शरीफ बंधुओं के लिए दुनिया अभी खत्म नहीं हुई

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Aug, 2017 11:16 PM

the world is not over for the sharif brothers

नवाज शरीफ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तौर पर न केवल मतदाताओं ने, जिन्होंने उन्हें चुना था, बाहर का रास्ता दिखाया ...

नवाज शरीफ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तौर पर न केवल मतदाताओं ने, जिन्होंने उन्हें चुना था, बाहर का रास्ता दिखाया बल्कि न्यायपालिका ने भी जाहिर तौर पर भ्रष्टाचार के लिए गद्दी से उतार दिया। मगर फिलहाल दुबई आधारित एक कम्पनी से मिलने वाले वेतन को घोषित करने के लिए नहीं, जिसमें उनके अनुसार वह बस नाम के चेयरमैन थे। 

कानूनी समुदाय के बीच यह चर्चा जारी है कि क्या उन्हें मिलने वाले वेतन को उनकी आय माना जा सकता है। अधिकतर कानूनविदों का मानना है कि इस मामले में 5 सदस्यीय पीठ कोई निर्णय ले पाने की स्थिति में नहीं है। सम्भवत: शीर्ष अदालत ने यह निर्णय लिया कि शरीफ और उनके पारिवारिक सदस्य अथाह अघोषित सम्पत्ति के आरोपों में दोषी हैं। कानूनी पचड़ों पर ध्यान न दें तो तथ्य यह है कि शरीफ अब प्रधानमंत्री नहीं हैं। थोड़ी देर की अनिश्चितता के बाद एक नए प्रधानमंत्री तथा एक नई कैबिनेट ने शपथ ले ली। यद्यपि कुछ को छोड़ कर मंत्रिमंडल नई बोतल में पुरानी शराब है। 

जिस तरह शरीफ को बाहर का रास्ता दिखाया गया, उससे उनके समर्थकों का मिजाज बिगड़ गया। हालांकि यह न तो इतना बड़ा विनाश है और न ही शरीफ बंधुओं के लिए दुनिया का अंत। उन्हें अपनी आशीषों को गिनना चाहिए। अतीत में चुने हुए प्रधानमंत्रियों को गद्दी से हटाने की परम्परा के विपरीत संघीय स्तर तथा पंजाब में पी.एम.एल. (एन.) सरकार पूरी तरह से सुरक्षित है। अयोग्य घोषित किए जाने के बावजूद पूर्व प्रधानमंत्री देशव्यापी मीडिया में पूरे जोर-शोर से मुखर हो रहे हैं। चूंकि नवाज मरी में रहते हैं, उनके उत्तराधिकारी को भविष्य की रणनीति बारे चर्चा करने के लिए इस पहाड़ी रिजॉर्ट में जाना पड़ता है, जिसमें शरीफ भाइयों के साथ संघीय मंत्रिमंडल का गठन भी शामिल है। शेख राशिद तथा उनके सहयोगियों ने पहले ही अब्बासी को कठपुतली का दर्जा दे दिया है। शरीफों को आने वाले दिनों में अपने नामांकित व्यक्ति को कुछ स्थान उपलब्ध करवाकर सशक्त बनाना चाहिए। 

नि:संदेह किसी गैर-शरीफ को सत्ता सौंपना उनके लिए एक नया अनुभव है। मगर अतीत में जनरल जिया उल हक जैसे तानाशाह ने भी अपने नामांकित मोहम्मद खान जुनेजो को सशक्त बनाया था। हालांकि बाद में उन्हें सत्ता से हटा दिया गया जबकि नवाज शरीफ, उनके पंजाब के मुख्यमंत्री भाई ने जिया का पक्ष लेने की बजाय उन्हें छोडऩे को अधिमान दिया। शरीफ अच्छी तरह जानते थे कि अपने टोस्ट के किस हिस्से पर मक्खन लगाना है। इसी तरह एक नागरिक व्यवस्था में राष्ट्रपति के तौर पर आसिफ अली जरदारी ने यूसुफ रजा गिलानी को पर्याप्त स्थान उपलब्ध करवाया था जो उनके द्वारा नामांकित प्रधानमंत्री थे। अब्बासी एक प्रधानमंत्री के तौर पर अपने तेल एवं गैस के पूर्ववर्ती मंत्रालय में शक्तियां भर रहे हैं और वास्तव में अब ऊर्जा के मामले में शहंशाह बन गए हैं। यह शाहबाज शरीफ के पूरी तरह अनुकूल है जिसमें ख्वाजा आसिफ खुश नहीं थे। 

मंत्रिमंडल में ख्वाजा आसिफ को विदेश मंत्री के तौर पर शामिल करना एक बड़ी बात है। मजे की बात यह है कि इस लोकप्रिय अवधारणा के बावजूद कि सैन्य नेतृत्व विदेशी तथा सुरक्षा नीति को चलाने में खुशी महसूस करता है, शरीफों ने मंत्रालय अपने पास रखने की बजाय समय-समय पर पूर्णकालिक विदेश मंत्रियों की नियुक्ति की है। निश्चित तौर पर रहस्यमयी चौधरी निसार अली खान को मंत्रिमंडल से बाहर करना एक बड़ी चूक है। वह किसी ऐसे व्यक्ति के साथ काम करने के इच्छुक नहीं थे, जिसे वह जूनियर अथवा अपने से कमतर मानते हैं। इसी कारण लम्बे राजनीतिक संबंधों के बावजूद उनके पूर्व प्रधानमंत्री के साथ कार्य संबंध कठिन थे। उनके एकमात्र मित्र शाहबाज शरीफ वास्तव में उनकी कमी महसूस करेंगे। 

ऐसा दिखाई देता है कि शरीफ के बाहर होने के बाद पी.एम.एल. (एन.) दुविधा में है। कुछ लोग ऐसे हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री  को  झगड़े के मोड में आने की सलाह दे रहे हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो संयम की वकालत करते हैं। फिलहाल ऐसा दिखाई देता है कि शाहबाज शरीफ के नेतृत्व में शांति के कबूतर मौजूद हैं। शरीफ ने इस्लामाबाद से लाहौर तक रैलियों का नेतृत्व करने की बजाय रविवार को मोटर कार से जाना चुना। सम्भवत: स्थितियों के अनुसार यह सही रणनीति है। आखिर पी.एम.एल. (एन.) सत्ता में है, वह एक विपक्षी दल की तरह व्यवहार क्यों करे? इसकी नजर मार्च में होने वाले सीनेट के चुनावों तथा कुछ महीनों के बाद होने वाले आम चुनावों पर होनी चाहिए। पी.एम.एल. (एन.) के नेताओं तथा कार्यकत्र्ताओं में एक मजबूत अवधारणा बन गई है कि प्रधानमंत्री को एक षड्यंत्र के तहत बाहर कर दिया गया। उनके अनुसार सुप्रीम कोर्ट में चल रहा मुकद्दमा एक न्यायिक जांच से अधिक था जिसे ‘सर्वभूत’ संगठन का समर्थन प्राप्त था। 

मानवाधिकार कार्यकत्री एवं विधिवेत्ता असमा जहांगीर अपनी स्पष्टवादिता के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने एम.आई. (मिलिट्री इंटैलीजैंस) तथा आई.एस.आई. (इंटर सर्विसिज इंटैलीजैंस) के अधिकारियों को जे.आई.टी. में शामिल करने पर आपत्ति जताई है। असमा ने एक बड़ा प्रश्र पूछा है कि क्या न्यायपालिका ऐसे अधिकारियों को सर्वोच्च न्यायिक परिषद में प्रतिनिधित्व करने की इजाजत देगी? सीनेट के चेयरमैन रजा रब्बानी ने एक अन्य दिन अधिक कूटनीतिक तरीके से ऐसे ही विचार प्रकट किए थे।

उन्होंने यह समझाया कि न्यायपालिका संसद तथा कार्यपालिका की शह पर अत्यंत शक्तिशाली बन गई है। यह बड़े दुख की बात है कि एक रिपोर्ट के अनुसार पी.एम.एल. (एन.) के कुछ बड़े नेताओं ने शरीफ की तरफ से बचाव के लिए सैन्य नेतृत्व तक पहुंच बनाने का प्रयास किया। यद्यपि उन्हें पत्थर जैसा जवाब मिला था कि ‘‘हम कुछ भी असंवैधानिक नहीं करेंगे।’’ सम्भवत: धुआं उगलती एकमात्र बंदूक सेना नीत (या सम्भवत: सहायक) जे.आई.टी. है। मगर शरीफ ने शुरू में आपत्ति नहीं की थी। अब शिकायत क्यों, जब बहुत देर हो चुकी है।      

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