इलाहाबाद में है गंगा पुत्र भीष्म पितामह का इकलौता मंदिर, स्थापित है 12 फीट लंबी मूर्ति

Edited By Jyoti,Updated: 02 Feb, 2020 01:02 PM

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आज देश के कई हिस्सों में भीष्म अष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन व्रत आदि रखने का विधावन बताया जाता है।

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आज देश के कई हिस्सों में भीष्म अष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन व्रत आदि रखने का विधावन बताया जाता है। मान्यता है जिस दंपत्ति के कोई संतान न हो उन्हें इस दिन भीष्म पितामह की पूजा-अर्चना के साथ-साथ व्रत आदि भी ज़रूर रखना चाहिए। आज भीष्म अष्टमी के मौके पर  हम आपको बताने वाले हैं इनके एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जहां आज के दिन इनकी पूजा-अर्चना करने से विशेष लाभ प्राप्त होगा। जी हां, आप ने सही सुना देश के एक कोने में भीष्म पितामह जिनका मूल नाम देवव्रत था उनका एक मंदिर हैं जहां इनकी 12 फीट लंबी मूर्ति स्थापित है, जिसको को तीरों की शय्या पर लेटा हुआ दर्शाया गया है। चलिए जानते हैं इस मंदिर के बारे में- 
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बता दें ये मंदिर भारत में प्राचीन इतिहास के इस महान योद्धा का ये केवल एकमात्र मंदिर है जो कि उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। कहा जाता है इलाहाबाद शहर न सिर्फ़ अपनी तहज़ीब और सभ्यता के लिए जाना जाता है बल्कि यहां मौजूद कई छोटे-बड़े मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। इन्हीं मंदिरों में से एक है भीष्म पितामह का मंदिर। जो यहां के लोगों की आस्था का मुख्य केंद्र माना जाता है। 
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55 साल पुराना है मंदिर
बताया जाता है 1961 में हाई कोर्ट के वकील जेआर भट्ट ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था, जो प्रसिद्ध नागवासुकी मंदिर के पास स्थित है। यहां पूजा तथा परिक्रमा के लिए लोग घंटों लाइन में लगे रहते हैं। मंदिर के पुजारियों बताते हैं कि कई वर्ष पहले साल पहले रोजाना यहां एक बूढ़ी औरत गंगा में स्नान करने आती थी। डुबकी लगाने के बाद एक दिन उसने जे आर भट्ट से कहा कि वह गंगा के पुत्र की भी पूजा करना चाहती है। जिसके बाद भट्ट ने यहां इस मंदिर का निर्माण प्रारंभ कर दिया।
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इस मंदिर में भीष्म पितामह की प्रतिमा को पौराणिक कथाओं से प्रभावित होकर बनाया गया है। यहां भीष्म पितामाह की 12 फिट लंबी और लेटी हुई मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति को तीरों की शय्या पर लेटा हुआ दर्शाया गया है। लोग भीष्म पितामह की मूर्ती पर पुष्प चढ़ते हैं और उन्हें नमन करते हैं। मगर बताया जाता है इस मूर्ति का पुजारियों द्वारा विधिवत पूजन नहीं किया जाता।
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