विदेशों में भी रहती है गणेश उत्सव की धूम, विभिन्न रूपों में पूजे जाते हैं बप्पा

Edited By Updated: 23 Aug, 2017 09:20 AM

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भारत में ही नहीं विदेशों में भी गणेश उत्सव विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। तिब्बत में गणेश जी को दुष्टात्माओं के दुष्प्रभाव से रक्षा करने वाला देवता माना जाता है। यहां गणेश जी बौद्ध विहारों एवं

भारत में ही नहीं विदेशों में भी गणेश उत्सव विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। तिब्बत में गणेश जी को दुष्टात्माओं के दुष्प्रभाव से रक्षा करने वाला देवता माना जाता है। यहां गणेश जी बौद्ध विहारों एवं मंदिरों के द्वार के ऊपर स्थापित हैं। तिब्बत में कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों से गणपति हृदय नामक मंत्र जपवाया था। यहां बुद्ध का एक चिन्ह हाथी है और गणपति का मस्तक भी हाथी है जो कुछ समानता बताता है। नेपाल में गणेश मंदिर की स्थापना सर्वप्रथम सम्राट अशोक की पुत्री चारूमित्रा ने की तथा उन्हें बौद्धों के सिद्धिदाता के रूप में माना गया है। 

 

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ईसा से 236 वर्ष पूर्व मिस्र में श्री गणेश के कई मंदिर थे। उस समय इन्हें कृषि रक्षक के नाम से पूजा जाता था। किसान अपने खेत में ऊंचे स्थान पर गणेश प्रतिमा स्थापित करते थे जिससे फसलें रोगमुक्त रहें तथा पैदावार अच्छी हो। विद्वानों का मानना है कि भारत के बाहर गणेश पूजन का प्रसार बौद्ध धर्म के साथ ही हुआ है।

 

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थाईलैंड, जावा एवं बाली में गणेश जी की पूजा की जाती है। इसी प्रकार श्रीलंका, म्यांमार में भी विभिन्न रूपों में गणेश पूजा की जाती है। बोर्नियो में भी विभिन्न रूपों में गणेश और बुद्ध की जुड़वां प्रतिमाएं हैं।

 

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भारत में इंदौर का रिद्धि-सिद्धि गणेश मंदिर तथा रणथम्भौर का गणेश मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। आज की परिस्थितियों में गणेशोत्सव द्वारा साम्प्रदायिक सौहार्द बनाने का प्रयास होना चाहिए तथा साथ ही गणेश प्रतिमाओं का कम से कम विसर्जन कर अथवा पर्यावरण मित्र प्रतिमाओं का विसर्जन कर जल प्रदूषण को रोकने का प्रयास भी होना चाहिए। 

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