Guru Ravidas Jayanti 2022: ‘मुख में राम, हाथ में काम’ के ध्वजारोही ‘श्री गुरु रविदास जी’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Feb, 2022 08:05 AM

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जिस समय काशी, बनारस (यू.पी.) में क्रांतिकारी, कर्मयोगी और युग महापुरुष श्री गुरु रविदास महाराज जी का पुण्य प्रकाश हुआ उस समय हमारा देश कई रियासतों में बंटा हुआ और अनेक कुप्रथाओं का शिकार था

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Guru Ravidas Jayanti 2022:  जिस समय काशी, बनारस (यू.पी.) में क्रांतिकारी, कर्मयोगी और युग महापुरुष श्री गुरु रविदास महाराज जी का पुण्य प्रकाश हुआ उस समय हमारा देश कई रियासतों में बंटा हुआ और अनेक कुप्रथाओं का शिकार था। गुरु जी के जीवन का आदर्श मध्यकालीन भारत के उस दौर में तत्कालीन समाज में व्याप्त सांस्कृतिक, आर्थिक असमानता, सामाजिक कुरीतियों अर्थात मानवीय भेदभाव, धार्मिक आडम्बर, ऊंच-नीच की भावना, कटुता को दूर कर मधुर और नम्र वाणी से अपनी शिक्षाओं द्वारा भटके हुए समाज को सही रास्ते पर लाना तथा उन्हें अपने अधिकारों का एहसास कराना था।

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उन्होंने अनेक कष्ट सहकर भी मानव मात्र को सत्य, पवित्र, सुचारू और प्रगतिशील जीवन जीने की उत्तम सेध दी। श्री गुरु रविदास जी अपनी सारी कमाई संगत और लंगर की सेवा में लगा देते थे इसलिए उनके पिता जी ने गुरु जी को पारिवारिक जिम्मेदारियों का एहसास करवाने के लिए उनकी शादी करके उन्हें घर के पिछवाड़े में छोटी-सी कुटिया बना दी जो बाद में प्रसिद्ध और बड़ा आश्रम बन गया। उनकी धर्म पत्नी का नाम भागवंती लोना था जो मिरजापुर से थीं। वह रविदास जी के हर कामकाज में सब्र-संतोष और कर्मशीलता के साथ हाथ बंटाती थीं। श्री गुरु रविदास जी उच्च कोटि के सदाचारक, यथार्थक, तर्कशीलता के तराजू में तोलने वाले निर्गुण ब्रह्म के साधक थे।

उनकी यह स्पष्ट धारणा थी कि इस धरती पर जन्मा हर प्राणी सदाचार की बुनियाद पर भगवत भजन संग, आनन्दमय अवस्था में रत होकर पुनीत हो सकता है। किसी भी कुल या जाति में जन्म लेने से या ऊंचा नाम रखने से कोई गुणवान या गुणहीन नहीं होता। परमात्मा किसी जाति, धर्म, कौम की निजी सम्पत्ति नहीं, ईश्वर का द्वार प्रत्येक मनुष्य के लिए खुला है। श्री गुरु रविदास जी महाराज ने कर्म मार्ग, ज्ञान मार्ग और प्रेम भक्ति मार्ग को पहल दी है। उन्होंने कर्मकांडी मायाजाल का खंडन किया है।

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उन्होंने नाम सिमरन करना, नेक कमाई करनी और बांट कर खाने का सत्मार्ग ही नहीं बताया बल्कि समस्त समाज को रूहानियत का मार्ग भी दिखाया। उनका पवित्र जीवन ही निर्गुण नाम रूपी भक्ति या सहज प्रेम भक्ति और नेक कमाई, शुद्ध व्यवहार का सर्वोत्तम संकल्प था। उनका दृष्टिकोण सर्वव्यापी और समूह कायनात के लिए था। वह पूरे समाज की भलाई के लिए, धर्म के ठेकेदारों की धार्मिक गुलामी से लोगों को मुक्त करवाना चाहते थे।

वह प्रत्येक मनुष्य को समानता का अधिकार देते थे। उनका संकल्प दयनीय जीवन को कर्मशील बनाना, विरासत में मिली जात-पात और वर्ण व्यवस्था से ऊपर उठ कर जीवन निर्वाह हेतु स्वाभिमान पैदा करने के लिए निरन्तर जोत जलाना था।

गुरु जी का सबके लिए मुख्य संदेश यही था कि मुख में राम, हाथ में काम। बहुत से खोजकर्ता विद्वानों के अनुसार गुरु जी ने दिल्ली, गुडग़ांव (हरियाणा), त्रिवेणी संगम, अयोध्या, गोदावरी, मथुरा, वृंदावन, भरतपुर, कोठा साहिब (जिला अमृतसर), खुरालगढ़ (जिला होशियारपुर) आदि स्थानों की यात्रा की, सत्संग किए और उपदेश दिए। भारत में श्री गुरु रविदास महाराज जी के कई यादगार स्थान हैं। बनारस से 10 किलोमीटर दूर काशी में छोटे से गांव सीर-गोवर्धन पुर में रविदास जी का बहुत ही सुंदर पांच मंजिला मन्दिर है। यहां हर वर्ष गुरु जी का जन्मदिन मनाया जाता है। देश और विदेश से बहुत से श्रद्धालु इस अवसर पर यहां नतमस्तक होने आते हैं। 

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