गोपाष्टमी 2021: शाम को गौ माता की पूजा व सेवा करते समय करें इस मंत्र का उच्चारण

Edited By Updated: 11 Nov, 2021 04:51 PM

gopashtami 2021

गोपाष्टमी का पर्व प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। सनातन धर्म में इस दिन का अधिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति इस दिन गाय

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गोपाष्टमी का पर्व प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। सनातन धर्म में इस दिन का अधिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति इस दिन गाय माता की सेवा करता है, उस पर एक साथ 33 कोटि देवी-देवताओं की कृपा होती है। तो वहीं ये भी मान्यता है कि गौमाता के सेवा और पूजन करने वाले व्यक्ति के जीवन में से हर बाधा विपदा दूर हो जाती है। धार्मिक शास्त्रों में गौ माता को ही नहीं, बल्कि इनके मूत्र, मल मूत्र तथा इनके दूध को बहुत पावन माना जाता है। कहा जाता है गौमाता के गोबर बने उपले का रोजाना घर दुकान, मंदिर परिसरों पर धूप करने से वातावरण में शुद्ध होता है तथा सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। तो वहीं इस दिन गाय माता से जुड़े कुछ मंत्रों का जप करने से भी व्यक्ति को कई लाभ प्राप्त होते हैं। मान्यता है कि इस दिन न केवल सुबह बल्कि पूरे दिन में से किसी भी समय में गाय माता की पूजा की जा सकती है। तो आप भी चाहते कि आपके जीवन में से समस्त दुख दूर हो जाएं तो आज के दिन की शेष अविध में नीचे दी गई जानकारी जरूर पढ़ें। 

गोपाष्टमी पूजन मंत्र- 
*लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता। 

*घृतं वहति यज्ञार्थ मम पापं व्यपोहतु।।
घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवाः।
घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥
घृतं मे हृदये नित्यं घृतं नाभ्यां प्रतिष्ठितम्।
घृतं सर्वेषु गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्॥ 
गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च। 
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्॥ 
सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः। 
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत्॥

इस दिन श्री हरि विष्णु के गोविंद स्वरूप का ध्यान करते हुए गीता के आठवें अध्याय का पाठ करें व  "ॐ गोविन्दाय नमः॥" मंत्र का जाप करें। 

इसके अलावा जीवन में धन व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती के लिए गाय के चरणों में चढ़े 8 कागजी बादाम तिजोरी में छुपाकर रखें। 


धूप दीप आदि के साथ करें इससे गौ माता की आरती- 

आरती श्री गौमता जी की आरती श्री गैय्या मैंय्या की।
आरती हरनि विश्‍व धैय्या की।।
अर्थकाम सुद्धर्म प्रदायिनि अविचल अमल मुक्तिपददायिनि।
सुर मानव सौभाग्यविधायिनि, प्यारी पूज्य नंद छैय्या।।
अख़िल विश्‍व प्रतिपालिनी माता, मधुर अमिय दुग्धान्न प्रदाता।
रोग शोक संकट परित्राता भवसागर हित दृढ़ नैय्या की।।
आयु ओज आरोग्यविकाशिनि, दुख दैन्य दारिद्रय विनाशिनि।
सुष्मा सौख्य समृद्धि प्रकाशिनि, विमल विवेक बुद्धि दैय्या की।।
सेवक जो चाहे दुखदाई, सम पय सुधा पियावति माई।
शत्रु मित्र सबको दुखदायी, स्नेह स्वभाव विश्‍व जैय्या की।।

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