एक अनथक कार्यकत्र्ता और उत्कृष्ट संगठनकत्र्ता थे विजय कुमार मल्होत्रा

Edited By Updated: 06 Oct, 2025 05:03 AM

vijay kumar malhotra was a tireless activist and an excellent organizer

कुछ दिन पहले, भारतीय जनता पार्टी परिवार ने अपने सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक, श्री विजय कुमार मल्होत्रा जी को खो दिया। उन्होंने अपने जीवन में बहुत-सी उपलब्धियां हासिल कीं। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण ये है कि उन्होंने कठोर परिश्रम, दृढ़ निश्चय और सेवा...

कुछ दिन पहले, भारतीय जनता पार्टी परिवार ने अपने सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक, श्री विजय कुमार मल्होत्रा जी को खो दिया। उन्होंने अपने जीवन में बहुत-सी उपलब्धियां हासिल कीं। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण ये है कि उन्होंने कठोर परिश्रम, दृढ़ निश्चय और सेवा से भरा जीवन जिया। उनके जीवन को देखकर समझा जा सकता है कि आर.एस.एस., जनसंघ और भाजपा के मूल संस्कार क्या हैं। विपरीत परिस्थितियों में साहस का प्रदर्शन, स्वयं से ऊपर सेवा भावना, साथ ही राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता, यह उनके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी पहचान रही। 

वी.के. मल्होत्रा जी के परिवार ने विभाजन का भयावह दौर झेला। उस आघात और विस्थापन ने उन्हें कड़वा या आत्मकेंद्रित नहीं बनाया। इसके बजाय, उन्होंने स्वयं को दूसरों की सेवा में समॢपत कर दिया। उन्हें आर.एस.एस. और जनसंघ की विचारधारा में राष्ट्रसेवा का रास्ता नजर आया। बंटवारे का वो समय बहुत चुनौतीपूर्ण था। मल्होत्रा जी ने सामाजिक कार्यों को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। उन्होंने उन हजारों विस्थापित परिवारों की मदद की, जिन्होंने सबकुछ खो दिया था। उनका जीवन संवारने और उन्हें फिर से खड़े होने में मदद की। यही जनसंघ की प्रेरणा थी। उन दिनों उनके साथी मदनलाल खुराना जी और केदारनाथ साहनी जी भी बढ़-चढ़कर सेवा कार्यों में शामिल होते थे। उन लोगों की नि:स्वार्थ सेवा को आज भी दिल्ली के लोग याद करते हैं। 

1967 के लोकसभा और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव तब अपराजेय मानी जाने वाली कांग्रेस के लिए चौंकाने वाले रहे थे। इसकी बहुत चर्चा होती है लेकिन एक कम चर्चित चुनाव भी हुआ। वो था, दिल्ली मैट्रोपॉलिटन काऊंसिल का पहला चुनाव। राष्ट्रीय राजधानी में जनसंघ ने शानदार जीत दर्ज की। अडवानी जी काऊंसिल के चेयरमैन बने और मल्होत्रा जी को चीफ  एग्जीक्यूटिव काऊंसलर की जिम्मेदारी दी गई जो मुख्यमंत्री के लगभग बराबर का पद था। तब उनकी उम्र केवल 36 वर्ष थी। उन्होंने अपने कार्यकाल को दिल्ली की जरूरतों, खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर और लोगों से जुड़े मुद्दों पर फोकस किया। 

इस जिम्मेदारी ने मल्होत्रा जी का दिल्ली से जुड़ाव और मजबूत कर दिया। जनहित से जुड़े हर मुद्दे पर मल्होत्रा जी सक्रिय रूप से जनता के साथ खड़े होते और उनकी आवाज बुलंद करते। उन्होंने 1960 के दशक में गौरक्षा आंदोलन में भी हिस्सा लिया, जहां उनके साथ पुलिस की ज्यादतियां भी खूब हुईं। आपातकाल विरोधी आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही। दिल्ली की सड़कों पर जब सिखों का बेरहमी से कत्लेआम हो रहा था, तब वे शांति और सद्भावना की आवाज बनकर सिख समुदाय के साथ पूरी मजबूती से खड़े रहे। उनका मानना था कि राजनीति, चुनावी सफलता के अलावा सिद्धांतों, मूल्यों और लोगों की रक्षा के लिए भी है, जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। 1960 के दशक के उत्तरार्ध में मल्होत्रा जी सार्वजनिक जीवन का एक स्थायी चेहरा बन गए थे। बहुत कम नेता ऐसा दावा कर सकते हैं कि उनके पास लोगों के बीच रहकर काम करने का इतना लंबा और ठोस अनुभव है। वो एक अनथक कार्यकत्र्ता, उत्कृष्ट संगठनकत्र्ता और एक संस्था निर्माता थे। उनमें चुनावी राजनीति और संगठनात्मक राजनीति, दोनों में समान रूप से सहजता के साथ काम करने की अद्भुत क्षमता थी। उन्होंने जनसंघ और भाजपा की दिल्ली इकाई को स्थिर नेतृत्व दिया।

अपने लंबे सेवाकाल में मल्होत्रा जी ने सिविक एडमिनिस्ट्रेशन संभाला, राज्य विधानसभा में भी पहुंचे और देश की संसद में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। 1999 के लोकसभा चुनाव में डा.मनमोहन सिंह के खिलाफ उनकी शानदार जीत समर्थकों और विरोधियों के बीच आज भी याद की जाती है। यह एक बेहद हाई-प्रोफाइल चुनाव था। कांग्रेस की पूरी ताकत उनके दक्षिण दिल्ली क्षेत्र में उतर आई थी। लेकिन मल्होत्रा जी ने कभी बहस का स्तर नीचे नहीं किया। उन्होंने पॉजिटिव कैम्पेन चलाया। गालियों और हमलों को नजरअंदाज किया और 50 प्रतिशत से ज्यादा वोटों के साथ जीत हासिल की। यह जीत सिर्फ  प्रचार के दम पर नहीं मिली, यह जीत मल्होत्रा जी की जमीन पर मजबूत पकड़ की वजह से मिली थी। कार्यकत्र्ताओं से आत्मीय संबंध बनाकर रखने और मतदाताओं के मन की थाह लेने में वो माहिर थे। 

मल्होत्रा जी संसद में सटीक तैयारी के साथ अपनी बात रखते थे। वो पूरी रिसर्च करके आते थे और प्रभावी ढंग से अपनी बात रखते थे। यू.पी.ए.-1 के दौरान विपक्ष के उपनेता के रूप में उन्होंने जिस तरीके से काम किया, वो राजनीति में आने वाले युवाओं के लिए एक मूल्यवान सबक की तरह है। उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उन्होंने भ्रष्टाचार और आतंकवाद को लेकर यू.पी.ए. सरकार का प्रभावी ढंग से विरोध किया। उन दिनों मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था और अक्सर मल्होत्रा जी से बातचीत होती। वो हमेशा गुजरात की विकास यात्रा के बारे में जानने को उत्सुक रहते थे। 

राजनीति, वी.के. मल्होत्रा जी के व्यक्तित्व का केवल एक पहलू थी। वो एक उत्कृष्ट शिक्षाविद भी थे। उनके परिवार से मुझे पता चला कि उन्होंने स्कूल में डबल प्रमोशन हासिल किया। उन्होंने मैट्रिक और ग्रैजुएशन निर्धारित समय से पहले पूरी कर ली। उनकी हिंदी पर इतनी अच्छी पकड़ थी कि डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के भाषणों का हिंदी अनुवाद प्राय: वही करते थे। तीरंदाजी उनका गहरा शौक था और वो कई दशकों तक आर्चरी एसोसिएशन ऑफ  इंडिया के अध्यक्ष रहे। कुछ दिन पहले, मैं दिल्ली भाजपा के नए मुख्यालय के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुआ था। वहां मैंने स्नेहपूर्वक श्री वी.के. मल्होत्रा जी को याद किया था। इस वर्ष तीन दशक बाद जब भाजपा ने दिल्ली में सरकार बनाई  तो वो बहुत उत्साहित थे। उनकी अपेक्षाएं बहुत बड़ी थीं, जिन्हें हम पूरी करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।-नरेन्द्र मोदी(माननीय प्रधानमंत्री)

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