भाजपा की प्रशंसा कर क्या संकेत दे रही हैं मायावती?

Edited By Updated: 12 Oct, 2025 03:24 AM

what is mayawati signaling by praising the bjp

9 अक्तूबर को बहन मायावती ने लखनऊ में एक बड़ी रैली कर यह दिखा दिया कि वह एक बार फिर सक्रिय होने जा रही हैं। लेकिन क्या बहन मायावती की यह सक्रियता उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को फिर से खड़ा कर पाएगी? बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशी राम के...

9 अक्तूबर को बहन मायावती ने लखनऊ में एक बड़ी रैली कर यह दिखा दिया कि वह एक बार फिर सक्रिय होने जा रही हैं। लेकिन क्या बहन मायावती की यह सक्रियता उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को फिर से खड़ा कर पाएगी? बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशी राम के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर लखनऊ स्थित कांशी राम स्थल पर महारैली को संबोधित करते हुए बहन मायावती ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर हमला बोला तथा भारतीय जनता पार्टी की प्रशंसा की। उन्होंने अपने कार्यकत्र्ताओं में यह कह कर जोश भरा कि उत्तर प्रदेश में 2027 में हमें पांचवीं बार बसपा की सरकार बनानी है। मायावती ने मंच से कार्यकत्र्ताओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि रैली में उमड़ी भीड़ को अन्य दलों की तरह दिहाड़ी देकर नहीं लाया गया है। ये खुद चलकर आए हैं और वह भी अपने खून-पसीने की कमाई से। सवाल यह है कि बहन मायावती इस रैली में भाजपा की योगी सरकार की प्रशंसा कर क्या साबित करना चाहती हैं? 

 बहन मायावती ने इस रैली में कहा कि मैं उत्तर प्रदेश सरकार की आभारी हूं। भाजपा सरकार ने कांशी राम पार्क और अंबेडकर पार्क में आने वाले लोगों से मिले टिकटों का पैसा समाजवादी सरकार की तरह दबाकर नहीं रखा। मेरे आग्रह पर पार्क की मुरम्मत पर पूरा खर्च किया गया। जबकि सपा सरकार ने पार्क के रख-रखाव की बजाय दूसरे मदों पर पैसा खर्च किया था। क्या बहन मायावती भाजपा की प्रशंसा कर भविष्य के लिए कुछ संकेत दे रही हैं ? पिछले कुछ समय से मायावती जिस तरह से राजनीति में निष्क्रिय हैं, उससे कई सवाल खड़े होते हैं। बहन जी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के खिलाफ  तो मुखर हैं लेकिन सवाल यह है कि वे भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ  मुखर क्यों नहीं हैं? क्या उन्हें भारतीय जनता पार्टी से कोई डर है? क्या उनकी भारतीय जनता पार्टी से कोई गुपचुप सैटिंग हो गई है? आज बहन मायावती भारतीय जनता पार्टी की प्रशंसा कर रही हैं लेकिन क्या उन्हें नहीं दिख रहा है दलितों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं?  

हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक दलित की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। वह दलित सहायता के लिए राहुल गांधी का नाम लेता रहा लेकिन उसे यह कह कर पीटा जाता रहा कि उत्तर प्रदेश में बाबा का राज है। क्या बाबा के राज मेें एक दलित को इसी तरह पीटा जाएगा और फिर यह भी कहा जाएगा कि यहां तो बाबा का राज है। क्या बहन मायावती को यह नहीं दिख रहा कि इस दौर में रोजगार का क्या हाल है? बहन मायावती डा. अंबेडकर के रास्ते पर चलने का दावा करती हैं लेकिन क्या उन्होंने अंबेडकर को पढ़ा है? अंबेडकर ने जिन शक्तियों के बारे में बार-बार आगाह किया था आज बहन मायावती जी उन्हीं शक्तियों के साथ खड़ा होने के लिए आतुर हैं। क्या बहन मायावती सी.बी.आई. और ई.डी. से डर गई हैं? क्या बहन जी को राहुल गांधी और अखिलेश यादव से सबक नहीं लेना चाहिए जो बिना डरे लगातार सत्ता से सवाल पूछ रहे हैं? क्या बहन मायावती 2027 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही हैं? नि:संदेह भारतीय राजनीति में बहन मायावती का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने बहुजन समाज के लिए कई काम किए हैं। उन्होंने बहुजन समाज को हिम्मत दी और आशा की किरण दिखाई। लेकिन जिन कांशी राम ने अपने खून-पसीने से बहुजन समाज को सशक्त बनाने के लिए यह पार्टी बनाई और बहन जी को खड़ा किया उन्हीं कांशी राम के परिनिर्वाण दिवस पर बहन मायावती ने समझौते की राजनीति का संदेश देकर यह प्रदर्शित कर दिया कि यह पार्टी अब अपने तेवर खोने जा रही है। 

बहुजन समाज पार्टी को 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल हुआ था। इसके बाद 2012 में बी.एस.पी. को बहुमत नहीं मिला और 80 सीटें जीतकर दूसरे नंबर की पार्टी बन गई थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में बी.एस.पी. को मात्र 19 सीटें ही मिली थीं। इसके बाद बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाया और 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी साथ आ गए थे। 

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद सपा-बसपा का गठबंधन टूट गया था और बहन मायावती ने भविष्य में किसी से कोई गठबंधन न करने की घोषणा कर दी थी। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को मात्र एक सीट प्राप्त हुई थी। यह सही है कि रैली के माध्यम से बहन मायावती ने यह दिखा दिया है कि वह पुन: एक नई ऊर्जा के साथ तैयार हैं लेकिन यह ऊर्जा सी.बी.आई. और ई.डी. से बचने और भारतीय जनता पार्टी की सहायता करने में खर्च होगी। 

 सवाल यह है कि बहुजन समाज पार्टी को यह सोचना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में ही पार्टी हाशिए पर क्यों आ गई? कहां चले गए इस पार्टी के पुराने तेवर? क्या यह सही नहीं है कि समझौतावादी राजनीति के कारण ही इस पार्टी का जनाधार खिसक गया। युवा वर्ग चंद्रशेखर आजाद के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए तैयार है। ऐसे में बहन मायावती के लिए आगे की राह इतनी आसान नहीं होगी। यदि भविष्य में बहन जी भाजपा के साथ खड़ा होने के बारे में सोच रही हैं तो इससे अंतत: नुकसान बहुजन समाज पार्टी का ही होगा।-रोहित कौशिक
 

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