Chanakya Niti: इस तरह के व्यक्ति को कभी नहीं बतानी चाहिए गोपनीय बातें

Edited By Updated: 25 Feb, 2024 08:12 AM

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भावार्थ : सांसारिक दुखों और कठिनाइयों से उसे ही दुख होता है जो मूर्ख है, जिसे संसार की निस्सारता का ज्ञान नहीं  है। ज्ञानी व्यक्ति इनसे जरा भी

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

न संसारभयं ज्ञानवताम्।

भावार्थ : सांसारिक दुखों और कठिनाइयों से उसे ही दुख होता है जो मूर्ख है, जिसे संसार की निस्सारता का ज्ञान नहीं  है। ज्ञानी व्यक्ति इनसे जरा भी दुखी नहीं होता।‘ ज्ञानी पुरुषों’ को संसार का भय नहीं

सुख’ का आधार है ‘धर्म’

सुखस्य मूलं धर्म:।
भावार्थ :
जो राजा धर्म में आस्था रखता है, वही देश के जनमानस को सुख पहुंचा सकता है। सद्विचार और सद् आचरण को धर्म कहा गया है।

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अहंकारी व्यक्ति को गोपनीय मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए

अविनीतं स्नेहमात्रेण न मंत्रे कुर्वीत।

भावार्थ : राजा को चाहिए कि ऐसे व्यक्ति को राज-काज की गोपनीय मंत्रणा में कभी न रखें, जिसमें अहंकार हो और विनम्रता न हो। वह व्यक्ति चाहे कितना भी प्रिय क्यों न हो।

शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाएं
श्रुतवन्तमुपधाशुद्धं मंत्रिणं कुर्यात्।

भावार्थ : राजा को चाहिए कि वह ऐसे व्यक्ति को अपना मंत्री बनाए जो राजनीति, दंडनीति, तर्कशास्त्र और न्याय करने में कुशल हो। ऐसे व्यक्ति को बार-बार परीक्षा करके भली भांति परख लेना चाहिए। ऐसा व्यक्ति उत्तम चरित्र धारण करने वाला और छल-कपट से शून्य हो।

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योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है

नासहायस्य मंत्रनिश्चय:।

भावार्थ : राजा को चाहिए कि वह योग्य और कुशल लोगों को अपना सहायक नियुक्त करे और उनसे अच्छी प्रकार विचार-विमर्श करके ही कोई राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक निर्णय करे।


समस्त कार्य पूर्व ‘मंत्रणा’ से करने चाहिए

मंत्रमूला: सर्वारम्भा:।

भावार्थ : राजा को चाहिए कि कोई भी कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व वह अच्छी प्रकार से अपने मंत्रियों से विचार-विमर्श कर ले। उस पर अच्छी तरह से सोच ले। उसके गुण-दोष और भविष्य में होने वाले उसके प्रभाव को जांच ले। 

मंत्रणा को गुप्त रखने से ही कार्य सिद्ध होता है

मंत्ररक्षणे कार्य सिद्धिर्भवति।
भावार्थ
: राजा को चाहिए कि किसी समस्या पर मंत्रियों के मध्य किए गए विचार को गुप्त रखे, तभी कार्य सिद्ध हो पाता है। पहले ही भेद खुल जाने से कार्य सिद्धि में विघ्न पड़ने की सम्भावना बनी रहती है। शत्रु अथवा विरोधी के लिए बनाई गई योजना को तो सदैव गुप्त ही रखना चाहिए, अन्यथा शत्रु अथवा विरोधी सतर्क हो सकता है।
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