Diwali 2023: असत्य पर सत्य की विजय को चरितार्थ करता है दिवाली का पर्व

Edited By Prachi Sharma,Updated: 12 Nov, 2023 07:58 AM

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दीपोत्सव भारतीय सनातन संस्कृति का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण त्यौहार है। वेद वाक्यों-‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का प्रतीक यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय को

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Diwali 2023: दीपोत्सव भारतीय सनातन संस्कृति का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण त्यौहार है। वेद वाक्यों-‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का प्रतीक यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय को चरितार्थ करता है। दीपावली का अर्थ है दीपों की शृंखला। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने उनके राज्यारोहण पर दीपमाला करके यह महोत्सव मनाया था।

श्री जानकी जी सहित रघुनाथ जी को देखकर अयोध्यावासी तथा मुनि गण अत्यंत हर्षित हुए। सबके दु:ख नष्ट हो गए। जय हो, जय हो की उद्घोषणा से आकाश गूंजने लगा। तब से आज तक समस्त भारतवासी यह प्रकाश-पर्व हर्ष एवं उल्लास से मनाते हैं। दीपावली की रात्रि को दीपमालाओं का दृश्य देखकर हर कोई हर्षोल्लास से भर जाता है। दीपावली पर्व का मूल भाव है आसुरी भावों अर्थात नकारात्मक शक्तियों का नाश।

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दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा समुद्र मंथन से पैदा हुई माता लक्ष्मी जी के जन्म दिवस से शुरू होता है, जिसे हम धनतेरस कहते हैं। पर्व के इन दिनों में बाजारों में चारों ओर जनसमूह उमड़ पड़ता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों प्रकार से मनाया जाने वाला एक ऐसा विशिष्ट पर्व है, जो धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक महत्व रखता है।

इस दिन धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी जी के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में महालक्ष्मी जी, विघ्न विनाशक गणेश जी तथा विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अर्द्धरात्रि में मां महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आकर प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीके से सुसज्जित एवं प्रकाशयुक्त होता है, वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। इसलिए इस दिन घर-बाहर को खूब साफ-सुथरा करके सजाया-संवारा जाता है।

दीपावली के ऐतिहासिक तथ्यों से जुड़े कई प्रसंग हैं। जब राजा बलि ने अपने पाताल लोक की रक्षा हेतु भगवान विष्णु जी से वहीं रहने का वर मांगा, तो प्रभु वहीं ठहर गए। तब मां लक्ष्मी जी की प्रार्थना पर राजा बलि ने दीपावली पर्व पर मां लक्ष्मी जी को अपने पति श्री हरि विष्णु जी को आदर सहित जाने की आज्ञा दी। तब तीनों लोकों मे दीपोत्सव पर्व मनाया गया। कठोपनिषद् में वर्णित यम-नचिकेता संवाद में यम जी से ब्रह्म का अनश्वर ज्ञान लेकर जब नचिकेता पृथ्वी लोक पर लौटे तो इस प्रसन्नता में दीपावली पर दीप जलाए गए। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। 

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एक कथा के अनुसार, जब भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों से इंद्र की बजाय गोवर्धन की पूजा करने को कहा, तो इन्द्र ने अहंकारवश इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा आरंभ कर दी। भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को इन्द्र द्वारा की गई मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर धारण किए रखा और गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे।

अपने इस कृत्य से इन्द्र अत्यंत लज्जित  हुए और भगवान गोविन्द से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी, इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।

सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा। दीपावली से दो दिन बाद भैया दूज का पर्व आता है। यह दीपावली पर्व का समापन पर्व भी है। इस प्रकार धनतेरस से आरंभ होकर पांच दिनों तक मनाया जाने वाला दीपावली पर्व पूरे वर्ष भर के लिए भारतीय जनमानस के हृदयपटल पर अमिट छाप छोड़ जाता है। भारत ही नहीं, विदेशों में बसे भारतीय भी  इस पर्व को श्रद्धा एवं हर्षोल्लास से मनाते हैं। भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रीय एकता को समर्पित तथा सामाजिक समरसता से पूर्ण यह त्यौहार पर्वों का मुकुट मणि त्यौहार है, जिसकी प्रतीक्षा पूरे देशवासियों को वर्ष भर रहती है। भारत वर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में पर्वों के समूह दीपावली पर्व का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है।

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