Guru Pradosh Vrat 2020: ये है कथा और महिमा, ऐसे करें मनचाही इच्छाएं पूरी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Jun, 2020 09:56 AM

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हमारे शास्त्रों में सुखी दांपत्य की कामना और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत करने का विशेष महत्व बताया गया है। यह व्रत हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी को पड़ता है

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Guru Pradosh Vrat 2020: हमारे शास्त्रों में सुखी दांपत्य की कामना और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत करने का विशेष महत्व बताया गया है। यह व्रत हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी को पड़ता है और इस दिन भक्तजन भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा-अर्चना करते हैं। दक्षिण भारत में प्रदोष व्रत को प्रदोषम के नाम से भी जाना जाता है और ऐसी मान्यता भी है कि इस दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का यश गान करते हैं।

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ऐसी मान्यता है कि प्रदोष व्रत रखने से व्यक्ति निरोग रहता है, दांपत्य जीवन सुखद होता है, इच्छाएं फलित होती हैं, कामनाएं सिद्ध होती हैं, रुके हुए कार्य पूर्ण होते हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है। ऐसा भी कहा जाता है कि पूरे विधि-विधान के साथ इस व्रत को रखे जाने से पुत्र की प्राप्ति होती है।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन स्नान करने के बाद भगवान शिव का अभिषेक करें। पंचामृत का पूजा में प्रयोग करें । धूप दिखाएं और भगवान शिव को भोग लगाएं। इसके बाद व्रत का संकल्प लें।

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Guru Pradosh Vrat Ki Katha: इस व्रत के पीछे दो मान्यताएं व दंत कथाएं जुड़ी हुई हैं। एक दंतकथा के अनुसार चंद्र को कुष्ठ रोग था और मृत्यु तुल्य कष्ट से वह गुजर रहा था। तब भगवान शिव ने त्रयोदशी के दिन उसे पुनर्जीवन प्रदान करते हुए उसके सभी दोषों का निवारण किया था। तभी से   इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।

दूसरी मान्यता के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्रासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। उस समय देवताओं ने दैत्य सेना को बुरी तरह पराजित किया। जिससे वृत्रासुर अत्यंत क्रोधित होकर स्वयं युद्ध के लिए आ गया। उसने आसुरी माया से विकराल रूप धारण कर लिया और देवताओं को ललकारा। भयभीत होकर देवता बृहस्पति देव की शरण में पहुंचे।

तब बृहस्पति ने वृत्रासुर की पृष्ठभूमि से परिचित करवाते हुए देवताओं को बताया कि पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था और बहुत बड़ा तपस्वी और कर्म निष्ठ था । उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था।

एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत पर शिव दर्शन को चला गया। वहां जब उसने भगवान शिव के वाम अंग में माता पर्वती को विराजमान देखा तो राज तुल्य अहंकार में आकर उसने उपहास उड़ाते हुए कहा कि धरती लोक पर तो हम माया-मोह में फंसे होने के कारण स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं लेकिन आप तो देवलोक में भी स्त्री मोह नहीं त्याग पा रहे।

चित्ररथ के मुख से यह बात सुनकर भगवान शिव तो मंद-मंद मुस्कुराते रहे लेकिन माता पार्वती ने क्रोध में आकर उन्हें शाप देते हुए कहा कि तू अब दैत्य रूप धारण करके धरती पर रहेगा।

देव गुरु बृहस्पति ने देवताओं को कहा कि इस दैत्य को भगवान शिव के प्रदोष व्रत के जरिए ही खत्म किया जा सकता है। तब इंद्र ने यह व्रत किया और वृत्रासुर पर विजय प्राप्त की।

इस व्रत को करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और उनका हमेशा आशीर्वाद बना रहता है। कई जगहों पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस बार यह व्रत 18 जून गुरुवार को पड़ रहा है इसलिए इसे गुरु प्रदोष कहा जाएगा।

गुरमीत बेदी
gurmitbedi@gmail.com

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