चीनी विस्तारवादी गतिविधियों की ‘नकेलबंदी’

Edited By ,Updated: 07 Jul, 2020 04:02 AM

restriction of chinese expansionary activities

ब्रिटेन में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या पिछले कुछ दिनों में कम हुई है लेकिन इस रोग से प्रभावित लोगों की संख्या निरंतर बढ़ते जाने से सरकार ङ्क्षचतित है। जनता में महामारी के भय के साथ चीन के प्रति ...

ब्रिटेन में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या पिछले कुछ दिनों में कम हुई है लेकिन इस रोग से प्रभावित लोगों की संख्या निरंतर बढ़ते जाने से सरकार ङ्क्षचतित है। जनता में महामारी के भय के साथ चीन के प्रति घृणा और रोष है। प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन देश में चीनी कंपनियों के बढ़ते फैलाव को रोकने के लिए नया सख्त कानून लाने की सोच रहे हैं, लोगों में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की लहर जोर पकड़ रही है। हाल ही में हांगकांग में नए कड़े सुरक्षा नियम लागू किए जाने से चीन सरकार के विरुद्ध गुस्सा और आक्रोश की यह भावना और भी तीव्र हो गई है। 

प्रमुख समाचारपत्र ‘द मेल’ द्वारा किए गए सर्वे से पता चला है कि 49 प्रतिशत लोगों ने या तो मुकम्मल तौर पर या फिर भारी मात्रा में चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर दिया है। बहु संख्या यह चाहती है कि ब्रिटेन में चीनी वस्तुओं के आयात को यदि पूर्णतया बंद नहीं किया जा सकता तो कम-से-कम उनके ऊपर आयात शुल्क दर में भारी वृद्धि कर दी जाएताकि उनके मूल्य बढ़ जाएं जिससे उन्हें खरीदना महंगा पड़ जाए, दूसरे आम प्रयोग के जो चीनी पदार्थ लोग इसलिए खरीदते हैं कि वो सस्ते मिलते हैं तो सरकार उनका उत्पादन इंगलैंड ही में करने को प्रोत्साहन दे। ब्रिटेन के लोग चीन को इस बात का दोषी भी समझते हैं कि वह इस मामले की जांच करवाए जाने की मांग को स्वीकार करने को तैयार नहीं। 

हांगकांग समझौते के उल्लंघन से कटुता 
चीन के प्रति ब्रिटेन के बढ़ते आक्रोश को इन कारणों के अतिरिक्त चीन सरकार के उस फैसले से भी उग्रता मिली है जिस द्वारा उसने इस सप्ताह हांगकांग में सुरक्षा के नाम पर नया कड़ा कानून लागू किया है। ब्रिटेन का कहना है कि यह कानून लागू कर चीन ने उस समझौते का उल्लंघन किया है जो ब्रिटेन और चीन के बीच उस समय हुआ था जब ब्रिटेन ने 1997 में हांगकांग को चीन के हवाले किया था। हांगकांग उस समय एक उपनिवेश के रूप में ब्रिटेन के अधीन था। 

तब दोनों देशों के बीच हुए समझौते के अनुसार चीन ने यह वचन दिया था कि वह हांगकांग के लोगों पर अगले 50 वर्ष तक ऐसा कोई कानून लागू नहीं करेगा जिससे मानव अधिकारों का हनन होता हो। इस सप्ताह लागू किए गए सख्त कानून द्वारा हांगकांग के लोगों को सभी मानव अधिकारों से न केवल वंचित ही कर दिया गया है बल्कि उन्हें ऐसे कड़े नियमों का पाबंद भी कर दिया गया है कि उनका खुली हवा में सांस लेना भी असंभव हो जाएगा। वैसे जब से ब्रिटेन ने हांगकांग छोड़ा है तब से ही वहां के लोग चीनी शासन के विरुद्ध आंदोलन करते चले आ रहे हैं। अब भी ऐसे ही चलते भीषण जन आन्दोलन से परेशान होकर चीन ने यह नया कानून लागू किया है। 

हांगकांग पर दोनों देशों के बीच हुए समझौते की शर्तों और वादों के उल्लंघन के विरुद्ध प्रोटैस्ट करते हुए ब्रिटिश सरकार ने चीन से मांग की है कि वह इस कानून को तत्काल वापस ले। साथ ही उसने उन तमाम लोगों को ब्रिटिश नागरिकता देने की घोषणा की है जिनका जन्म 1997 से पहले हांगकांग में हुआ था, अर्थात जब ब्रिटेन ने हांगकांग चीन के हवाले किया था। ब्रिटिश सरकार की यह घोषणा चीन को पसंद नहीं आई। नया कानून वापस लेने की मांग को ठुकराते हुए उसने कहा है कि ब्रिटेन शायद अब भी अपने आप को उपनिवेशवादी शासक समझता है। 

चीन की इस उग्र नीति और विस्तारवादी गतिविधियों से ब्रिटेन भी उसी तरह परेशान है जैसे कि भारत तथा कई अन्य देश। अपनी इस नीति द्वारा चीन जहां भी जरा-सा मौका मिले वहां भारी पूंजी निवेश करके जायदादें खरीदने और व्यापार फैलाने का जाल बिछा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में ब्रिटेन की महंगी से महंगी जायदादें और व्यापारिक कंपनियां धड़ाधड़ चीनियों ने ही खरीदी हैं। इससे स्थानीय व्यापारिक क्षेत्रों में उत्पन्न स्वाभाविक चिंता के दृष्टिगत प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ऐसा कानून लागू करने की सोच रहे हैं कि कोई भी ब्रिटिश कंपनी सरकार से इजाजत लिए बगैर अपना कारोबार किसी चीनी कंपनी को नहीं बेच सकेगी। ड्रैगन की उग्र विस्तारवादी गतिविधियों को नकेल डालने का यह एक प्रभावशाली उपाय होगा। 97 प्रतिशत लोगों ने बोरिस जानसन से मांग की है कि चीनी वस्तुओं का आयात बंद किया जाए और स्थानीय ब्रिटिश उत्पादनों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए। 

लेह-लद्दाख में भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ के विरुद्ध इस समय भारतवासियों का तीव्र रोष और चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन उनकी देशभक्ति का प्रमाण है। ब्रिटेन के अतिरिक्त कई अन्य देशों ने भी सैद्धांतिक तौर पर चीनी पदार्थों का बायकाट करने की घोषणा की है। उनमें अमेरिका, फिलीपींस, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। ऑस्ट्रेलिया में हुए एक सर्वे में 88 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि चीनी पदार्थों पर आधारित होना कम किया जाए, यूरोपियन यूनियन में एक सर्वे द्वारा लोगों से पूछा गया कि चीन ने जिस प्रकार कोरोना वायरस पर व्यवहार किया है ‘‘क्या आप चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने का समर्थन करेंगे?’’ 61.9 प्रतिशत लोगों ने जवाब दिया ‘हां’। एक अन्य ब्रिटिश सर्वे में 97 प्रतिशत लोगों ने चीनी बायकाट का समर्थन किया। 

चीनी पदार्थों के बहिष्कार की आवाज जिस तीव्रता से कई देशों में उठ रही है,उसके मुकाबले में भारत अभी बहुत पीछे है। चीन के अतिक्रमण के विरुद्ध और सीमा पर शहीद हुए हमारे वीर जवानों के प्रति श्रद्धा और सम्मान के तौर पर तो अब तक चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का एक देशव्यापी भीषण अभियान खड़ा हो जाना चाहिए था। कुछ चीनी एप्स पर पाबंदी लगा कर सरकार ने एक प्रशंसनीय कदम जरूर उठाया है लेकिन अभी कुछ और सख्त फैसलों की जरूरत है। जिस प्रकार गांधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजी वस्तुओं के बहिष्कार को एक व्यापक देशव्यापी जन आंदोलन बना दिया था, आज फिर जरूरत है देशवासियों में चीनी पदार्थों के खिलाफ उसी प्रकार की चेतना और आक्रोश पैदा करने की।-लंदन से कृष्ण भाटिया
 

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