Edited By Jyoti,Updated: 25 Nov, 2021 04:38 PM
ईश्वर पर भरोसा रखें। भयभीत न हों। आपकी आयु का संबंध सांसों के साथ है। भक्ति का फल अनंतगुणा है। भगवान किसी की सूरत नहीं देखते वह तो भक्त का प्रेम देखते हैं। भक्त हो तो शबरी जैसा, भगवान जिसका
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ईश्वर पर भरोसा रखें। भयभीत न हों। आपकी आयु का संबंध सांसों के साथ है। भक्ति का फल अनंतगुणा है। भगवान किसी की सूरत नहीं देखते वह तो भक्त का प्रेम देखते हैं। भक्त हो तो शबरी जैसा, भगवान जिसका पता पूछ कर उसके पास पहुंचे। —संत किरीट भाई
ऌदुनिया में एक मां ही ऐसी होती है जिसने जिंदगी में कभी छुट्टी नहीं मांगी। सब छुट्टी करते हैं पर मां छुट्टी वाले दिन भी दूसरे दिनों से ज्यादा काम करती है। शादी के बाद बेटी को पता चलता है कि मां क्या होती है। बेटी का मायका मां के साथ ही होता है। मां के बाद तो बेटी मेहमान बन जाती है। —सुधांशु जी महाराज
किसी को तुम दिल से चाहो और वो तुम्हारी कदर न करे तो ये उनकी बदनसीबी है तुम्हारी नहीं। —अमरनाथ भल्ला, लुधियाना
जन्म होने पर बंटने वाली मिठाई से शुरू हुआ जिंदगी का यह खेल श्राद्ध की खीर पर आकर खत्म हो जाता है। यही जीवन की मिठास है और बड़े दुर्भाग्य की बात है कि बंदा इन दोनों मौकों पर ये दोनों चीजें खा नहीं पाता।
गरीबों में अच्छा वक्त आने की उम्मीद रहती है लेकिन अमीरों को सदा बुरा वक्त आने का खौफ रहता है।
भरोसा तो अपनी सांसों का भी नहीं है और हम इंसान पर करते हैं।
दूसरों के दोष न देखें। अपना चरित्र सुधारें। अपना चरित्र पवित्र बनाएं। संसार अपने आप सुधर जाएगा। — स्वमाी विवेकानंद
परमात्मा में विश्वास और उनके प्रति स्वार्पण करने वाले मानव को कभी किसी वस्तु की कमी नहीं रहती। —श्री वैणीराम शर्मा
मनुष्य के जीवन की सफलता इसी में है कि वह उपकार करने वाले व्यक्ति को कभी न भूले। —वेद व्यास
भगवान के घर में गरीब-अमीर में कोई भेदभाव नहीं। भेदभाव होता तो भगवान गरीब केवट के साथ प्रेम नहीं करते।
धन आ गया है तो अपने बुजुर्गों का आदर-मान करना न छोड़ दें। उन्हीं के कारण आप आज समाज में सम्मान पा रहे हैं।
अपने माता-पिता का पूजन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने वाले मनुष्य का घर बैठे ही तीर्थ-स्नान हो जाता है।
श्री सनातन धर्म इस संसार का प्राचीन धर्म स्तम्भ है। इसकी शाखाएं मानवता के लिए कल्याणकारी हैं।
जीवन में जो भी प्राणी भजन- सुमिरन नहीं करता उसे दुख के कांटे चुभते ही रहेंगे।
इंसान अपने धर्म से गिरता ही तब है जब वह मोह, माया, तृष्णा और रागद्वेष आदि विकारों में घिर जाता है।
हम परमात्मा को भुला बैठे हैं। हम बाहर इतना व्यस्त हो गए हैं कि भीतर के आत्मस्वरूप के दर्शन ही दुर्लभ हो गए हैं।
पद्म सागर जी कहते हैं- सभी प्राणियों को परोपकार, एकता, मिलजुल कर रहने एवं जन कल्याण की भावना से कार्य करना चाहिए। -अमरनाथ भल्ला