दिखावे की धुन में गुम होती जा रही सादगी

Edited By Updated: 07 Dec, 2021 06:03 AM

simplicity is getting lost in the tune of appearances

मशहूर शायर निदा फाजली की राय में बाजार ने आज एक नई संस्कृति गढ़ दी है। कुछ साल पहले अमरीका में पढ़कर नौकरी करने वाली एक भारतीय लड़की ने भारत में आकर विवाह किया। उसने

मशहूर शायर निदा फाजली की राय में बाजार ने आज एक नई संस्कृति गढ़ दी है। कुछ साल पहले अमरीका में पढ़कर नौकरी करने वाली एक भारतीय लड़की ने भारत में आकर विवाह किया। उसने न केवल धूमधाम की जगह मंदिर में विवाह करना पसंद किया, बल्कि शादी में मिलने वाले महंगे गहने, कपड़ों को भी पहनने से इन्कार कर दिया। उसने मंदिर के सामने बैठने वाली फूलवाली से ही अपने लिए फूलों के गहने बनवाए और वही पहने।

वर्षों पहले जब सचिन तेंदुलकर का विवाह अंजलि मेहता से हुआ तो पेशे से बच्चों की डॉक्टर अंजलि उस दिन भी अस्पताल में ड्यूटी करने गई थीं। उनके पिता अरबपति हैं लेकिन वह सादगी में यकीन करती हैं। अगर शिखर पर मौजूद लोग इस तरह की मिसाल रखते हैं तो समाज उसका अनुसरण खुशी से कर सकता है मगर समाज का एक दूसरा पक्ष भी हमारे सामने आता है। यह कैसा आश्चर्य है कि ज्यों-ज्यों लड़के-लड़कियों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है, वैसे-वैसे विवाह को लेकर उनकी धारणाओं में परिवर्तन होता गया। 

अक्सर लड़के-लड़कियां यह कहते पाए जाते हैं कि शादी तो जीवन में बस एक ही बार होती है, इसलिए ऐसी हो, जिसे लोग याद रखें। शादी को यादगार बनाने के लिए न जाने कितनी तरह के खर्चीले करतब किए जाते हैं। कोई हैलीकॉप्टर में आता है, कोई हवा में शादी करता है, तो कोई पानी के नीचे, कोई दरवाजे पर हाथियों का काफिला बंधवाता है। हाल ही में हुई एक शादी में सैंकड़ों एकड़ में न केवल सजावट की गई, बल्कि 500 करोड़ रुपए खर्च हुए बताए जाते हैं। 

आजकल आमतौर पर विवाहों में इतने व्यंजन परोसे जाते हैं कि सब नहीं खाए जा सकते। अनुमान है कि शादी में खाने की इतनी अधिक बर्बादी होती है कि इससे लाखों लोगों का पेट भरा जा सकता है। यही नहीं, एक समय जहां हल्दी, मेहंदी, तेल आदि की रस्में बेहद घरेलू होती थीं, उनके लिए भी अब अलग-अलग उत्सवों का आयोजन किया जाने लगा है। ढोलक की थाप और महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले वैवाहिक गीतों की जगह डी.जे. के संगीत ने ले ली है। विवाह की सारी जिम्मेदारी इवैंट मैनेजमैंट कंपनियों ने संभाल ली है। 

चिंता की बात एक और है। एक तरफ समाज में दहेज को लेकर एक सहमति-सी है कि दहेज लेना-देना गलत बात है। मगर हम देखते हैं कि दहेज का जितना ऊपरी विरोध बढ़ा है, शादियों में लेन-देन उतना ही बढ़ा है। जो जितने पैसे वाला, ताकतवर, बड़ा अधिकारी, उसे मिलने वाला दहेज भी उतना ही ज्यादा। विवाह में जितना दिखावा और लेन-देन बढ़ा है, विवाह से संबंधित बाजार उतना ही फला-फूला है। तकनीक ने भी इसे और अधिक बढ़ाया है। हाल ही में केंद्र सरकार से इस बात की शिकायत की गई थी कि शादी से जुड़ी कई वैबसाइट्स दहेज को बढ़ावा देती हैं।

शाही शादियों के आयोजन के लिए बड़े नामी-गिरामी सैवन स्टार होटल बुक करने की भी परिपाटी बनती जा रही है। इन होटलों में लाखों रुपए खर्च कर शादी का सैट खड़ा किया जाने लगा है। ऐसी शादियों को देखकर मध्यम व निम्न वर्ग भी शादियों में पैसे को पानी की तरह बहाने से जरा भी नहीं हिचकिचा रहे। यहां तक कि लोग शादी में अपना स्तर, रुतबा और झूठी शानो-शौकत का प्रदर्शन करने के लिए कर्ज लेकर भी महंगी शादियां आयोजित कर रहे हैं। एक मजेदार चीज और है। जो शादी ड्रीम वैडिंग कही जाती थी, उसे टूटने में दो पल नहीं लगते। कल तक जहां तलाक इक्का-दुक्का सुनाई देते थे, वे आज सैंकड़ों गुना बढ़ गए हैं। 

अटलांटा स्थित एमोरी यूनिवर्सिटी द्वारा 3000 मैरिड कपल्स पर किए गए सर्वे का भी यह कहना है कि महंगी शादियां करने वाले लोगों में तलाक के चांसेस ज्यादा रहते हैं। एक समय अपने ही समाज में ऐसा रहा है, जब वर पक्ष के लोग कहते थे कि वे बारात में सिर्फ पांच आदमी लाएंगे। इसके पीछे सोच यही थी कि लड़की वालों पर अतिरिक्त दबाव न पड़े। बहुत से लोग कहते थे कि शादी बस सवा रुपया लेकर करेंगे। ऐसा होता भी था। आज अगर कुछ युवा समाज को राह दिखा रहे हैं तो इसकी सराहना करनी चाहिए। लेकिन चाहे कोई कितना विरोध करे, वह तब तक सार्थक नहीं हो सकता जब तक समाज के बहुसंख्यक लोगों की सहमति न हो। आज के इस दिखावे के युग में यह कब होगा, समय बताएगा।-देवेन्द्रराज सुथार 
    

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