Chanakya Niti: सगा हो या अपना, इन लोगों को धन देना है विनाश का कारण, जानें चाणक्य की सीख

Edited By Updated: 17 Aug, 2025 03:50 PM

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Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य एक ऐसा नाम जो न केवल राजनीति और कूटनीति में पारंगत थे, बल्कि मानव जीवन के व्यवहारिक पक्ष को भी बखूबी समझते थे। उन्होंने जो ‘चाणक्य नीति’ लिखी, वह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उनके समय में थी। चाणक्य मानते थे कि...

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Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य एक ऐसा नाम जो न केवल राजनीति और कूटनीति में पारंगत थे, बल्कि मानव जीवन के व्यवहारिक पक्ष को भी बखूबी समझते थे। उन्होंने जो ‘चाणक्य नीति’ लिखी, वह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उनके समय में थी। चाणक्य मानते थे कि रिश्ते-नाते, भावना और भरोसा अपनी जगह है लेकिन धन संबंधी मामलों में हमेशा सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए। चाणक्य की दृष्टि में, कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें चाहे वे कितने भी अपने क्यों न लगें, उन्हें धन देना विनाश का कारण बन सकता है। तो आइए जानते हैं, चाणक्य किन लोगों को उधार या धन देने से मना करते हैं और इसके पीछे उनका तर्क क्या था।

आलसी व्यक्ति को धन देना विनाश को न्योता देना है
चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति परिश्रम से भागता है, उसे कभी भी धन नहीं देना चाहिए। आलसी व्यक्ति ना तो अपने जीवन को सुधार सकता है और ना ही धन का सही उपयोग कर सकता है। ऐसे व्यक्ति पर किया गया खर्च व्यर्थ जाता है। ये न तो धन लौटाते हैं और न ही कृतज्ञता दिखाते हैं।

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मद्यपान या नशा करने वालों को धन देना मूर्खता है
आचार्य चाणक्य मानते थे कि जो व्यक्ति अपने व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख सकता, वह धन का सही उपयोग भी नहीं कर सकता। शराब या अन्य नशों के आदी व्यक्ति को धन देना, उसे बर्बादी की ओर और तेजी से धकेलना होता है। ऐसे लोग धन को अपने व्यसनों में नष्ट कर देते हैं।

झूठ बोलने वाले और चालाक व्यक्ति को भी न दें उधार
चाणक्य की नजरों में जो व्यक्ति हर समय चालाकी से पेश आता है और हर बात में झूठ बोलता है, वो किसी का हित नहीं चाहता। ऐसे लोग धन लेकर भूल जाते हैं और जब देने का समय आता है, तो नए बहाने गढ़ते हैं। इनसे दूरी बनाना ही बुद्धिमानी है।

कर्ज़ में डूबे व्यक्ति को उधार देना है जोखिम लेना
अगर कोई व्यक्ति पहले से ही कई जगह से कर्ज़ लेकर डूबा हुआ है और फिर आपसे मदद मांगता है, तो यह सोचकर धन न दें कि वह लौटाएगा। चाणक्य कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को देना अपने धन को डुबोने जैसा है। यह क्रूर लग सकता है लेकिन यह व्यावहारिक सत्य है।

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ऐसे रिश्तेदार जो केवल ज़रूरत पर याद करते हैं
चाणक्य नीति यह भी कहती है कि कुछ रिश्ते केवल स्वार्थ पर टिके होते हैं। जब जरूरत होती है, तभी वे याद करते हैं। ऐसे लोगों को धन देना आत्मघाती साबित हो सकता है। जब वे अपना काम निकाल लेते हैं, तो दोबारा नजर नहीं आते। चाणक्य का मानना था कि ऐसे रिश्तों में भावनाओं के बजाय विवेक से काम लेना चाहिए।

धन का मूल्य न समझने वालों को देना व्यर्थ है
जो लोग मेहनत की कमाई का महत्व नहीं जानते, उन्हें धन देना समझदारी नहीं है। चाणक्य ने बार-बार यह कहा कि ‘धन की रक्षा करनी चाहिए, अन्यथा यह आपको कभी नहीं छोड़ेगा’। ऐसे लोग धन को अनावश्यक चीजों में खर्च कर देते हैं और फिर दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं।

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