चीन के अरबों डॉलर के कर्ज-जाल में फंसा लाओस

Edited By ,Updated: 07 Dec, 2022 06:45 AM

laos trapped in china s billion dollar debt trap

दक्षिण -पूर्वी एशियाई देश लाओस इन दिनों चीन के भारी कर्ज-जाल की गिरफ्त में है। चीन ने लंबे समय से लाओस के आधारभूत ढांचे में बड़े स्तर पर निवेश किया है, इसके साथ ही कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण स्थिति और भी अधिक बिगड़ चुकी है।

दक्षिण -पूर्वी एशियाई देश लाओस इन दिनों चीन के भारी कर्ज-जाल की गिरफ्त में है। चीन ने लंबे समय से लाओस के आधारभूत ढांचे में बड़े स्तर पर निवेश किया है, इसके साथ ही कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण स्थिति और भी अधिक बिगड़ चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजैंसी मूडीज ने लाओस की क्रैडिट रेटिंग को घटाकर सी.ए.ए.3 पर ला पटका है। इसका मतलब है कि लाओस पर बहुत बड़ा कर्ज है और इस समय उसके पास कर्ज चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं। लाओस के दिवालिया होने का जोखिम बहुत ज्यादा है। 

विश्व बैंक की अप्रैल में छपी रिपोर्ट के अनुसार लाओस के ऊपर सार्वजनिक ऋण और सार्वजनिक रूप से गारंटीकृत ऋण लाओस के वर्ष 2021 में सकल घरेलू उत्पाद के 88 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच गया है। अगर मुद्रा में इस ऋण का आकलन करें तो यह 14.5 अरब डॉलर है, जिसमें से आधे से अधिक ऋण चीन का है, जो उसने लाओस को चीन-लाओस रेलवे परियोजना के लिए दिया है। चीन के पास इस समय लाओस में 813 परियोजनाएं हैं, जिनकी कीमत 16 अरब डॉलर है। इसी तरह से कई दूसरी परियोजनाओं में भी चीन ने निवेश किया है और सारी परियोजनाओं को चीनी कंपनियां पूरा कर रही हैं, जिसके लिए चीनी बैंकों ने पैसे उधार दिए हैं। 

चीन अपनी बैल्ट एंड रोड परियोजना में अब तक आधारभूत ढांचे के विकास के लिए 800 अरब डॉलर खर्च कर चुका है। हालांकि इसके पीछे चीन की मंशा अपने देश में तैयार उत्पादों को दूसरे देशों के बाजार में बेचना है, जिसका सीधा लाभ चीन को ही मिलेगा। इसके साथ ही चीन इस परियोजना से चीनी निर्माण कंपनियों को ठेका दिलवाकर लाभ कमा रहा है। 

एक बार जो देश चीन के कर्ज-जाल में फंस जाता है, फिर उसका बाहर निकलना असंभव हो जाता है। जो देश चीन का कर्ज नहीं लौटा पाते, उनमें चीन बंदरगाह, हवाई अड्डा, खनिजों की खदानें पट्टे पर ले लेता है। जैसे यूगांडा का एंटेबी एयरपोर्ट, श्रीलंका की हम्बनटोटा बंदरगाह, जिबूती में नौसैन्य अड्डे के लिए समुद्र तट का बड़ा इलाका ले लेना। अभी हाल ही में चीन को जवाब देने और उसे इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व बढ़ाने से रोकने के लिए 7 देशों ने मिलकर आम लोगों, व्यापारियों और वित्तीय संस्थानों से पैसे लेकर आधारभूत ढांचे को बनाने की प्रतिज्ञा ली है। 

एड डाटा लैब की रिपोर्ट के अनुसार, लाओस में चीन ने जितना पैसा निवेश किया है, वह 12.2 अरब डॉलर है, जो विश्व बैंक के आकलन से भी ज्यादा है। पिछले 18 वर्षों में लाओस की सरकार ने चीन से 5.57 अरब डॉलर का ऋण लिया है लेकिन यह जानकारी असल पैसों का बहुत छोटा हिस्सा है। इसके अलावा भी लाओस के ऊपर पेइचिंग का 6.69 अरब डॉलर का कर्ज बकाया है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार लाओस को वर्ष 2025 तक हर वर्ष 1.3 अरब डॉलर का विदेशी ऋण चुकाना होगा, जो संघीय मुद्रा भंडार और कुल घरेलू राजस्व के आधे के बराबर है। 

विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार लाओस की अर्थव्यवस्था 3.8 फीसदी की गति से आगे बढ़ेगी, लेकिन इस गति से अर्थव्यवस्था आगे बढऩे से लाओस चीन का कर्ज कभी नहीं चुका पाएगा। वहीं लाओस के वित्तमंत्री बाऊंचोम उबोनपेसुथ ने कहा कि पहले लिए गए कर्ज देश की प्रगति के लिए जरूरी थे, जैसे चीन-लाओस रेलवे के लिए लाओस ने 5.9 अरब डॉलर का कर्ज चीन से लिया था, जिसने चीन के कुनमिंग से लाओस की राजधानी वियनतियान को जोड़ा था, लेकिन इसमें 70 फीसदी हिस्सेदारी चीन की और 30 फीसदी लाओस की थी। 

लाओस को रेलवे से जो उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हुई और न तो रेलवे वह संभावित कमाई कर रही है और न ही लाओस का कर्ज उतर रहा है बल्कि अपनी ऊंची ब्याज दरों की वजह से दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। चीन कर्ज माफ नहीं करता, वह कर्ज अदा करने की मियाद बढ़ा जरूर देता है, ताकि उसे लंबे समय तक लाभ मिलता रहे। इसे देखते हुए लगता नहीं कि लाओस जल्दी ही चीन के कर्ज-जाल से बाहर निकल पाएगा।

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