हिमाचल का अनोखा गांव जहां महिलाएं 5 दिनों तक रहती हैं निवस्त्र, जानिए वजह!

Edited By Updated: 15 Dec, 2025 12:58 PM

himachal pradesh unique traditions

हिमाचल प्रदेश की शांत और हरी-भरी वादियों में ऐसे कई गांव हैं जो अपनी सदियों पुरानी और अनूठी परंपराओं के लिए जाने जाते हैं।

Himachal Pradesh Unique Traditions: हिमाचल प्रदेश की शांत और हरी-भरी वादियों में ऐसे कई गांव हैं जो अपनी सदियों पुरानी और अनूठी परंपराओं के लिए जाने जाते हैं। ऐसा ही एक गांव है मणिकर्ण घाटी के पास स्थित पिनी वैली या मलाना के आस-पास का कोई दूरदराज का क्षेत्र। यहां एक ऐसी परंपरा का पालन किया जाता है, जिसके बारे में जानकर हर कोई हैरान रह जाता है। एक निश्चित अवधि के लिए गांव की महिलाएं वस्त्र धारण नहीं करती हैं। तो आइए जानते हैं इस गांव की अनोखी परंपरा के बारे में-

Himachal Pradesh Unique Traditions

परंपरा का समय और स्थान
यह विशिष्ट परंपरा हर वर्ष सावन के महीने में,आमतौर पर अगस्त या सितंबर के आस-पास पांच दिनों के लिए निभाई जाती है। इस अवधि के दौरान, गांव में एक प्रकार का 'संयम' और 'पवित्रता' का माहौल छा जाता है।

परंपरा के पीछे की मान्यता 
इस अनोखी प्रथा के पीछे एक गहरी पौराणिक और लोक-मान्यता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इन पांच दिनों में 'लाहुआ घोंड' पूरे गांव में वास करते हैं। देवता के आगमन के कारण यह पूरा क्षेत्र अत्यंत पवित्र हो जाता है। यह माना जाता है कि इन पांच दिनों के दौरान, कपड़े पहनने से महिलाएं अपवित्र हो सकती हैं या देवता का अपमान हो सकता है। वस्त्र न पहनना शुद्धि और त्याग का प्रतीक माना जाता है। इसे एक तरह से पापों से मुक्ति और देवी-देवताओं को प्रसन्न करने का अनुष्ठान माना जाता है।

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पांच दिनों का सख्त संयम
ये पांच दिन गांव के लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं और कुछ सख्त नियमों का पालन किया जाता है। महिलाएं इस अवधि में पूरी तरह से निर्वस्त्र रहती हैं, हालांकि वे स्वयं को कम्बल या शॉल जैसी चीज़ों से ढक कर रखती हैं ताकि बाहरी दुनिया से उनकी गोपनीयता बनी रहे। वे किसी को छूती नहीं हैं और पुरुषों से दूर रहती हैं। इन पांच दिनों में पुरुषों को भी कई प्रतिबंधों का पालन करना पड़ता है। पुरुषों को अपनी पत्नी से दूर रहना होता है और वे किसी भी प्रकार का मांसाहार या शराब का सेवन नहीं कर सकते। उन्हें हल्के वस्त्र ही धारण करने होते हैं। इस अवधि में पूरे गांव में खुशी मनाना, हंसना या किसी भी प्रकार का विनोद करना वर्जित होता है। पूरा गांव एक गंभीर और धार्मिक वातावरण में डूबा रहता है।

आधुनिकता और परंपरा का संघर्ष
यह परंपरा आज भी इस गांव की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा है पर आधुनिक समाज और बाहरी दुनिया के बढ़ते संपर्क के कारण इस प्रथा का पालन कुछ हद तक प्रभावित हुआ है। कुछ गांवों में महिलाएं अब पूर्ण रूप से निर्वस्त्र न रहकर, बहुत हल्के और न्यूनतम वस्त्र पहनकर इस परंपरा का पालन करती हैं, ताकि उनकी गोपनीयता भंग न हो और वे धार्मिक नियमों का पालन भी कर सकें।

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