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90 घंटे काम करने का सुझाव देकर L&T चेयरमैन विवादों में, सोशल मीडिया पर मचा हंगामा

Edited By jyoti choudhary,Updated: 10 Jan, 2025 11:27 AM

l t chairman criticised for his work for 90 hours statement

लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन अपने एक बयान के कारण सोशल मीडिया पर चर्चा में आ गए हैं। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए कर्मचारियों को सप्ताह में रविवार सहित 90 घंटे काम करना चाहिए।

बिजनेस डेस्कः लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन अपने एक बयान के कारण सोशल मीडिया पर चर्चा में आ गए हैं। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए कर्मचारियों को सप्ताह में रविवार सहित 90 घंटे काम करना चाहिए।

सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो संदेश में सुब्रह्मण्यन ने कहा, "ईमानदारी से कहूं तो मुझे खेद है कि मैं आपसे रविवार को काम नहीं करवा पा रहा हूं। अगर मैं रविवार को भी आपसे काम करवा पाऊं, तो मुझे खुशी होगी क्योंकि मैं खुद रविवार को भी काम करता हूं।" यह बयान तब आया है जब इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने हाल ही में युवाओं से सप्ताह में 70 घंटे काम करने का सुझाव दिया था।

घर में पत्नी को घूरने से अच्छा है ऑफिस में काम करो

सुब्रह्मण्यन ने आगे कहा, “घर पर छुट्टी लेने से कर्मचारियों को क्या फायदा होता है। आप घर पर बैठकर क्या करते हैं? आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक निहार सकते हैं? पत्नियां अपने पतियों को कितनी देर तक निहार सकती हैं? ऑफिस जाओ और काम करना शुरू करो।”

हफ्ते में 90 घंटे काम करते हैं चीनी लोग 

एलएंडटी चीफ ने अपने रुख को सही ठहराने के लिए एक किस्सा भी शेयर किया। उन्होंने एक चीनी शख्स से हुई बातचीत के बारे में बताया, जिसने कहा कि चीन अपने मजबूत वर्क पॉलिसी के कारण अमेरिका से आगे निकल सकता है। सुब्रह्मण्यन के अनुसार, चीनी व्यक्ति ने कहा, “चीनी लोग हफ्ते में 90 घंटे काम करते हैं, जबकि अमेरिकी हफ्ते में केवल 50 घंटे काम करते हैं।”

लोगों ने दी तीखी प्रतिक्रिया

रेडिट पर इस वीडियो को काफी तीखी प्रतिक्रिया मिली। कई यूजर्स ने इसकी तुलना नारायण मूर्ति की ओर से 70 घंटे काम करने को लेकर दिए गए बयान से की। एक यूजर ने लिखा कि मैं एलएंडटी में काम करता हूं और आप सोच सकते हैं कि हमें किस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। वहीं, एक अन्य यूजर ने लिखा कि सीईओ, जिन्हें बहुत ज्यादा वेतन मिलता है और जिन पर अलग-अलग तरह के काम के दबाव होते हैं, वे कम वेतन वाले कर्मचारियों से समान स्तर की प्रतिबद्धता की उम्मीद क्यों करते हैं। कंपनियां अलग-अलग तरह के कार्य घंटे क्यों नहीं देतीं? क्या होगा अगर किसी कंपनी के पास अलग-अलग विकल्प हों? हफ्ते में 40 घंटे, हफ्ते में 30 घंटे, हफ्ते में 50 घंटे, हफ्ते में 70 घंटे। ज्यादा घंटों के लिए ज्यादा वेतन?”

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