Edited By Prachi Sharma,Updated: 22 Oct, 2025 06:00 AM

Govardhan Shri Nath Temple: ब्रजभूमि, जिसे राधा-कृष्ण की प्रेम लीलाओं का साक्षी माना जाता है, अपनी अद्भुत प्रेम कहानियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसी ब्रजधरा में गोवर्धन स्थित जतीपुरा का श्रीनाथजी मंदिर एक ऐसी ही अविस्मरणीय प्रेम गाथा सुनाता है, जो...
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Govardhan Shri Nath Temple: ब्रजभूमि, जिसे राधा-कृष्ण की प्रेम लीलाओं का साक्षी माना जाता है, अपनी अद्भुत प्रेम कहानियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसी ब्रजधरा में गोवर्धन स्थित जतीपुरा का श्रीनाथजी मंदिर एक ऐसी ही अविस्मरणीय प्रेम गाथा सुनाता है, जो एक भक्त और भगवान के अटूट मिलन को दर्शाती है। यह कहानी मेवाड़ की अजब कुमारी और सांवरे श्रीनाथजी के बीच के अद्वितीय प्रेम, विश्वास और समर्पण पर आधारित है।
श्रीनाथजी मंदिर: भक्त और भगवान के मिलन का साक्षी
जतीपुरा में गिरिराज पर्वत की शिलाओं पर बना यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के उस स्वरूप को समर्पित है जिसमें उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था। इस मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता यहां बनी एक रहस्यमयी प्रेम गुफा है। यह गुफा प्रभु के शयन कक्ष में बनी है और इसे मंदिर का एक महत्वपूर्ण द्वार माना जाता है। मान्यता है कि लगभग 700 किलोमीटर लंबी यह गुफा गोवर्धन को नाथद्वारा से जोड़ती है।
सेवायत बताते हैं कि भगवान श्रीनाथजी अपनी भक्त अजब कुमारी के वचन को पूरा करने के लिए आज भी रोज रात को जतीपुरा में शयन करते हैं और सुबह होने से पहले उसी गुफा के रास्ते नाथद्वारा चले जाते हैं। इस बात का प्रमाण यह है कि रोज रात को शयन के लिए बिछाई गई शैया पर सुबह बिस्तरों पर सिलवटें पाई जाती हैं, जो प्रभु की शयन लीला और उनके आवागमन को सिद्ध करती हैं।
मेवाड़ की अजब कुमारी और कान्हा की प्रेम गाथा
मेवाड़ की राजकुमारी अजब कुमारी अपनी तिरछी चितवन और मनमोहक मुस्कान वाले श्याम सुंदर पर पूरी तरह रीझ गई थीं। अजब कुमारी अपने बीमार पिता के शीघ्र स्वस्थ होने की मन्नत मांगने गोवर्धन आईं। यहां श्रीनाथजी की मनोहारी छवि देखकर उन्होंने मीरा की तरह ही ठाकुर को मानसिक रूप से अपना पति मान लिया और गिरिराज की तलहटी में रहकर उनकी सेवा करने लगीं। भक्त की निस्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर प्रभु ने उन्हें दर्शन दिए। अजब कुमारी ने उनसे नाथद्वारा आकर अपने बीमार पिता को दर्शन देने की विनती की। ब्रजवासियों के प्रेम में बंधे होने के कारण भगवान ने ब्रज छोड़ने से मना कर दिया। भक्त के वशीभूत होकर भगवान ने एक शर्त रखी: वह नाथद्वारा तो चलेंगे लेकिन उन्हें रोजाना रात को शयन के लिए ब्रज वापस आना होगा। अजब कुमारी ने प्रभु की यह शर्त स्वीकार कर ली। इसी वायदे को निभाने के लिए भगवान ने जतीपुरा से नाथद्वारा तक इस प्रेम गुफा का निर्माण किया था।

श्रीनाथजी के प्राकट्य का इतिहास
एक बार आन्न्यौर की नरो नामक लड़की की गाय का दूध गिरिराज शिला पर अपने आप झरने लगा। जब उसने शिला पर आवाज लगाई, तो अंदर से देव दमन, इंद्र दमन और नाग दमन नाम सुनाई दिए। इसी शिला से श्रीनाथजी की बाईं भुजा का प्राकट्य हुआ। लगभग 450 वर्ष पूर्व पूरनमल खत्री ने जतीपुरा में गिरिराज शिलाओं के ऊपर इस मंदिर का निर्माण कराया। यहां भगवान श्रीकृष्ण के गिरिराज पर्वत उठाए हुए स्वरूप के दर्शन होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि गिरिराज महाराज, भगवान श्रीकृष्ण, और श्रीनाथजी एक ही देव के अलग-अलग नाम हैं।
पूंछरी के लौठा
इस ब्रजभूमि में एक और भक्त, लौठा की कथा भी सदियों से प्रसिद्ध है, जो भक्ति की कसौटी पर अपनी परीक्षा दे रहे हैं। लौठा रोजाना कन्हैया के साथ गाय चराने जाते थे। वे सिर्फ कन्हैया का छोड़ा हुआ जूठा भोजन ही करते थे। कन्हैया भी अपने इस भक्त के लिए जानबूझकर ज्यादा भोजन लेकर बैठते थे। जब कन्हैया ब्रज छोड़कर मथुरा गए, तो उन्होंने लौटकर आने का वचन दिया। लौठा तब से आज तक कन्हैया की राह देख रहे हैं और तभी से उन्होंने अन्न-जल का त्याग कर रखा है। ब्रज में आज भी उनकी भक्ति की मिसाल दी जाती है। उनके लिए एक प्रसिद्ध कहावत है:
"ना कछु खावै, ना कछु पीवै, तऊ कैसौ परौ सिलौंटा, धन्य-धन्य तो कू पूंछरी के लौठा।
गोवर्धन का यह श्रीनाथजी मंदिर, अजब कुमारी और लौठा जैसे भक्तों की अनूठी प्रेम गाथाओं से सुशोभित है, जो भक्त और भगवान के शाश्वत संबंध को दर्शाते हैं।
