लद्दाख राजनीति नहीं, राष्ट्रनीति का विषय

Edited By Updated: 15 Oct, 2025 05:37 AM

ladakh is not a matter of politics but a matter of national policy

विज्ञान, शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में नवाचार के लिए दुनिया में सम्मानित सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एन.एस.ए.) में गिरफ्तारी पर तो सर्वोच्च न्यायालय सुनवाई करेगा ही, लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य के लिए चर्चित और रणनीतिक रूप से संवेदनशील...

विज्ञान, शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में नवाचार के लिए दुनिया में सम्मानित सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एन.एस.ए.) में गिरफ्तारी पर तो सर्वोच्च न्यायालय सुनवाई करेगा ही, लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य के लिए चर्चित और रणनीतिक रूप से संवेदनशील लद्दाख की अशांति गंभीर चिंता का विषय है। वांगचुक अपने ही देश में नायक से खलनायक बन गए हैं। 2009 की लोकप्रिय फिल्म ‘थ्री ईडियट्स’ उन्हीं से प्रेरित थी। लद्दाख को राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर 5 साल से जारी आंदोलन में 24 सितंबर को भड़की हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए 2 दिन बाद गिरफ्तार कर वांगचुक को जोधपुर जेल भेज दिया गया।

एक के बाद एक हमारे सीमावर्ती क्षेत्र अशांति के शिकार हो रहे हैं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक है। असंतोष देर-सवेर अलगाव की भावना का कारण बनता है या निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा बना दिया जाता है। 1947 में विभाजन के साथ मिली आजादी के बाद पाकिस्तानी कबाइलियों ने घुसपैठ की साजिश लद्दाख की ओर से ही रची थी। भारतीय सेना ने पाक घुसपैठियों को खदेड़ कर द्रास, कारगिल और लद्दाख को मुक्त कराया था। चीन ने भी 1949 में नुब्रा घाटी और शिनजियांग के पुराने व्यापारिक मार्ग को बंद कर 1955 में शिनजियांग और तिब्बत को जोडऩे के लिए सड़क निर्माण शुरू किया। बाद में चीन ने पाकिस्तान के लिए कराकोरम हाईवे भी बनाया।  जलवायु संरक्षण के लिए अपरिहार्य लेह-लद्दाख भारत की सुरक्षा के लिए भी संवेदनशील और महत्वपूर्ण है। टैरिफ वॉर पर अमरीका से तनातनी के बीच चीन से फिर पींगें बढ़ाने की कूटनीति में उसके विश्वासघाती चरित्र को भुला देना आत्मघाती हो सकता है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भी चीन पूरी तरह पाकिस्तान के साथ यानी भारत के विरुद्ध खड़ा था। 

पर्यटन पर निर्भर आजीविका वाले लद्दाखी मेहमाननवाजी से ले कर राष्ट्रभक्ति तक तमाम सकारात्मक चीजों के लिए जाने जाते हैं। वे पर्यावरण के संरक्षण के लिए समॢपत और निरंतर प्रयासरत भी हैं। हाल के दशकों में लद्दाख में विज्ञान, शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में तमाम नवाचार के नायक सोनम वांगचुक रहे हैं। उन्होंने सेना के लिए माइनस डिग्री तापमान में आराम से रहने-सोने के लिए विशेष टैंट बनाए, तो जल संरक्षण के लिए कृत्रिम ग्लेशियर का प्रयोग भी किया। इधर विदेशी पुरस्कारों-सम्मानों को भारत विरोधी साजिशों से जोड़ कर देखने-दिखाने की प्रवृत्ति बढ़ी है लेकिन अगर खुलासे किसी आंदोलन-अनशन के बाद किए जाएं तो उनकी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगते हैं। 2019 में जब नरेंद्र मोदी सरकार ने विशेष दर्जा देने वाली धारा-370 हटाते हुए जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित किया, तब वहां से समर्थन में उठने वाली (भाजपा के अलावा) सबसे मुखर आवाज सोनम वांगचुक की ही थी। शायद इसलिए भी कि जम्मू-कश्मीर की सत्ता-राजनीति में लद्दाख की आवाज अक्सर अनसुनी ही रही। 

संविधान के अनुच्छेद 244 (2) के तहत छठी अनुसूची में जनजातीय क्षेत्रों के लिए स्वायत्त जिलों और स्वायत्त क्षेत्रों के रूप में विशेष प्रशासनिक ढांचे का प्रावधान है। इस ढांचे को सामाजिक रीति-रिवाज, उत्तराधिकार के अलावा भूमि और जंगल संरक्षण के लिए कानून बनाने का अधिकार है। पांच साल से लेह एपैक्स बॉडी और कारगिल डैमोक्रेटिक एलायंस के बैनर तले शांतिपूर्ण आंदोलन की मुख्य मांग विधानसभा के साथ पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी सूची में शामिल करने की ही है। लेह से दिल्ली तक 1000 किलोमीटर का पैदल मार्च तथा 5 बार अनशन बताता है कि आंदोलन मूलत: गांधीवादी और शांतिपूर्ण चरित्र का ही रहा। फिर अचानक हिंसा किसने भड़काई? इस सवाल के जवाब के लिए राजनीति से ले कर राष्ट्रीय सुरक्षा तक, हर कोण से विश्वसनीय जांच की जरूरत है। हिंसा की न्यायिक जांच उस दिशा में पहला कदम हो सकती है। बेशक विपक्ष को लद्दाख में प्रतिनिधिमंडल भेजने का अधिकार है, पर ऐसे संवेदशनशील मामले राजनीति नहीं, राष्ट्रनीति के विषय होने चाहिएं। 

जम्मू-कश्मीर का अंग रहते धारा-370 के तहत लद्दाख में भी बाहरी लोगों के जमीन खरीदने और सरकारी नौकरी करने पर प्रतिबंध था। लद्दाखियों का आरोप है कि 2019 के बाद बाहरी लोगों द्वारा जमीन की खरीद-फरोख्त का खेल शुरू हो गया है और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को ताक पर रख विकास की वैसी ही परियोजनाएं बनाई जा रही हैं, जो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सरीखे पर्वतीय राज्यों में विनाशकारी परिणाम दे रही हैं। लद्दाख की भौगोलिक, रणनीतिक और पर्यावरणीय संवेदनशीलता का तकाजा है कि निवासियों को विश्वास में लेकर उनकी जायज ङ्क्षचताओं का स्वीकार्य समाधान निकाला जाए।-राज कुमार सिंह

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