालत खस्ता से भी खस्ता हो गई है और इसके पल्ले फूटी कौड़ी भी नहीं है। 

7 वर्षों से शिरोमणि लेखकों को दिए जाने वाले पुरस्कार बकाया पड़े हैं और लेखक पैंशन की प्रतीक्षा में भूखे मर रहे हैं। यदि कोई समझदार सलाहकार कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नजदीक बैठा हुआ उनके कान में कह देता कि राजा जी आपके पिता द्वारा रखी नींव वाला विभाग बर्बाद हो रहा है और मातृभाषा की दुर्दशा दिनों-दिन देखो कैसी हो रही है, कुछ अच्छा ही कर दें। राजा ने सलाह पर अमल करना था, मगर किसको सूझनी थीं इस तरह की सलाहें? यहां तो और तरह की सलाहें ही खत्म नहीं होतीं। 

हमारा लेखक राजा : यह सबको पता है कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह एक प्रकांड नेता के साथ-साथ सूझवान लेखक भी हैं। वह अब तक कई किताबें लिख चुके हैं और अभी भी लिख रहे हैं। उनके द्वारा अंग्रेजी में लिखी गई पुस्तकों का अनुवाद हिंदी तथा पंजाबी में भी हुआ है। कैप्टन साहब की निजी लाइब्रेरी तो है ही कमाल का खजाना। उन्होंने दुनिया भर की महत्वपूर्ण तथा महंगी पुस्तकें बड़ी संख्या में इकट्ठी की हुई हैं तथा सोने से पहले रोज एक घंटा पढ़ते हैं। हैरानी इस बात की है कि पुस्तकें लिखने-पढऩे वाले मुख्यमंत्री को ही पुस्तकों वाले विभाग का जरा भी ध्यान नहीं आया। अन्य किसी को तो क्या आना है। कैप्टन सरकार से पहले तीन साल के शिरोमणि पुरस्कार बादल सरकार देना भूल गई और अब कैप्टन साहब 4 साल के भूल गए। 

एक बार बड़े बादल साहब को एक लेखक ने पूछा था कि कभी कोई किताब पढ़ते हो? बादल साहब ने हंसकर कहा था कि 30 वर्ष हो गए मैंने कोई किताब नहीं पढ़ी और भाई न ही वक्त होता है इन कार्यों के लिए। पूछने वाला आगे कुछ नहीं बोल सका। परमात्मा खैर करे! मगर नई बनी चन्नी साहब की सरकार से आशा करते हैं कि सारी कसर पूरी कर दें और पंजाबी जगत से यश कमाएं।-मेरा डायरीनामा निंदर घुगियाणवी 
 

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