How to Be Happy: आप भी रहते हैं रिश्तेदारों के तानों से परेशान, ‘सुखी’ रहना है तो पढ़ें ये कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Jan, 2024 12:38 PM

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भूतकाल की बातों एवं भविष्य की चिंता से वर्तमान खराब न करें। अगर हम ये दोनों ही तरह के भार अपने मस्तिष्क से उतार दें तो हम हल्के हो जाएंगे, फिर चाहे हम महल में रहें या झोंपड़े में।

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How to Be Happy: भूतकाल की बातों एवं भविष्य की चिंता से वर्तमान खराब न करें। अगर हम ये दोनों ही तरह के भार अपने मस्तिष्क से उतार दें तो हम हल्के हो जाएंगे, फिर चाहे हम महल में रहें या झोंपड़े में। एक बहुत बड़े त्यागी, संन्यासी संत थे। उनके पास बहुत से लोग अपनी परेशानियां लेकर जाते थे और वह पलभर में उनकी सारी परेशानियां दूर कर देते थे। उनके पास हर प्रश्र का उत्तर था। कई लोग तन की बीमारियों को लेकर भी उनके पास जाते थे तो वे मना करते थे कि मैं मन की बीमारियां ठीक करता हूं, तन की नहीं। मैं मन का चिकित्सक हूं, तन का नहीं।

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एक दिन उनके पास एक व्यक्ति आया और बोला कि गुरुजी दुनिया की कोई भी ऐसी चीज नहीं जो मेरे पास नहीं हो, मैं भौतिक सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण हूं। मेरे पास सब कुछ है, घर में बच्चे, पत्नी नौकर-चाकर। अगर ऐसी एक भी चीज जो मैं सोचूं-विचारूं जो मेरे पास नहीं है, तो शायद मैं सोच भी नहीं पाऊंगा, फिर भी मैं दुखी रहता हूं। तकलीफ में रहता हूं ?

आप श्री के पास कुछ भी नहीं है, झोंपड़ा है, वह भी टूटा-फूटा, न धन, न कपड़े पूर्ण हैं, भोजन के लिए आप घर-घर जाकर भिक्षा मांगते हो। मेरे पास जो कुछ भी है उसका आपके पास अंश भर भी नहीं है, फिर भी आप बहुत सुखी और मेरे पास सब कुछ होते हुए भी मैं बहुत दुखी हूं, इसका क्या कारण है ?

तब गुरुजी बोले कि चलो जंगल की ओर चलते हैं। जंगल में थोड़ी दूर जाते ही गुरु जी नदी के किनारे से एक भारी-भरकम पत्थर उसके हाथों में थमा देते हैं और बोले की इस पत्थर को साथ लेकर चलो। वह जंगल के उबड़-खाबड़ रास्ते पर कुछ दूर पत्थर को साथ लेकर चलता है। कुछ दूर और चलते हुए वह व्यक्ति अब थक जाता है, परंतु पत्थर को नीचे नहीं रख सकता था क्योंकि गुरुजी की आज्ञा का पालन करता है। उन्होंने कहा कि पत्थर को साथ लेकर चलना है।

बहुत तकलीफों के साथ वह चलता रहा, एक समय ऐसा आया कि वह उस भार को तो क्या, स्वयं उठ कर एक कदम भी चलने की स्थिति में नहीं था। वह चिंतित एवं दुखी होकर अब गुरु जी से बोल पड़ा- गुरु जी, इससे आगे और मैं नहीं चल पाऊंगा। क्षमा करें मैं आपके आदेश का पालन नहीं कर पा रहा हूं, मैं आगे इस भार को लेकर नहीं चल पाऊंगा। मेरी जान निकली जा रही है।

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गुरुजी बोले, बस... अरे पगले तू पहले ही कह देता की इस भार को लेकर मैं नहीं चल पा रहा हूं। फिर बोले... नीचे रख पत्थर को और जैसे ही पत्थर को नीचे रखा तो उसकी सांस में सांस आई। उसका दुख सुख में तब्दील हो गया।

गुरु जी बोले- मैंने तेरे प्रश्न का उत्तर दे दिया है... तू समझा नहीं। तब वह आश्चर्यचकित होकर बोला-  गुरुजी, आपने मेरे प्रश्न का उत्तर कहां दिया है, मैं तो समझा नहीं...।

गुरुजी बोले, जब तुमने पत्थर को उठाया तब तुम्हें इतना दर्द नहीं हुआ लेकिन कुछ ही क्षणों के बाद तुम्हें दर्द महसूस होना शुरू हुआ। कुछ ज्यादा दूरी तक तू पत्थर को उठा कर चला तो बहुत ज्यादा दर्द हुआ और अब तुम्हारी स्थिति ऐसी है कि तुम पत्थर को लेकर चल तो क्या उठा ही नहीं सकते। यह सत्य है न ?

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तब वह व्यक्ति बोला- हां गुरु जी यह सत्य है, परंतु आप क्या कहना चाहते हैं, समझा नहीं।

गुरु जी बोले- तुम भी यही कर रहे हो, छोटी-छोटी बातों को अपने दिमाग में रखते हो। भूतकाल में जो तेरे साथ अच्छा-बुरा हुआ, उसे बार-बार दिमाग में रख अंदर ही अंदर स्वयं भार लेकर खुद का नाश कर रहे हो। परिवार वालों, संगे-संबंधियों, दोस्तों ने जो बोला उसे विचार कर मन में रख कर बार-बार याद कर सोचता है, तो वह क्या है... ये सब भार ही है जो तुम अपने दिमाग में रखे हुए हो इसलिए तुम भारी होकर जीवन जी रहे हो। इस भार को नीचे रख दो तो शायद जैसे मैं सुखी हूं, तुम भी वैसे ही सुखी हो जाओगे।  

 

 


 

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