ममता खुद को एक परिपक्व नेता के तौर पर पेश कर रही हैं

Edited By ,Updated: 03 Aug, 2021 06:46 AM

mamta is projecting herself as a mature leader

विपक्षी पार्टियों को एकजुट रखने के एक और प्रयास में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गत सप्ताह राजधानी का दौरा किया। उन्होंने सभी सही लोगों से मुलाकात की तथा विपक्षी एकता बनाए रखने के लिए पर्याप्त आवाज उठाई। जहां

विपक्षी पार्टियों को एकजुट रखने के एक और प्रयास में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गत सप्ताह राजधानी का दौरा किया। उन्होंने सभी सही लोगों से मुलाकात की तथा विपक्षी एकता बनाए रखने के लिए पर्याप्त आवाज उठाई। जहां अन्य असफल हुए हैं क्या वह सफल हो पाएंगी? वह 2024 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देने के लिए तैयार हैं। 

दिलचस्प बात यह है कि यह पहली बार नहीं है कि वह विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए प्रयास कर रही हैं। उन्होंने 2019 के आम चुनावों से पहले तीसरा मोर्चा गठित करने का प्रयास किया था लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। विपक्षी खेमे में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़ा करने के लिए कोई चेहरा नहीं है। सबसे बढ़कर कांग्रेस पार्टी के बिना गणितीय तौर पर कोई सरकार नहीं बन सकती। 

इस बार ममता ने जल्दी शुरूआत की है, आगामी लोकसभा चुनावों से लगभग 3 वर्ष पहले। बनर्जी का कहना है कि ‘वह डाक्टर कुछ नहीं कर सकता जो रोगी के मर जाने के बाद आता है। रोगी को बचाया जा सकता है यदि समय पर उसका उपचार किया जा सके। अब यह आपका समय है, जितना अधिक समय आप बर्बाद करेंगे उतनी ही स्थिति खराब होती जाएगी।’ वह अपने विजयी नारे ‘खेला होबे’ को एक राष्ट्रीय नारा बनाना चाहती हैं। 

नि:संदेह लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल जीतने के बाद ममता बनर्जी का कद बढ़ा है। उन्होंने यह दिखाने के लिए पर्याप्त संकेत उछाले हैं कि वह अब एक राष्ट्रीय भूमिका के लिए तैयार हैं। इसी भूमिका के लिए तैयारी हेतु वह दिल्ली आईं। उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने उनके दौरे के लिए पहले ही जमीन तैयार कर रखी थी। ममता ने घोषणा की है कि ‘क्षेत्रीय दल देश का नेतृत्व करेंगे, अब हम किसी के सामने और नहीं झुकेंगे। अब समय आ गया है।’ विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक 2024 के लोकसभा चुनावों से पूर्व भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त चेहरा पेश करना है। बहुत से क्षेत्रीय क्षत्रप हो सकते हैं जो विपक्ष का चेहरा होने का दावा करते हैं। ममता ने एक बार फिर बिल्ली के गले में घंटी बांधी है। 

इससे भी अधिक, ममता अब समझती हैं कि कांग्रेस के बिना कोई भी विपक्षी मोर्चा नहीं हो सकता। गणितीय तौर पर सरकार का गठन करना कठिन है। कांग्रेस के रवैये में नर्मी लाने के लिए उन्होंने अपने दौरे के दौरान सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी के साथ मुलाकात की। यद्यपि कांग्रेस पार्टी सबसे पुराना राष्ट्रीय दल है और इसने देश पर एक ल बे समय तक शासन किया है। वर्तमान में पार्टी को बहुत अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इनमें नेतृत्व का संकट तथा पार्टी का कमजोर होना शामिल है। स्वास्थ्य कारणों से अब सोनिया गांधी पृष्ठ भूमि में चली गई हैं। 2004 में वह एक पार्टी नेता से दूसरे तक गईं और सफलतापूर्वक विरोधी विपक्षी खेमे को एकजुट किया। उनके बेटे राहुल गांधी अभी भी तैयार नहीं हैं। 

दूसरी समस्या यह है कि क्षेत्रीय क्षत्रप राहुल गांधी को अपने नेता के तौर पर स्वीकार करने के लिए बहुत उत्सुक नहीं हैं। अपने तौर पर कांग्रेस किसी भी क्षेत्रीय प्रमुख बारे अपने नेता के तौर पर विचार करने की इच्छुक नहीं है। इससे भी बढ़ कर बीजद, समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी जैसे कुछ दल तटस्थ हैं। इसीलिए 2024 से पूर्व एक संयुक्त विपक्ष की कल्पना करना आसान नहीं है। 

ममता ने यह सोच आगे बढ़ाई है कि वह विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए उत्प्रेरक हो सकती हैं। उनके अन्य क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ अच्छे संबंध हैं। इनमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार, ओडिशा के मु यमंत्री नवीन पटनायक, तेलंगाना के मु यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के अतिरिक्त आंध्र प्रदेश के मु यमंत्री वाई.एस. जगनमोहन रैड्डी तथा दिल्ली के मु यमंत्री अरविंद केजरीवाल शामिल हैं। दिल्ली के वर्तमान दौरे के दौरान ऐसा दिखाई देता है कि ममता ने खुद को एक परिपक्व नेता के तौर पर पेश करने का मन बना लिया है जो एक कड़वी राजनीतिक शत्रुता में भद्रता ला सकती हैं। ऐसा तब दिखाई दिया जब उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की। झुके हुए प्रधानमंत्री के सामने हाथ जोड़ कर उनका अभिवादन करती ममता का चित्र वायरल हो गया। 

राष्ट्र मीडिया के साथ अपनी बातचीत में भी उन्होंने इसी रूपरेखा के अनुसार बात की। उन्होंने अपनी एक पंक्ति के साथ मीडिया को अनुमान लगाने के लिए छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि ‘मैं समझती हूं कि यह सब स्वत: हो जाएगा...मैं आशावान हूं’ तथा ‘मैं नेतृत्व नहीं करूंगी, देश नेतृत्व करेगा...हम सभी अनुसरण करने वाले हैं’ आदि। अपने भाषण में बनर्जी ने अपने विजयी नारे ‘खेला होबे’ को राष्ट्रीय मंच पर पहुंचा दिया तथा घोषणा की कि 2024 के चुनावों से पहले सभी राज्यों में ‘खेला’ होगा। यह नारा इस विचार को रेखांकित करता है कि भाजपा को पराजित करना संभव है। विपक्ष आगामी लोकसभा चुनावों तथा बहुत से राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले एक कथानक तैयार करने की संभावना देखता है। 

परिणाम जो भी हो, दीदी खेल में बने रहने के लिए दृढ़ निश्चयी हैं। उन्होंने लड़ाई को देश बनाम नरेंद्र मोदी के तौर पर परिभाषित किया है। उनकी रणनीति पहले विपक्षी दलों को एकजुट करना और फिर एक ऐसा अनुकूल कथानक खोजना है जो सभी को स्वीकार्य तथा बाद में एक नेता पर विचार करना।-कल्याणी शंकर

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