ये है देश का एकमात्र मंदिर जहां महिलाएं करवाती हैं पूजा

Edited By Updated: 20 Jun, 2019 01:47 PM

ahilya asthan in darbhanga where pandit are women

क्या आप भगवान में मानते हैं ? क्या आप मंदिर जाते हैं ? क्य आप ने कभी मंदिर में किसी पुजारी से किसी प्रकार की पूजा या अनुष्ठान करवाया है ? आप सोच रहे होंगे कि हम आपसे ये कैसे सवाल कर रहे हैं।

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
क्या आप भगवान में मानते हैं ? क्या आप मंदिर जाते हैं ? क्य आप ने कभी मंदिर में किसी पुजारी से किसी प्रकार की पूजा या अनुष्ठान करवाया है ? आप सोच रहे होंगे कि हम आपसे ये कैसे सवाल कर रहे हैं। तो आपको बता दें हमारा इन सवालों को पूछने के पीछे एक कारण छिपा हुआ है। आप में से लगभग लोगों ने देखा होगा कि मंदिर में पुरुष पुजारी बैठते हैं जो मंदिर में आने वाले भक्तों को प्रसाद आदि देते हैं। इसके साथ ही यही पुरूष पुजारी हर तरह के धार्मिक कार्य भी अनुष्ठान आदि संपन्न करवाते हैं। मगर क्या आपने कभी कोई ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जहां महिलाएं पूजन करवाती हैं। जी हां, शायद किसी को इस बात पर यकीन नहीं होगा लेकिन भारत में ऐसा मंदिर है। चलिए आपकी इंतज़ार को और न बढ़ाते हुए आपको बताते हैं इस अनोखे व अद्भुत मंदिर के बारे मे-
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कहां है ये मंदिर
कहा जाता है दरभंगा के कमतौल स्थित अहिल्या स्थान में रामनवमी के दिन अनोखी परंपरा देखी जाती है। यहां श्रद्धालु अहले सुबह से बैंगन का भार लेकर मंदिर में पहुंचते है। जहां राम और अहिल्या के चरणों में बैंगन के भार को चढ़ाते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि जिस प्रकार गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर बनी अहिल्या का उद्धार त्रेता युग में राम जी ने अपने चरण से किया था और उनके स्पर्श से पत्थर बनी अहिल्या में जान आ गई थी। उसी तरह जिस व्यक्ति के शरीर में अहिला होता है, वे रामनवमी के दिन गौतम और अहिल्या स्थान कुण्ड में स्नान कर अपने कंधे पर बैंगन का भार लेकर मंदिर आते हैं और बैंगन का भार चढ़ाते हैं तो उन्हें अहिला रोग से मुक्ति मिलती है। बता दें अहिला इंसान के शरीर के किसी भी बाहरी हिस्से में हो जाता है, जो देखने में मस्से जैसा लगता है।
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यहां महिला पंडित करवाती हैं पूजा
कहा जाता है आज भी जहां भगवान राम ने अहिल्या का उद्धार किया था, उसकी पीढ़ी अवस्थित है। वहां पुरूष पंडित की जगह महिला ही पूजा करवाती है। बता दें इस स्थल पर भारत के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल से हज़ारों श्रद्धालु पहुंचते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। यहां ये परंपरा सदियों से चली आ रही है।
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