‘यह जवाब मोदी दे सकते हैं, नेहरू नहीं’

Edited By ,Updated: 22 Feb, 2021 03:56 AM

modi can answer this not nehru

पहली बार भारत के कुछ हिस्सों में पैट्रोल की कीमत 100 रुपए के पार पहुंच चुकी है। एक समानांतर घटनाक्रम यह है कि सरकार को प्राप्त होने वाले कुल राजस्व का 33 प्रतिशत या एक तिहाई अब ईंधन पर कर के रूप में आता है। भारत के उपभोक्ता उस पैट्रोल और डीजल पर कर...

पहली बार भारत के कुछ हिस्सों में पैट्रोल की कीमत 100 रुपए के पार पहुंच चुकी है। एक समानांतर घटनाक्रम यह है कि सरकार को प्राप्त होने वाले कुल राजस्व का 33 प्रतिशत या एक तिहाई अब ईंधन पर कर के रूप में आता है। भारत के उपभोक्ता उस पैट्रोल और डीजल पर कर की उच्चतम दर का भुगतान करते हैं जिसका वे उपभोग करते हैं। जो राष्ट्र उच्च करों के साथ भारत का अनुसरण करते हैं वे सभी यूरोपीय राष्ट्र, अमरीका और जापान हैं। ये निश्चित रूप से ऐसे देश हैं जहां उपभोक्ता हमसे बेहतर स्थिति में हैं और सरकार वास्तव में उन पर बिना कोई घाव दिए उनसे पैसे निकाल सकती है। 

भारत में अधिकांश उपभोक्ता तो गरीब हैं और ईंधन पर एक कर हम सभी को समान रूप से प्रभावित करता है और गरीबों को असमान रूप से नुक्सान पहुंचाता है। आटो रिक्शा मालिक तथा उबेर ड्राइवर ने अपने वाहन को कार्पोरेट कार्यकारी और बिजनैस टाइकून की तरह ईंधन देने के लिए भुगतान किया है। यह थोड़ा समझ में आता है। आदर्श रूप से कराधान के लिए उन लोगों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जो अधिक भुगतान कर सकते हैं और ये आयकर जैसे प्रत्यक्ष करों के माध्यम से होता है लेकिन भारत में कई कारणों से ऐसा नहीं हुआ है। अपना रिटर्न दाखिल करने वाले लोगों का आधार तो बढ़ गया है लेकिन प्रत्यक्ष करों के रूप में आने वाला वास्तविक धन अनुपातिक रूप से नहीं बढ़ा है। 

दूसरी वजह यह है कि ईंधन से कर बढ़ गया है तथा माल और सेवा कर (जी.एस.टी.) का क्या हुआ है। जी.एस.टी. अन्य करों की शृंखला को बदलने और एकल बाजार बनाने के लिए था जहां अधिक व्यापार और अधिक वाणिज्य होगा ताकि अर्थव्यवस्था का विस्तार हो सके मगर जी.एस.टी. उतने राजस्व का उत्पादन करने में सक्षम नहीं था जितना करों ने इसे बदल दिया। बाजार में भी वृद्धि नहीं देखी गई। 

वास्तव में पिछले 36 महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी गिरावट आई है। जनवरी 2018 से शुरू हुई तिमाही में ये करीब 8 प्रतिशत वृद्धि के साथ और जनवरी 2020 से शुरू होने वाली तिमाही में लगभग 3 प्रतिशत तक गिरी है। उस अवधि के बाद दशकों में अर्थव्यवस्था वास्तव में पहली बार सिकुड़ती हुई देखी गई है। इसलिए विकास के लिए अल्पकालिक संभावनाएं अच्छी नहीं हैं और सरकार को तत्काल ही ऐसे उपायों की तलाश करनी चाहिए जिसमें वह खुद को फंड कर सके। इसका आसान तरीका ईंधन के माध्यम से है। 

मोदी के पद्भार संभालने से पहले पैट्रोल और डीजल की बिक्री डी-रैगुलेट कर दी गई थी। डी रैगुलेशन का तर्क यह था कि भारतीय राज्यों ने उपभोक्ता को सबसिडी दी और यह तब दी जब वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत बढ़ रही थी। यहां पर ज्यादातर राजकीय तेल कारोबार घाटे में चल रहे थे। उपभोक्ता को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कच्चे तेल की कीमत कितनी है लेकिन अब उलटा हो गया है। सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कच्चे तेल की कीमत कितनी है। यदि कीमत कम हो जाती है तो सरकार अधिक लाभ लेती है और पैट्रोल और डीजल की खुदरा दर को कम नहीं करती। यदि कीमत बढ़ जाती है तो वह दरों को और बढ़ा देती है। यह डी-रैगुलेशन का उद्देश्य नहीं था। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि यह उनकी गलती नहीं है और पिछली सरकारों को भारत को आयातित कच्चे तेल पर निर्भर रखने के लिए दोष देते हैं लेकिन दुनिया के तमाम देशों का यही हाल है जिनके पास तेल का कोई भंडार नहीं है। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत हाल ही की घटना है और कीमत के मामले में जीवाश्म ईंधन से मेल खाने की उनकी क्षमता कुछ और ही हाल की है। हमें पता होना चाहिए कि आटो मोबाइल उपयोग में पैट्रोल और डीजल के क्षेत्र में यह समानता अभी भी नहीं आई है। 

पैट्रोल और डीजल बहुत ही घने ईंधन हैं, लगभग 50 किलो का ईंधन या पूरी टंकी कार को 700 किलोमीटर तक ले जा सकती है। इसे करने के लिए एक इलैक्ट्रिक कार को एक लिथियम आयन बैटरीपैक की आवश्यकता होती है जो कम से कम 45 या किलोवाट  घंटे होना चाहिए। इस बैटरी की कीमत लगभग 5000 अमरीकी डालर है जो 4 लाख रुपए के करीब है। कार के बाकी हिस्सों और एक वाहन की न्यूनतम लागत को जोड़ें जो पैट्रोल और डीजल कार के समान हो सकती है, आज लगभग 10 लाख रुपए है जो भारत के खरीदारों के तीन चौथाई या अधिक बजट से बाहर है। ये सब समय के साथ बदल जाएगा और बैटरी पैक की लागत फिर गिर जाएगी क्योंकि अधिक से अधिक राष्ट्र पर्यावरणीय कारणों से इलैक्ट्रिक वाहनों को खरीदते हैं लेकिन यह मानना गलत है कि यह आज किया जा सकता है और निश्चित रूप से गलत है कि यह अतीत में हो सकता है। 

आखिरी पहलू बुनियादी ढांचे का है। कारों में लिथियम आयन बैटरियां घर पर चार्ज होने में लगभग 10 घंटे का समय लेती हैं। अमरीका, यूरोप तथा चीन के नैटवर्क में दसियों हजार डायरैक्ट करंट फास्ट चार्जर्स हैं जो अपने राष्ट्रों का विस्तार करते हैं। वास्तविकता यह है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी ने चाहे जो भी किया हो, आज हम पैट्रोल तथा डीजल पर ही निर्भर रहेंगे। सवाल यह है कि क्या सरकार को हम में से कर का एक बड़ा हिस्सा निकालना चाहिए, यह जवाब मोदी दे सकते हैं, नेहरू नहीं?-आकार पटेल

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!