भीमाशंकर ज्योतिर्लिंगः केवल दर्शन मात्र से होगी स्वर्ग की प्राप्ति

Edited By Lata,Updated: 30 Jul, 2019 09:49 AM

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श्रावण के महीने में ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातः 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम जपता है,

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श्रावण के महीने में ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातः 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम जपता है, उसके सातों जन्म तक के पाप नष्ट हो जाते हैं। जिस कामना की पूर्ति के लिए मनुष्य नित्य इन नामों का पाठ करता है, शीघ्र ही उसे उस फल की प्राप्ति हो जाती है। ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है, यही भगवान शिव की विशेषता है। आज हम आपको छठे ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर के बारे में बताएंगे। 
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12 प्रमुख ज्योतिर्लिगों में से भीमाशंकर का स्थान छठा है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे से लगभग 110 किमी दूर सहाद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को समस्त दु:खों से छुटकारा मिल जाता है। यह मंदिर अत्यंत पुराना और कलात्मक है। भीमाशंकर मंदिर नागर शैली की वास्तुकला से बनी एक प्राचीन और नई संरचनाओं का समिश्रण है। चलिए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा। 
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प्राचीनकाल में भीम नामक एक महाप्रतापी राक्षस था। वह कामरूप प्रदेश में अपनी मां के साथ रहता था। वह महाबली राक्षस, राक्षसराज रावण के छोटे भाई कुंभकर्ण का पुत्र था। लेकिन उसने अपने पिता को कभी देखा न था। उसके होश संभालने के पूर्व ही भगवान राम के द्वारा कुंभकर्ण का वध कर दिया गया था। जब वह युवावस्था को प्राप्त हुआ तब उसकी माता ने उससे सारी बातें बताईं। भगवान विष्णु के अवतार श्रीरामचंद्रजी द्वारा अपने पिता के वध की बात सुनकर वह महाबली राक्षस अत्यंत क्रुद्ध हो उठा। अब वह निरंतर भगवान श्री हरि के वध का उपाय सोचने लगा। उसने अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिए एक हजार वर्ष तक कठिन तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे लोक विजयी होने का वर दे दिया। अब तो वह राक्षस ब्रह्माजी के उस वर के प्रभाव से सारे प्राणियों को पीड़ित करने लगा। उसने देवलोक पर आक्रमण करके इंद्र आदि सारे देवताओं को वहां से बाहर निकाल दिया। पूरे देवलोक पर अब भीम का अधिकार हो गया। इसके बाद उसने भगवान श्रीहरि को भी युद्ध में परास्त किया। श्रीहरि को पराजित करने के पश्चात उसने कामरूप के परम शिवभक्त राजा सुदक्षिण पर आक्रमण करके उन्हें मंत्रियों-अनुचरों सहित बंदी बना लिया। इस प्रकार धीरे-धीरे उसने सारे लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। 
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भीम के अत्याचार की भीषणता से घबराकर ऋषि-मुनि और देवगण भगवान शिव की शरण में गए और उनसे अपना तथा अन्य सारे प्राणियों का दुःख कहा। उनकी यह प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने कहा, 'मैं शीघ्र ही उस अत्याचारी राक्षस का संहार करूंगा। उसने मेरे प्रिय भक्त, कामरूप-नरेश सुदक्षिण को भी सेवकों सहित बंदी बना लिया है। वह अत्याचारी असुर अब और अधिक जीवित रहने का अधिकारी नहीं रह गया।' 

भगवान शिव से यह आश्वासन पाकर ऋषि-मुनि और देवगण अपने-अपने स्थान को वापस लौट गए। इधर राक्षस भीम के बंदीगृह में पड़े हुए राजा सदक्षिण ने भगवान शिव का ध्यान किया। वे अपने सामने पार्थिव शिवलिंग रखकर अर्चना कर रहे थे। उन्हें ऐसा करते देख क्रोधोन्मत्त होकर राक्षस भीम ने अपनी तलवार से उस पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार किया। किंतु उसकी तलवार का स्पर्श उस लिंग से हो भी नहीं पाया कि उसके भीतर से साक्षात शंकरजी वहां प्रकट हो गए। उन्होंने अपनी हुंकारमात्र से उस राक्षस को वहीं जलाकर भस्म कर दिया।
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भगवान शिवजी का यह अद्भुत कृत्य देखकर सारे ऋषि-मुनि और देवगण वहां एक होकर उनकी स्तुति करने लगे। उन लोगों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि महादेव! आप लोक-कल्याणार्थ अब सदा के लिए यहीं निवास करें। यह क्षेत्र शास्त्रों में अपवित्र बताया गया है। आपके निवास से यह परम पवित्र पुण्य क्षेत्र बन जाएगा। भगवान शिव ने सबकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। वहां वह ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए निवास करने लगे। उनका यह ज्योतिर्लिंग भीमेश्वर के नाम से विख्यात हुआ।

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