आर.एस.एस. का लक्ष्य सत्ता नहीं बल्कि हिंदू समाज है

Edited By Updated: 07 Oct, 2025 05:16 AM

the rss s goal is not power but hindu society

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) की स्थापना डा. केशव बलिराम हैडगेवार ने नागपुर में की थी। आर.एस.एस. भारत के सबसे शक्तिशाली हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों में से एक है और अक्सर विभाजनकारी विचारों को बढ़ावा देने के लिए विपक्ष की आलोचना का सामना करता है,...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) की स्थापना डा. केशव बलिराम हैडगेवार ने नागपुर में की थी। आर.एस.एस. भारत के सबसे शक्तिशाली हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों में से एक है और अक्सर विभाजनकारी विचारों को बढ़ावा देने के लिए विपक्ष की आलोचना का सामना करता है, जिसका वह खंडन करता है। यह संगठन मूलत: हिंदू पुनरुत्थानवाद और सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित एक आंदोलन है। हालांकि, मुसलमानों को अपना विरोधी मानने के लिए इसकी आलोचना भी की जाती रही है।

दिल्ली में एक कार्यक्रम में, मोदी ने प्रचारक के रूप में अपने शुरुआती दिनों के किस्से सांझा किए और आर.एस.एस. की प्रशंसा की। उन्होंने एक नया सिक्का जारी किया जिसके एक तरफ राष्ट्रीय प्रतीक और दूसरी तरफ ‘वरद मुद्रा’ में भारत माता की तस्वीर थी। जैसा कि मोदी ने बताया, यह सिक्का खास था। यह पहली बार था जब भारत माता किसी मुद्रा पर दिखाई दी। उन्होंने 2047 तक भारत के विकास में आर.एस.एस. की महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना की। हालांकि आर.एस.एस. गैर-राजनीतिक होने का दावा करता है लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर इसका अच्छा-खासा प्रभाव है और कई राजनेता इस संगठन से प्रशिक्षित हुए हैं। आर.एस.एस. का विरोध कोई नई बात नहीं है क्योंकि यह ब्रिटिश काल से चला आ रहा है और अक्सर राजनीतिक उद्देश्यों का हवाला दिया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि आर.एस.एस. का लक्ष्य सत्ता नहीं बल्कि हिंदू समाज है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आधुनिक भारतीय इतिहास में कई विवादों से जुड़ा रहा है। इनमें से एक 1948 में महात्मा गांधी की हत्या थी। दूसरा 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस था। यह तर्क दिया गया कि मस्जिद उस राम मंदिर की जगह पर बनाई गई थी जिसे पहले तोड़ा गया था। जैसा कि भाजपा और आर.एस.एस. चाहते थे, मोदी ने पिछले साल राम मंदिर का उद्घाटन किया, जिससे उनका एक मुख्य मुद्दा पूरा हुआ। इन विवादों के बावजूद आर.एस.एस. बदलाव लाने को तैयार है। इसका उद्देश्य भारत के मौजूदा मुद्दों, जैसे आर्थिक विकास और सामाजिक असमानता, का समाधान करना है। आर.एस.एस. प्रमुख ने अपने संबोधन में विभिन्न मुद्दों पर बात की। इनमें भारत-पाक संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता और पड़ोसी देशों में राजनीतिक अशांति शामिल हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आर.एस.एस. की 100वीं वर्षगांठ का मुख्य लक्ष्य भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करके और एकता, देशभक्ति तथा सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देकर एक मजबूत और अनुशासित हिंदू समाज की स्थापना करना है। 

भागवत ने एक लचीले भारत का आह्वान किया और आर.एस.एस. के समावेशिता के दृष्टिकोण और एक हिंदू राष्ट्र की अवधारणा पर प्रकाश डाला  जो एक ऐसा राष्ट्र है जहां हिंदू धर्म के सिद्धांत सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन का मार्गदर्शन करते हैं जो एकता, पहचान और आत्मनिर्भरता पर केंद्रित है। संगठन ने अपनी स्थापना के लगभग 6 महीने बाद अपना वर्तमान नाम, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनाया। हाल के वर्षों में, आर.एस.एस. ने उल्लेखनीय वृद्धि का अनुभव किया है और पूरे भारत में अपनी उपस्थिति का विस्तार किया है। आर.एस.एस. वर्तमान में 45,411 स्थानों पर 72,354 शाखाएं संचालित करता है और हजारों क्षेत्रों में दैनिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। पिछले वर्ष, संगठन ने अपनी शताब्दी की तैयारी में 6,645 नई शाखाएं शुरू कीं, जिसका उद्देश्य हर गांव से जुडऩा है। इसका भाजपा के प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के बीच  अच्छा समन्वय है। आर.एस.एस. अमरीका और ब्रिटेन जैसे अन्य देशों में भी फैल चुका है। इसने भारत के बाहर एक शक्तिशाली लॉबी बनाई है। यह भारत सरकार की ओर से लाङ्क्षबग करता है। यह भारत के बाहर की सरकारों को प्रभावित कर सकता है।

आर.एस.एस. के मुखपत्र, ‘ऑर्गनाइजर’ के अनुसार, आने वाले वर्षों में 5 परिवर्तन पहलें एक प्रमुख केंद्र ङ्क्षबदु होंगी। काशी और मथुरा में हाल ही में हुई बैठकों में, संगठन ने कानूनी चर्चाओं और बातचीत सहित शांतिपूर्ण तरीकों से विवादों को सुलझाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। मोहन भागवत ने समुदाय और शांति के महत्व पर जोर देते हुए आर.एस.एस. को ‘अपनापन’ शब्द से पारिभाषित किया।

आर.एस.एस. अब कहता है कि कृष्णजन्मभूमि और काशी के मंदिर के विवादों का शांतिपूर्ण समाधान होना चाहिए। नागरिक समाज पर आर.एस.एस. का वैचारिक प्रभाव पहले आपदा राहत, ग्रामीण विकास परियोजनाओं, सांस्कृतिक एकीकरण के लिए जनजातीय संपर्क, हिंदू त्यौहारों के प्रचार और संस्कृत शिक्षण में इसकी भागीदारी के माध्यम से प्रसारित होता था। ङ्क्षहदुत्व और भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा रखते हुए, संघ ने आधुनिक चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को बदल दिया है। संघ के पास न तो सदस्यता पत्र थे और न ही औपचारिक अभिलेख। संपर्क और पते रजिस्टरों या डायरियों में रखे जाते थे। इसने अपनी वर्दी को अद्यतन किया है और समय के साथ अनुकूलन करने की इच्छा दिखाई है। भविष्य की बात करें तो, आर.एस.एस. ने सामाजिक और राजनीतिक अभियानों और कार्यक्रमों पर अपने फोकस क्षेत्रों की पहचान की है और अपने नेताओं द्वारा किए गए प्रयासों को और मजबूत करने की दिशा में काम करेगा। यह पर्दे के पीछे से काम करता रहेगा और भाजपा सरकार और पार्टी को प्रभावित करता रहेगा।-कल्याणी शंकर
 

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