चंद्रबदनी सिद्धपीठ: रात में गंधर्व, अप्सराएं मां के दरबार में करते हैं नृत्य और गायन!

Edited By Updated: 09 Nov, 2016 12:09 PM

chandrabdni siddhpith

उत्तराखंड के सिद्धपीठों में से एक है- मां चंद्रबदनी का मंदिर। वैसे तो हर दिन दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं, पर नवरात्रों में श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंच जाती है। यहां की महिमा अपरंपार है।

उत्तराखंड के सिद्धपीठों में से एक है- मां चंद्रबदनी का मंदिर। वैसे तो हर दिन दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं, पर नवरात्रों में श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंच जाती है। यहां की महिमा अपरंपार है। यहां के पुजारी बताते हैं कि मंदिर में मूर्त नहीं, श्रीयंत्र है। रावल यानी पुजारी भी आंखें बंदकर या नजरें झुकाकर श्रीयंत्र पर कपड़ा डालते हैं। मान्यता है कि आंखें बंद न हों तो चुंधिया जाएंगी। 

    
श्री चंद्रबदनी सिद्धपीठ की स्थापना की पौराणिक कथा मां सती से जुड़ी हुई है। एक बार सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शंकर को छोड़ देवता, ऋषि, मुनि, गंधर्व सभी को आमंत्रित किया। सती ने भगवान शंकर से वहां साथ जाने की इच्छा जाहिर की। भगवान शंकर ने उन्हें वहां न जाने की सलाह दी, परंतु वह मोहवश अकेली चली गईं। 


सती की मां के अलावा किसी ने भी वहां सती का स्वागत नहीं किया। यज्ञ मंडप में भगवान शंकर को छोड़कर सभी देवताओं का स्थान था। सती ने भगवान शंकर का स्थान न होने का कारण पूछा तो राजा दक्ष ने उनके बारे में अपमानजनक शब्द सुना डाले। जिस पर गुस्से में सती यज्ञ कुंड में कूद गईं। सती के भस्म होने का समाचार पाकर भगवान शिव वहां आए और दक्ष का सिर काट दिया। भगवान शिव विलाप करते हुए सती का जला शरीर कंधे पर रख कर तांडव करने लगे। उस समय प्रलय जैसी स्थिति आ गई। सभी देवता शिव को शांत करने के लिए भगवान विष्णु से आग्रह करने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपना अदृश्य सुदर्शन चक्र शिव के पीछे लगा दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि चंद्रकूट पर्वत पर सती का बदन (शरीर) गिरा, इसलिए यहां का नाम चंद्रबदनी पड़ा। कहते हैं कि आज भी चंद्रकूट पर्वत पर रात में गंधर्व, अप्सराएं मां के दरबार में नृत्य और गायन करती हैं।


मंदिर में मूर्त नहीं, श्रीयंत्र
यहां के पुजारी बताते हैं, मंदिर में मूर्त नहीं, श्रीयंत्र है। रावल यानी पुजारी भी आंखें बंदकर या नजरें झुकाकर श्रीयंत्र पर कपड़ा डालते हैं। मान्यता है कि यदि आंखें बंद न हों तो चुंधिया जाएंगी। गर्भगृह में एक शिला के ऊपर उत्कीर्ण यंत्र पर चांदी का छत्र अवस्थित है। कहा यह भी जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने श्रीयंत्र से प्रभावित होकर चंद्रकूट पर्वत पर चंद्रबदनी मंदिर की स्थापना की थी।    

  
अद्भुत प्राकृतिक दृश्य
टिहरी जिले के हिंडोलाखाल विकास खंड में चंद्रकूट पर्वत पर समुद्र तल से 8000 फुट की ऊंचाई पर श्री चंद्रबदनी सिद्धपीठ। ऋषिकेश से देवप्रयाग के रास्ते यहां पहुंचा जा सकता है। देवप्रयाग-टिहरी मोटर मार्ग पर करीब 28 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी कस्बा जामणीखाल है, जहां से ऊपर की ओर कच्ची सड़क है। यहां का सफर हर किसी के लिए यादगार बन जाता है। ऊंची पहाडिय़ों और घने जंगलों से गुजरते हुए कुदरती नजारे मुग्ध कर देते हैं।


मंदिर के निकट यात्रियों के विश्राम और भोजन की समुचित व्यवस्था है। वैसे तो हर दिन दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं, पर नवरात्रों में श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंच जाती है।


अप्रैल महीने में हर साल यहां मेला लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु माता के जयकारे लगाते पैदल मार्ग से यहां पहुंचते हैं। यहां की महिमा अपरंपार है। मान्यता है कि यहां आने वालों की हर मुराद पूरी होती है।
 

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