समझौता नहीं समर्पण करें, फिर देखें Happiness कैसे होती है overloaded

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Nov, 2019 08:39 AM

dharmik katha in hindi

एक भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा था। अनेक मजदूर उस काम में लगे थे। वहां से एक राहगीर गुजर रहा था।

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एक भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा था। अनेक मजदूर उस काम में लगे थे। वहां से एक राहगीर गुजर रहा था। उसने सामने बैठे एक मजदूर से पूछा, ‘‘क्या कर रहे हो भाई?’’

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उस मजदूर ने थोड़ी नाराजगी और झल्लाहट से कहा, ‘‘देखते नहीं, पत्थर तोड़ रहा हूं। हमारे भाग्य में यही लिखा है।’’

राहगीर थोड़ी दूरी पर काम करते दूसरे मजदूर के पास गया। उससे भी वही प्रश्र पूछा?’

उसने निराशा से सिर उठाकर उत्तर दिया, ‘‘घर परिवार पालने के लिए मजदूरी कर रहा हूं।’’

थोड़ी दूर जाकर राहगीर ने एक और मजदूर से वही सवाल किया। वह तो पत्थर फोड़ते हुए मस्ती में भजन गुनगुना रहा था। राहगीर का सवाल सुनकर मुस्कुराते हुए कहने लगा, ‘‘वहां भगवान का एक बड़ा भव्य मंदिर बन रहा है। उसमें मुझे भी काम करने का भाग्य मिला है। इसलिए भगवान का भजन गाते-गाते काम कर रहा हूं तो खूब आनंद आ रहा है।’’ इतना कहकर वह अपने काम में व्यस्त हो गया। 

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इस प्रकार एक ही प्रकार का काम करने पर भी हमारे दृष्टिकोण के कारण भिन्न-भिन्न अनुभव आते हैं। कुछ लोगों को जीवन बोझ लगता है। कैसे भी जीवन को घसीटकर जीते हैं। जब तक जीते हैं, दु:ख का अनुभव करते हैं और उसी दु:ख के साथ मर भी जाते हैं। कुछ लोग दु:खों को झेल लेते हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारियों में इतने ऊब-डूब होते रहते हैं कि उसके अलावा कुछ सूझता ही नहीं। जीवन का प्रत्येक क्षण भूतकाल में समा रहा है, इसकी तरफ न ध्यान रहता है, न भान। सुख-दुख के थपेड़े खाते रहते हैं।

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कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जिन्हें लगता है कि जीवन तो परमेश्वरीय कृपा का प्रसाद है। वे किसी भी परिस्थिति में रहें, हमेशा आनंदित रहते हैं। सुख-दु:ख तो कालक्रम से आते ही रहते हैं, लेकिन उससे अलिप्त रहकर अपने कर्तव्य कर्म में मशगूल रहते हैं।

ऐसे में हमें ही निर्णय और प्रयत्न करना है कि हमें कैसा बनना है। हम अपने को बदल कर परिस्थिति भी अच्छी-बुरी बना सकते हैं।

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