महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंगः जानिए, कैसे हुआ इस पवित्र ज्योतिर्लिंग का निर्माण

Edited By Lata,Updated: 26 Jul, 2019 12:45 PM

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सावन के महीने में हर शिव मंदिर में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए लोग लम्बी-लम्बी कतारों में घंटों खड़े रहते हैं।

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सावन के महीने में हर शिव मंदिर में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए लोग लम्बी-लम्बी कतारों में घंटों खड़े रहते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सावन में अगर भोलेनाथ की आराधना कर ली जाए तो भोलेबाबा अपने भक्तों का हर कष्ट दूर कर देते हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सारे पाप दूर हो जाते हैं। जैसे कि आप सब जानते ही हैं कि 12 ज्योतिर्लिंग में से हम 2 के बारे में बता चुके हैं और आज हम आपको तीसरे ज्योतिर्लिंग के निर्माण की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। 
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उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में वैसे तो सारा साल ही भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। लेकिन सावन के दौरान भीड़ दोगुना अधिक बढ़ जाती है। यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में है। पुण्यसलिला क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन प्राचीनकाल में उज्जयिनी के नाम से विख्यात था, इसे अवन्तिकापुरी भी कहते थे। यह भारत की परम पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। महाभारत, शिवपुराण एवं स्कन्दपुराण में महाकाल ज्योतिर्लिंग की महिमा का पूरे विस्तार के साथ वर्णन किया गया है।

प्राचीनकाल में उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन राज्य करते थे। वह परम शिव-भक्त थे। एक दिन श्रीकर नामक एक पांच वर्ष का गोप-बालक अपनी मां के साथ उधर से गुजर रहा था। राजा का शिवपूजन देखकर उसे बहुत विस्मय और कौतूहल हुआ। वह स्वयं उसी प्रकार की सामग्रियों से शिवपूजन करने के लिए उत्साहित हो उठा। 
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सामग्री का साधन न जुट पाने पर लौटते समय उसने रास्ते से एक पत्थर का टुकड़ा उठा लिया। घर आकर उसी पत्थर को शिव रूप में स्थापित कर पुष्प, चंदन आदि से परम श्रद्धापूर्वक उसकी पूजा करने लगा। माता भोजन करने के लिए बुलाने आई, किंतु वह पूजा छोड़कर उठने के लिए किसी भी प्रकार तैयार नहीं हुआ। अंत में माता ने झल्लाकर पत्थर का वह टुकड़ा उठाकर दूर फेंक दिया। इससे बहुत ही दुःखी होकर वह बालक जोर-जोर से भगवान शिव को पुकारता हुआ रोने लगा। रोते-रोते अंत में बेहोश होकर वह वहीं गिर पड़ा। बालक की अपने प्रति यह भक्ति और प्रेम देखक भोलेनाथ भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हो गए। बालक ने जैसे ही होश में आकर अपने नेत्र खोले तो उसने देखा कि उसके सामने एक बहुत ही भव्य और अतिविशाल स्वर्ण और रत्नों से बना हुआ मंदिर खड़ा है। उस मंदिर के अंदर एक बहुत ही प्रकाशपूर्ण, भास्वर, तेजस्वी ज्योतिर्लिंग खड़ा है। बच्चा प्रसन्नता और आनंद से विभोर होकर भगवान शिव की स्तुति करने लगा। 

माता को जब यह समाचार मिला तब दौड़कर उसने अपने प्यारे लाल को गले से लगा लिया। धीरे-धीरे वहां बड़ी भीड़ जुट गई। इतने में उस स्थान पर हनुमानजी प्रकट हो गए। उन्होंने कहा- 'मनुष्यों! भगवान शंकर शीघ्र फल देने वाले देवताओं में सर्वप्रथम हैं। इस बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने इसे ऐसा फल प्रदान किया है, जो बड़े-बड़े ऋषि-मुनि करोड़ों जन्मों की तपस्या से भी प्राप्त नहीं कर पाते। इस गोप-बालक की आठवीं पीढ़ी में धर्मात्मा नंदगोप का जन्म होगा। द्वापरयुग में भगवान विष्णु कृष्णावतार लेकर उनके वहां तरह-तरह की लीलाएं करेंगे।' हनुमान जी इतना कहकर अंतर्धान हो गए। 
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इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक दूसरी कथा भी कही जाती है। किसी समय अवन्तिकापुरी में वेदपाठी तपोनिष्ठ एक अत्यंत तेजस्वी ब्राह्मण रहते थे। एक दिन दूषण नामक एक अत्याचारी असुर उनकी तपस्या में विघ्न डालने के लिए वहां आया। ब्रह्माजी से वर प्राप्तकर वह बहुत शक्तिशाली हो गया था। उसके अत्याचार से चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। ब्राह्मण को कष्ट में पड़ा देखकर प्राणिमात्र का कल्याण करने वाले भगवान शंकर वहां प्रकट हो गए। उन्होंने एक हुंकार मात्र से उस दारुण अत्याचारी दानव को वहीं जलाकर भस्म कर दिया। भगवान वहां हुंकार सहित प्रकट हुए इसीलिए उनका नाम महाकाल पड़ गया। इसीलिए परम पवित्र ज्योतिर्लिंग को 'महाकाल' के नाम से जाना जाता है।

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