भूत-प्रेत सिर्फ वहम हैं या सच्चाई

Edited By ,Updated: 10 Mar, 2017 03:40 PM

ghosts are just superstition or reality

लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि जिनकी अकाल मृत्यु होती है अर्थात जिनकी दुर्घटना से या अस्वाभाविक मृत्यु होती है वे लोग अपने शेष जीवन में

लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि जिनकी अकाल मृत्यु होती है अर्थात जिनकी दुर्घटना से या अस्वाभाविक मृत्यु होती है वे लोग अपने शेष जीवन में भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं। यह सर्वमान्य बात है कि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। यह बात भूत-प्रेत पर भी लागू होनी चाहिए। जीव ने यदि भूत-प्रेत की योनि में जन्म लिया है तो उसकी मृत्यु भी होनी चाहिए परन्तु उनके मरने की बात कभी सुनने में नहीं आई। अर्थात मृत्यु प्राप्त जीव भूत-प्रेत की योनि में जाते हैं, यह सिद्धांत कीट-पतंग, पशु-पक्षी और अनेकों अदृश्य जीवों पर भी लागू होनी चाहिए जो प्रतिदिन मनुष्यों द्वारा मार दिए जाते हैं या प्राकृतिक आपदाओं-आंधी, तूफान, भूकम्प, बाढ़ आदि में मर जाते हैं।


इस सिद्धांत के अनुसार इनको भी भूत-प्रेत की योनि में जाना चाहिए? तब कल्पना करें कि इस संसार में भूतों की संख्या मनुष्यों की आबादी से भी कई गुना अधिक होनी चाहिए परन्तु ऐसा देखने में नहीं आता है। अत: यह कहना कि अकाल मृत्यु प्राप्त जीव भूत-प्रेत की योनि में जन्म लेते हैं न तर्क सम्मत और न ही विज्ञान सम्मत है।


भूत-प्रेत की योनि होती ही नहीं : जीव का स्थूल शरीर, मन व इंद्रिय आदि साधनों के साथ ईश्वरीय व्यवस्था के अनुसार संयोग जन्म है। अर्थात सूक्ष्म शरीर युक्त जीव का स्थूल शरीर के साथ संयोग का नाम ही योनि है। केवल सूक्ष्म शरीर के आधार पर भूत-प्रेत योनि को प्रमाणिक नहीं माना जा सकता है क्योंकि बिना शरीर के कोई भी योनि नहीं होती है। स्थूल शरीर के बिना कोई भी सूक्ष्म शरीर न तो दिखाई देता है और न कोई भौतिक क्रिया ही कर सकता है। प्रजनन की विधाओं के आधार पर योनियों को चार भागों में विभाजित किया गया है-जरायुज, अंडज, स्वेदज  और उद्भिज्ज।


जरायुज का तात्पर्य है जोर से होने वाले प्राणी जैसे मनुष्य, गाय, भैंस। अंडज का तात्पर्य है अंडे से होने वाले प्राणी जिसमें अधिकतर पक्षी आ जाते हैं। स्वेदज का तात्पर्य मैल या गंदगी में पैदा होने वाले प्राणी, जैसे जुएं, पानी नाली के कीटाणु। उद्भिज्ज का तात्पर्य है, जमीन से उगने वाले प्राणी जैसे पेड़-पौधे। इन्हीं चार योनियों में समस्त प्राणियों का समावेश हो जाता है। इसके अतिरिक्त पांचवीं योनि का कोई विधान नहीं है। यह ईश्वर प्रणीत शाश्वत सिद्धांत हैं। इसका उल्लंघन करने की शक्ति किसी भी जीव में नहीं है।


कहा यह जाता है कि जिनकी दुर्घटना से या अस्वाभाविक मृत्यु होती है वे लोग शेष जीवन में भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं और इधर-उधर भटकते रहते हैं। कभी-कभी ये भूत-प्रेत परकाया में प्रवेश कर जाते हैं और उनको सताते हैं या कष्ट देते हैं। वे सामान्यत: अपने परिचितों और स्वजनों को ही अधिक परेशान करते हैं या कष्ट देते हैं। दिवंगत आत्मा का इधर-उधर भटकना, संभव नहीं क्योंकि वह ईश्वराधीन होने के कारण स्वतंत्रता से कुछ भी नहीं कर सकता। परकाया में प्रवेश करना भी ईश्वरीय नियम के विरुद्ध है,  क्योंकि एक शरीर में एक ही आत्मा रह सकती है। आत्मा प्रलय काल और मोक्षावस्था को छोड़ कर बिना शरीर के कभी नहीं रहती है। इन दोनों अव्यवस्थाओं में वह अदृश्य रहती है। यह र्निववाद सत्य है कि मृत्यु के पश्चात ईश्वरीय व्यवस्थानुसार जीव या तो दूसरे शरीर को धारण कर लेता है या मोक्ष को प्राप्त होता है। इस बीच उसके किसी अन्य के शरीर में प्रविष्ट होने या इधर-उधर घूमकर लोगों के जीवन में अच्छा-बुरा दखल देने का प्रश्र ही नहीं उठता। मोक्ष प्राप्त जीवात्माएं पवित्र और आनंद मग्र रहती हैं परकाया में प्रवेश कर किसी मनुष्य को कष्ट या यातनाएं दें यह मानना अस्वाभाविक है।


मृत्यु के पश्चात जीव को एक शरीर से निकल कर दूसरे शरीर में जाने में कितना समय मिलता है इसका निर्देश वेदांत दर्शन 6/1/13 बृहदारण्यक उपनिषद तथा गरुड़ पुराण-प्रेत अध्याय 10, श्लोक 65 में लिखा है कि आत्मा अपने पहले शरीर को छोडऩे से पूर्व ईश्वर की न्याययुक्त कर्मफल व्यवस्था में अगले शरीर में स्थिति कर लेने के पश्चात ही अपने इस शरीर को छोड़ती है। स्थूल शरीर के बिना कार्य करना संभव नहीं अत: ईश्वर की व्यवस्था में यह आत्मा एक शरीर को छोड़ कर दूसरे शरीर को तुरन्त ग्रहण कर लेती है। महाभारत वनपर्व में कहा है- आयु पूर्ण होने पर आत्मा अपने जर्जर शरीर का परित्याग करके उसी क्षण किसी दूसरे शरीर में प्रकट होती है। एक शरीर को छोडऩे और दूसरे शरीर को ग्रहण करने के मध्य में उसे क्षण भर का समय भी नहीं लगता। अत: वैदिक सिद्धांत के अनुसार मृत्यु और जन्म के बीच कोई ऐसा समय ही नहीं बचता कि जिसमें जीवात्मा इधर-उधर भटक सके या भूत-प्रेत बन सके। सच्चाई यह है कि शरीर छोडऩे के पश्चात जीवात्मा परमात्मा के अधीन रहती है और वह स्वतंत्रता से कुछ नहीं कर सकती। 


सच्चाई यह है कि दुर्घटना या अस्वाभाविक मृत्यु प्राप्त व्यक्ति अपनी बाकी की उम्र अगली योनि में व्यतीत करता है अर्थात उसकी जो अगली योनि में जितनी उम्र निर्धारित होती है उसमें पहले वाली बाकी उम्र जोड़ दी जाती है। अब प्रश्र उठता है कि मृत्यु प्राप्त व्यक्ति यदि मनुष्य योनि में भी उसी स्तर में जन्म लेता है तब तो यह बात लागू हो सकती है। पर वह यदि अन्य योनियों में यानी पशु-पक्षी व कीट-पतंग की योनि में जाता है या पहले वाले मनुष्य जीवन के ऊंचे या नीचे स्तर जो मनुष्य योनि ही पाता है तो उसकी आयु ईश्वर की कर्म न्याय व्यवस्था के अनुसार कट या बढ़ भी सकती है। यह लेख मैंने अति उपयोगी समझ कर ‘मानव निर्माण प्रथम सोपान’ नामक पुस्तक के उद्धृत किया है जिसमें अंत की 4-6 लाइनें मैंने अपने स्वयं के विचार से यह स्पष्ट करने के लिए लिखी हैं कि भूत-प्रेत सिर्फ वहम हैं।    

- पं खुशहाल चन्द्र

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!