Edited By ,Updated: 24 Jan, 2024 05:56 AM
सितंबर 1984, विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या की बाबरी मस्जिद के विरुद्ध अभियान छेड़ा और उसके ताले खोलने की धमकी दी। दो वर्ष बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसकी स्वीकृति दी और हिन्दुओं ने मस्जिद में प्रवेश किया।
सितंबर 1984, विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या की बाबरी मस्जिद के विरुद्ध अभियान छेड़ा और उसके ताले खोलने की धमकी दी। दो वर्ष बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसकी स्वीकृति दी और हिन्दुओं ने मस्जिद में प्रवेश किया। वर्ष 1989, राजीव गांधी ने मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दी और अयोध्या से लोकसभा चुनाव प्रचार आरंभ किया तथा राम राज्य लाने का वायदा किया।
25 सितंबर 1990, भाजपा अध्यक्ष अडवानी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा आरंभ की, जो अक्तूबर में अयोध्या पहुंच कर संपन्न हुई। इस रथ यात्रा से यह स्मारक धार्मिक संदर्भ से बाहर निकल गया और भाजपा को हिन्दू राष्ट्रवाद की भावना भरने के लिए एक सशक्त राजनीतिक साधन मिल गया और तब से यह भारत का एक प्रभावशाली राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। उसके बाद 6 दिसंबर, 1992 को कार सेवकों ने मस्जिद को ध्वस्त किया। 9 नवंबर 2019, उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक सर्वसम्मत निर्णय में कहा कि अयोध्या में 2.77 एकड़ का विवादित भूखंड, जहां पर बाबरी मस्जिद है, राम का जन्म स्थान है, इसे राम लला को सौंप दिया जाएगा। इस मामले में राम लला तीन पक्षकारों में से एक थे।
20 जनवरी, 2024, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण को ठुकरा दिया और इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भाजपा का समारोह बताया और यही ‘इंडिया’ गठबंधन के विपक्षी नेताओं ने भी किया। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने इसे राजनीतिक दिखावा बताया तो राकांपा के पवार, सपा के अखिलेश यादव और आप के केजरीवाल ने कहा कि वे वहां बाद में जाएंगे। द्रमुक के स्टालिन ने कहा कि मस्जिद को गिराने के बाद मंदिर के निर्माण को राज्य स्वीकार नहीं कर सकते। उत्साहित भाजपा ने विपक्ष के इस निर्णय पर कहा कि विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी से ईष्र्या करता है, उनके प्रति विद्वेष रखता है और उनमें हीन भावना है।
भाजपा के लिए राम लला की प्राण प्रतिष्ठा एक महत्वपूर्ण क्षण है, जो हिन्दू पहचान और आस्था से जुड़ा हुआ है और आगामी चुनावों में राजनीतिक निर्वाण प्राप्त करने का मार्ग है। 1984 में लोकसभा में केवल 2 सीटों से लेकर 2019 में भाजपा की लोकसभा में 303 सीटें आ गई थीं और अब वह 400 से अधिक सीटें लाने की आशा कर रही है। नि:संदेह मोदी ने राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रमाणित कर दिया है कि वे आम आदमी की रग को पहचानते हैं। सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि राम मंदिर के निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा से सदियों से चला आ रहा विवाद समाप्त हो गया है।
विडंबना देखिए कि ताला कांग्रेस ने खोला, किंतु चाबी भाजपा को मिली और उसे इतिहास में भारत को राम राज्य में बदलने की विरासत मिलेगी। राम भक्त बनाम मौसमी हिन्दू के बारे में विपक्ष और भाजपा की तू-तू, मैं-मैं चल रही है और यह कहा जा रहा है कि धर्म व्यक्तिगत मामला है। कांग्रेस के राहुल गांधी ने कहा कि प्राण प्रतिष्ठा का समय जानबूझकर चुनावों के नजदीक रखा गया है। हिन्दू धर्म अन्य धर्म के लोगों के साथ अत्याचार करने वाला नहीं है। हिन्दू धर्म किसी सिख या किसी मुस्लिम को पीटने वाला धर्म नहीं है, जबकि हिन्दुत्व निश्चित रूप से है।
काश कांग्रेस और कंपनी जनता को हिन्दुत्व के बारे में उपदेश न देती। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उपस्थित न रहकर उन्होंने बहिष्कार की राजनीति अपनाई है, हालांकि वे कट्टर हिन्दू होने का दावा करते हैं और 22 जनवरी को विभिन्न राज्यों में मंदिरों में गए, ताकि उन्हें हिन्दू विरोधी न समझा जाए। किंतु उनमें से अधिकतर को तुष्टीकरण की राजनीति करते देखा जा रहा है। उन्हें टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थक माना जा रहा है, जो मुसलमानों का समर्थन करते हैं। हिन्दू और अतिवादी हिन्दुओं के बीच इस रस्साकशी में धर्म से क्या अपेक्षा की जाती है? प्रश्न उठता है कि क्या हिन्दुत्व और हिन्दूवाद कर्म एक समान हैं? इनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिन्दुइज्म के अनुसार, हिन्दुत्व को एक विचारधारा के रूप में परिभाषित किया गया है और यह हिन्दू जाति की संस्कृति है जबकि हिन्दू धर्म इसका एक तत्व और हिन्दू धर्म हिन्दुओं, सिखों और बौद्धों द्वारा अपनाई जाने वाली धार्मिक प्रथा है।
मरियम वैबस्टर्स की इनसाइक्लोपीडिया ऑफ वल्र्ड रिलिजन में हिन्दुत्व को भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय और धार्मिक पहचान की अवधारणा के रूप में परिभाषित किया गया है। यह शब्द धार्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान पर आधारित भौगोलिक सीमा से परे है और एक सच्चा भारतीय वह है जो इस हिन्दू धर्म को मानता है। 1920 के दशक के आरंभ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक सावरकर ने हिन्दुत्व के मूल तत्वों के बारे में लिखा, जहां पर उन्होंने इसे एक सांझा राष्ट्र, सांझी जाति, सांझी संस्कृति या सभ्यता के रूप में परिभाषित किया है। भारतीय संस्कृति को हिन्दू मूल्यों का प्रकटन कहा है और यह अवधारणा हिन्दू राष्ट्रवादी विचारधारा का मुख्य सिद्धान्त बना। हिन्दुत्व का तात्पर्य साांस्कृतिक राष्ट्रवाद है न कि धार्मिक। उन्होंने कहा कि यदि भारत को अपने मूल तत्वों को बचाए रखना है तो उन्हें सुदृढ़ होकर एकजुट होना होगा और उनकी राय में उनको एकजुट करने का साधन हिन्दू सभ्यता और हिन्दू जीवनशैली है।
वर्ष 1966 में न्यायालय ने कहा कि हिन्दुइज्म को परिभाषित करना असंभव है, यह जटिल है। ऐतिहासिक दृष्टि से इसकी समावेशी प्रकृति है और इसे एक जीवन शैली के रूप में वर्णित किया जा सकता है। नास्तिक और आस्तिक सभी हिन्दू हो सकते हैं यदि वे हिन्दू संस्कृति और जीवन प्रणाली को अपनाते हैं। हिन्दुत्व किसी संगठित धर्म के विरुद्ध नहीं है और न ही यह स्वयं को किसी अन्य धर्म से ऊपर मानता है। स्पष्ट है कि विपक्ष को अधिक कल्पनाशील, राजनीतिक और साहसिक प्रत्युत्तर देना चाहिए। उन्हें एक वैकल्पिक विचार और राजनीति करनी चाहिए। उन्हें कठिन राजनीतिक श्रम करना चाहिए और जनता की भाषा में जनता से संवाद करना चाहिए और उनके उत्थान की बात करनी चाहिए न कि भाजपा द्वारा निर्धारित एजैंडे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए क्योंकि मैदान छोडऩा राजनीति नहीं है।
22 जनवरी आधुनिक भारत का राष्ट्रीय पर्व है क्योंकि इस तरह का कोई अन्य आयोजन नहीं किया गया जिसे केवल भाजपा का प्रचार कहा जा सके। यह भारत को एक संवैधानिक राज्य से एक सभ्यतामूलक राज्य में बदलने का प्रतीक है, जिसकी अपनी विशिष्ट संस्कृति और विरासत है। सत्तारूढ़ वर्ग द्वारा किसी भी धर्म के प्रति पक्षपात दिखाने से बचना चाहिए क्योंकि इससे अंतर-धर्म संबंधों में गंभीर तनाव आ सकता है क्योंकि स्वयं मोहम्मद इकबाल ने राम को इमाम-ए-हिन्द कहा था। नि:संदेह हमारे राजनेताओं को, चाहे राम भक्त हों या रहीम भक्त, आम आदमी की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करना बंद करना चाहिए। राजनीतिक इच्छाशक्ति और अपने प्राधिकार से सरकार और विपक्ष भारत के सुनहरे भविष्य के लिए सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित कर सकते हैं। क्या वे ऐसा करेंगे?-पूनम आई. कौशिश