क्या भारतीय राजनीति ‘कांग्रेस की मौत’ बर्दाश्त कर पाएगी

Edited By Updated: 20 Oct, 2019 01:09 AM

will indian politics be able to tolerate  congress death

राजनीतिक दल प्रतिनिधि लोकतंत्र की कार्यप्रणाली के केन्द्र बिन्दू में हैं क्योंकि कोई बहुदलीय लोकतंत्र मतदान करने वाली जनता के लिए विभिन्न नीति विकल्प उत्पन्न करता है। नीति विकल्पों का उद्देश्य मतदाताओं के हितों तथा आकांक्षाओं को पूरा करना होता है।...

राजनीतिक दल प्रतिनिधि लोकतंत्र की कार्यप्रणाली के केन्द्र बिन्दू में हैं क्योंकि कोई बहुदलीय लोकतंत्र मतदान करने वाली जनता के लिए विभिन्न नीति विकल्प उत्पन्न करता है। नीति विकल्पों का उद्देश्य मतदाताओं के हितों तथा आकांक्षाओं को पूरा करना होता है। राजनीतिक विपक्ष तथा विशेष तौर पर अंतर्दलीय विपक्ष उदार लोकतांत्रिक विचार में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। दिलचस्प बात यह है कि राजनीतिक दलों का एक समान कार्य होता है-वे सभी सरकार बनाने के लिए या जब वे विपक्ष की भूमिका निभाने में असफल हो जाते हैं, राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। 

2019 के आम चुनाव हो चुके हैं। जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 2014 तथा 2019 दोनों संसदीय चुनावों में मिली शानदार सफलता ने भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बना दिया, वहीं कांग्रेस को एक के बाद एक चुनावों में बड़ी पराजयों का सामना करना पड़ा। इस वर्ष के आम चुनावों में भाजपा ने राजग की 352 सीटों में से 303 सीटें जीतीं तथा कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) 91 सीटों पर सिमट गया, जिसमें पुरानी वैभवशाली पार्टी बड़ी मुश्किल से 52 के साथ अद्र्धशतक का आंकड़ा पार कर सकी। जहां भाजपा का विजय प्रतिशत 70 प्रतिशत (लड़ी गई 437 सीटों में से 303 पर विजयी) पर पहुंच गया, वहीं मुख्य विपक्षी दल अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। इस तरह से भाजपा की शानदार विजय ने विपक्ष तथा कांग्रेस को कमजोर तथा अप्रासंगिक बना दिया है। 

विपक्ष का अर्थ
क्यों एक विपक्ष महत्वपूर्ण है? विपक्ष का मतलब न केवल सरकार के निर्णयों पर नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करना है बल्कि सरकार की रचनात्मक आलोचना के साथ-साथ एक प्रगतिशील नीति विकल्प उपलब्ध करवाना भी है। इस मोर्चे पर स्पष्ट तौर पर कांग्रेस के पास व्यापक रणनीति का अभाव है या नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह की जोड़ी के रूप में भाजपा की ताकत का सामना करने का दम नहीं है। 

यह सच है कि लोगों की आमतौर पर दुनिया को उसी रूप में देखने के लिए, जैसा वे चाहते हैं, आलोचना की जाती है, बजाय इसके जैसी वह है। मगर क्या हमें वास्तव में किसी समय महान रही राजनीतिक पार्टी  का अपनी आंखों के सामने पतन होता देखने के लिए दूरबीन की जरूरत है? शीर्ष से लेकर निम्र स्तर के नेता तथा विधायक पार्टी को छोड़ रहे हैं और प्रमुख नेता पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर विचार प्रकट कर रहे हैं। ये महज गहरे अंतर्दलीय विवादों तथा झगड़ों के संकेत हैं। यदि ध्यान से सुनें तो पता चलेगा कि पार्टी छोडऩे के निर्णय या अपनी आवाज उठाने के लिए वास्तविक कारण क्या है? 

गत वर्ष अप्रैल में मैंने एक लेख में उल्लेख किया था कि ‘विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में 133 वर्ष पुरानी राष्ट्रीय पार्टी के लिए सिकुड़ता राजनीतिक स्थान जितना पार्टी के लिए ङ्क्षचताजनक है उतना ही खुद लोकतंत्र के लिए भी। और इसलिए कांग्रेस का पुनरुत्थान देश के लिए महत्वपूर्ण तथा इसके पार्टी नेतृत्व के लिए चुनौतीपूर्ण है। यह कार्य और भी कठिन बना दिया गया है क्योंकि उपेष्टतम नेताओं को पार्टी के पुनर्गठन तथा इसकी खराब छवि के पुनॢनर्माण का जिम्मा सौंपा गया है।’ 

तानाशाहीपूर्ण कार्यप्रणाली
डेढ़ वर्ष बाद कांग्रेस उससे भी अधिक खराब स्थिति में है जैसा कि लोगों को डर था। कड़वी सच्चाई यह है कि कांग्रेस बड़े लम्बे समय से तानाशाहीपूर्ण तरीके से कार्य करती आ रही है, संगठन में सही स्थान के लिए बहुत से योग्य पार्टी कार्यकत्र्ताओं को दरकिनार किया गया। अंतरपार्टी लोकतांत्रिक नियम स्थापित करना अब एक विकल्प नहीं बल्कि जरूरत है। पार्टी को टूटने से बचाने के लिए राजनीतिज्ञों को जवाबदेह बनाना होगा तथा अर्थपूर्ण विवेचना को प्रोत्साहित करना होगा। कांग्रेस को स्वार्थी तथा भ्रष्ट पुराने कांग्रेसियों से छुटकारा पाना चाहिए। पार्टी में बहुत से सक्षम युवा नेता हैं जो पार्टी की कुमलाह चुकी धमनियों में फिर जान फूंक सकते हैं। 

अल्पकालिक राजनीतिक लाभ हमेशा ही दीर्घकालिक राजनीतिक नुक्सान सुनिश्चित करते हैं। राजनीति से समझौता करने के कारण 1952 में पहले आम चुनावों में 489 लोकसभा सीटों में से 364 सीटों के मुकाबले 2014 में यह 545 में से मात्र 44 पर सिमट गई। जहां कांग्रेस से लोगों को बहुत कम आशाएं हैं, पार्टी के उत्थान की जरूरत कभी भी इतनी अधिक नहीं रही। राजनीति में बदलाव उतना ही निरंतर होना चाहिए जैसे कि जीवन में। जो लोग ऐसे बदलाव से बचते हैं वे खुद को विचारों के सागर से परे धकेले जाते तथा इतिहास में गलत ओर स्थापित किए जाते पाते हैं। 

वर्तमान कांग्रेस पार्टी के लिए सर्वाधिक प्रासंगिक टिप्पणी मिशीगन स्टेट यूनिवॢसटी के प्रो. मोहम्मद अयूब ने की है कि ‘कांग्रेस की मुरम्मत नहीं हो सकती।’ वह लिखते हैं कि दो प्रमुख चुनावी पराजयों के बावजूद वंश अपना नियंत्रण छोडऩे से इंकार कर रहा है तथा जानबूझ कर यह एहसास नहीं कर रहा कि वह कांग्रेस की वापसी के अवसरों को नष्ट कर रहा है। परिवार के साथ पार्टी के समीकरण ने इसके नवजागरण की किसी भी सम्भावना को नष्ट कर दिया है। इस वर्ष के संसदीय चुनावों में शानदार विजय सेे उत्साहित भाजपा ने जहां 333 सांसदों का लक्ष्य रख कर 2024 के आम चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है, वहीं कांग्रेस को एक छोटी, रिरियाने वाली तथा संघर्षरत पार्टी के रूप में देखा जा रहा है। 

कांग्रेस के लिए राजनीतिक अवसर
कांग्रेस का पतन कई वर्ष पूर्व शुरू हो गया था मगर 2014 में नरेन्द्र मोदी के चुनाव के साथ इसमें तेजी आ गई। ऐसा नहीं है कि भाजपा नीत राजग सरकार निर्बाध रूप से दौड़ रही है। आॢथक संकट के अतिरिक्त इसकी कार्यप्रणाली के अन्य पहलू सामान्य लोगों के लिए चिंताजनक हैं। सरकार कृषि संकट से लेकर बेरोजगारी तक जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों का संतोषजनक समाधान करने में असफल रही है, यहां तक कि वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का दर्जा और नीचे फिसल गया है। इसलिए कांग्रेस के लिए राजनीतिक अवसर मौजूद हैं। यह सही समय पर सही अवसर लपकना है। 

पार्टी की कमान फिर एक परिवार को सौंप कर कांग्रेस ने सम्भवत: अपने भीतर विघटन को रोक दिया है लेकिन यदि यह सोचती है कि शीघ्र मजबूती के साथ उभरेगी तो यह बहुत बड़ी गलती करेगी। पार्टी नेतृत्व को अपने कार्य में अवश्य कुछ बड़े तथा गहरे की पहचान करनी होगी। वर्तमान राजनीतिक संस्कृति में यदि पार्टी नेता युवा पीढ़ी को स्वीकार करने से टालते रहे तो विघटन एक अन्य विकल्प होगा। सोनिया, राहुल तथा प्रियंका के बगैर कांग्रेस के बारे में सोचा जा सकता है लेकिन कांग्रेस के बिना भारतीय राजनीति एक दुखद तथा अत्यंत दुर्भाग्यशाली मोड़ पर होगी।-डी. भट्टाचार्य                                  

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