फादर रॉबिन पर स्वघोषित सैकुलरिस्ट-उदारवादी चुप क्यों

Edited By ,Updated: 24 Mar, 2017 12:17 AM

why self proclaimed secularist liberal on father robin silent

हाल ही में केरल के कोट्टियूर में एक ईसाई पादरी द्वारा नाबालिगा से बलात्कार......

हाल ही में केरल के कोट्टियूर में एक ईसाई पादरी द्वारा नाबालिगा से बलात्कार, फिर उस पीड़िता के एक शिशु को जन्म देने का मामला प्रकाश में आया। पादरी को बचाने का प्रयास न केवल राज्य की सरकारी मशीनरी की ओर से किया गया, बल्कि पीड़िता के पिता ने भी प्रारम्भ में चर्च की प्रतिष्ठा की रक्षा करने हेतु आरोपी का साथ दिया। उक्त मामले पर छद्म-पंथनिरपेक्षक, उदारवादी और मानवाधिकार व स्वयंसेवी संगठन तो चुप रहे ही, मीडिया का बड़ा भाग भी या तो इस पर मौन रहा या फिर कुछ ने इस घृणित मामले को एक साधारण समाचार के रूप में प्रस्तुत किया। 

इस मामले में उस तरह का हंगामा, समाचार पत्रों के मुखपृष्ठों में सुॢखयां और न्यूज चैनलों पर लंबी बहस नहीं दिखी, जो आसाराम बापू पर लगे यौन-उत्पीडऩ के आरोपों के बाद नजर आई थी। क्या किसी जघन्य अपराध के आरोपी पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए? यदि इसका उत्तर ‘हां’ में है तो इस मामले में मीडिया और राजनीतिक दलों की चुप्पी का कारण क्या है? 

कोट्टियूर में सेंट सेबस्टियन चर्च के कैथोलिक पादरी 48 वर्षीय फादर रॉबिन उर्फ  मैथ्यू वडक्कनचेरिल को नाबालिगा से बलात्कार के आरोप में 28 फरवरी को तब गिरफ्तार किया गया, जब वह विदेश भागने की फिराक में था। मामला गत वर्ष मई का है किन्तु इसका खुलासा 7 फरवरी को तब हुआ जिस दिन 16 वर्षीय अविवाहित लड़की ने कोथुपरमबा के एक निजी अस्पताल में शिशु को जन्म दिया। शिशु के जन्म की सूचना के बाद भी बाल कल्याण समिति (सी.डब्ल्यू.सी.) ने कोई कार्रवाई नहीं की। 

अदालत के हस्तक्षेप के बाद पुलिस ने इस मामले से जुड़े तथ्यों को छिपाने के आरोप में सी.डब्ल्यू.सी. के पूर्व अध्यक्ष फादर थॉमस जोसेफ  थेराकम, समिति के एक पूर्व सदस्य बेट्टी जोस और वायनाड में अनाथालय की अधीक्षक सिस्टर ओफेलिया को गिरफ्तार किया। साथ ही अस्पताल की 5 ननों पर मामला दर्ज किया गया। 

कोट्टियूर की इस घटना का सबसे वीभत्स पक्ष यह है कि पीड़िता के पिता ने प्रारम्भिक जांच में झूठ बोला और कहा कि उसने ही अपनी बेटी का बलात्कार किया, किन्तु जब उसे इस अपराध के सिद्ध होने पर मिलने वाली सजा की जानकारी हुई, तब वह सच बोला और फादर रॉबिन के दुष्कर्म का खुलासा पुलिस के समक्ष किया। पीड़िता के माता-पिता के अनुसार उनकी बेटी का मासिक धर्म अनियमित रहता था, इसलिए उन्हें अपनी बेटी की गर्भावस्था का बिल्कुल भी पता नहीं चला। कोट्टियूर में चर्च से संबंधित इस तरह का मामला देश में नया नहीं है। 

बीते कई वर्षों से भारत में विभिन्न कैथोलिक अधिष्ठान, चाहे वह चर्च हो या फिर कॉन्वैंट स्कूल, कई बार इस घृणित अपराध से कलंकित हो चुके हैं। किन्तु इसके विरोध में स्वघोषित सैकुलर-उदारवादी जमात और स्वयंसेवी संस्थाओं ने मुंह तक नहीं खोला। केरल के ही एर्नाकुलम में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी 41 वर्षीय पादरी एडविन को एक साथ दो-दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। 

कोच्चि में एक कॉन्वैंट स्कूल के प्रिंसीपल फादर कुरियाकोस को पुलिस ने एक लड़के से कुकर्म के आरोप में गिरफ्तार किया था। 2014 में केरल के ही त्रिचूर में सेंट पॉल चर्च के पादरी पर 9 वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म के मामले में पुलिस ने अपना शिकंजा कसा था। फरवरी-अप्रैल 2014 में ही केरल में 3 कैथोलिक पादरी बच्चों से बलात्कार के मामले में कानून की पकड़ में आए थे। वर्ष 2016 में प. बंगाल में भी एक पादरी पर महिला से दुष्कर्म किए जाने का आरोप लगा था। इन सभी मामलों में गिरजाघरों ने शॄमदा होने की बजाय केवल अपने पादरियों का ही बचाव किया। 

देश के आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों में चल रहे ईसाई मिशनरियों के दबाव कारण कैथोलिक संस्थाओं का असली एजैंडा सामने नहीं आ पाता। अधिकतर यौनाचार ईश्वर को ‘खुश’ करने के नाम पर किए जाते हैं। भारत में कुंठित पादरियों की संख्या बढऩे का एक कारण यह भी है कि यहां बिना किसी जांच-पड़ताल के विदेशी संस्थाओं द्वारा पादरी नियुक्त किए जा रहे हैं। यहां तक कि विदेशों में यौन-शोषण के आरोपियों को भारत में सम्मानपूर्वक किसी चर्च में पादरी बना दिया जाता है। वर्ष 2015 में जोसेफ पी. जयापॉल, जिस पर अमरीका में एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया था और जो भागकर भारत पहुंचा था, उसे भी रोमन कैथोलिक संस्था वेटिकन ने तमिलनाडु के एक चर्च में पादरी नियुक्त कर दिया। 

यौनाचार में लिप्त पादरी अपना शिकार सर्वाधिक प्रबल भक्तों में से ही बनाते हैं। इनके परिवारों कोपीढिय़ों से सिखाया जाता रहा है कि कैथोलिक पादरियों परविश्वास करें और उन्हें पूरा सम्मान दें। बिशप पीड़ित परिवारोंके दिमाग में यह बात बैठाते हैं कि सच्चाई सामने आनेपर लोगों की आस्था को चोट पहुंचेगी। इस कुत्सित काम में विदेशी वित्त पोषित और तथाकथित स्वयंसेवी व मानवाधिकार संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। 

वास्तव में चर्च जिस ‘गोपनीयता की संस्कृति’ से अपने अनुयायियों को दीक्षित करता है, उससे यौन-शोषण जैसे मामले दबे रह जाते हैं। रोमन कैथोलिक चर्च में जब कार्डिनल बनाए जाते हैं, तब वे पोप के समक्ष वचन लेते हैं कि हर उस बात को गुप्त रखेंगे जिसके प्रकट होने से चर्च की बदनामी होगी या उसे नुक्सान पहुंचेगा। यही कारण है कि यौन-उत्पीडऩ की बात उजागर होने के बावजूद भी सत्य को छिपाना ही चर्च अपना प्रथम कत्र्तव्य मानता है। 

कैथोलिक पादरियों से जुड़ी बलात्कार की घटनाओं को लेकर 19 मार्च को कुछ ईसाई संगठनों ने ‘बिशप हाऊस’ के बाहर प्रदर्शन किया था। उनका कहना था कि महिलाओं व नाबालिगों की अपराध स्वीकारोक्ति ‘कन्फैशन’ की विधि पादरी के बजाय नन करें क्योंकि पादरी उस दौरान महिलाओं व लड़कियों से न केवल प्रतिकूल प्रश्न पूछते हैं बल्कि मौके का फायदा उठाकर यौन-शोषण भी करते हैं। इस कटु सत्य की पुष्टि 26 वर्षों तक एक कैथोलिक चर्च में नन रहीं सिस्टर जेसमी अपनी आत्मकथा- ‘‘आमीन, द ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए नन’’ में भी कर चुकी हैं। 

सिस्टर जेसमी लिखती हैं, जब वह एक दिन कन्फैशन के लिए गईं, तब फादर ने उन्हें ‘किस’ करने की अनुमति मांगी, जिससे इंकार करने पर फादर ने तर्क दिया कि यह सब पवित्र ग्रंथ बाइबल के अनुरूप है। आज भी जब, कोट्टियूर की घटना के बाद ऐसा ही विरोध एक संगठन द्वारा किया जा रहा है, तब भी केरल कैथोलिक बिशप समिति पवित्र ग्रंथ बाइबल के सिद्धांतों का सहारा लेकर इस आक्रोश को निरस्त कर रही है। 

बलात्कार या यौन उत्पीडऩ या फिर महिलाओं से संबंधित कोई भी अपराध सामाजिक कलंक है। चाहे आरोपी किसी भी समुदाय से क्यों न हो, दोषी सिद्ध होने पर उसे कड़ी सजा देने का प्रावधान है। क्या कारण है कि आसाराम बापू के इस तरह के घृणित मामले प्रकाश में आने के बाद स्वघोषित सैकुलरिस्ट, उदारवादी और मीडिया के बड़े भाग का ध्यान तो इस ओर केन्द्रित हो जाता है, किन्तु फादर रॉबिन जैसे बलात्कार के आरोपियों पर इसी तरह का उग्र रवैया नहीं दिखता?    

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