3 गुणों के बल पर चलता है संसार

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Apr, 2018 12:29 PM

inspirational context

यह सारा संसार पांच तत्वों से बना है और इन पांच तत्वों के तीन गुण हैं- सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। किसी अमुक समय पर इन गुणों में से किसी एक गुण की हमारे जीवन और वातावरण में प्रधानता रहती है। यही तीन गुण हमारी चेतना की तीन अवस्थाओं- जागृत अवस्था,...

यह सारा संसार पांच तत्वों से बना है और इन पांच तत्वों के तीन गुण हैं- सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। किसी अमुक समय पर इन गुणों में से किसी एक गुण की हमारे जीवन और वातावरण में प्रधानता रहती है। यही तीन गुण हमारी चेतना की तीन अवस्थाओं- जागृत अवस्था, सुप्तावस्था और स्वप्नावस्था से भी संबंधित हैं। जब सतोगुण की हमारे शरीर और वातावरण में प्रधानता होती है तो हम प्रफुल्लित, हल्के-फुल्के, अधिक सजग व बोधपूर्ण होते हैं। रजोगुण की प्रधानता में उत्तेजना, विचार, इच्छाएं और वासनाएं बहुत बढ़ जाती हैं। बहुत कुछ करने की इच्छा होती है। हम या तो बहुत खुश या बहुत उदास होते रहते हैं। यह सब रजोगुण के लक्षण हैं। जब तमोगुण प्रधान होता है तो हम सुस्ती, आलस्य और भ्रम के शिकार हो जाते हैं। कुछ का कुछ अर्थ लगाने लगते हैं।


इसी भांति हमारे भोजन में यही तीन गुण विद्यमान रहते हैं और हमारा मन भी इन तीन गुणों से प्रभावित होता है। हमारे कृत्यों में भी इन्हीं त्रिगुणों की झलक देखने को मिलती है। जब सत्य की हमारे जीवन में प्रधानता होती है, तो रजोगुण और तमोगुण गौण हो जाते हैं, उनका प्रभाव कम रह जाता है और रजोगुण की अधिकता में सत्व और तमस गौण हो जाते हैं व तमोगुण के प्रधान होने पर सत्व और रजस पीछे रह जाते हैं, उनका प्रभाव कम हो जाता है। इन्हीं तीन गुणों के बल पर यह संसार और जीवन चलता है।


पशु भी इसी प्रकृति से संचालित होते हैं परंतु उनमें कोई असंतुलन नहीं होता। न तो वे आवश्यकता से अधिक खाते हैं, न ही अधिक काम करते हैं और न ही अधिक काम वासना में उतरते हैं। उनमें कुछ भी कम या अधिक करने की स्वतंत्रता ही नहीं होती।
मनुष्य कुछ भी करने को स्वतंत्र है। अच्छा या बुरा, कम या अधिक, क्योंकि स्वतंत्रता के साथ ही उसको विवेक शक्ति भी प्राप्त है। स्वतंत्रता और विवेक दोनों ही उसके पास हैं। हम अधिक खाकर बीमार होने को भी स्वतंत्र हैं और ऐसे ही अधिक सो कर सुस्त और आलसी भी हो सकते हैं। हम किसी भी कार्य में आसक्त होकर या उसमें अति करके समस्याओं और बीमारियों को निमंत्रित कर सकते हैं।


अब इन तीन गुणों में संतुलन कैसे रखा जाए? यह हम साधना, ध्यान और मौन के द्वारा कर सकते हैं। इन सबसे हम अपने में सत्वगुण बढ़ा सकते हैं। सामान्यत: व्यक्ति नींद में स्वप्न तो देखता ही है, जागृत अवस्था में भी दिन में सपने देखता रहता है।


अधिकतर तो हमारा मन भूतकाल व भविष्य के सोच-विचार में उलझा रहता है। जीवन में प्रखर चेतना और सजगता का अनुभव प्राय: व्यक्ति कभी कभार ही कर पाता है। ऐसे सात्विक क्षण बहुत दुर्लभ होते हैं। अत: हम जीवन में प्रसन्नता और प्रफुल्लता को भी कम ही अनुभव कर पाते हैं।


मनुष्य में सभी प्रकार के जीव-जंतुओं का सम्मिश्रण है। (इसलिए मनुष्य कभी शेर की तरह गरजता है और कभी गुर्राता है।) यदि हम मिल कर भजन-कीर्तन में डूबते हैं तो हम पक्षियों की भांति हल्के-फुल्के हो जाते हैं और हमारी चेतना ऊपर की ओर बढ़ने लगती है और इस तरह हमारे जीवन में सत्व का और अधिक समावेश होता है। अब इन तीन गुणों की चर्चा भोजन के संदर्भ में- ठीक मात्रा में आवश्यकतानुसार भोजन करना, भोजन जो सुपाच्य हो, ताजा हो और कम मिर्च-मसाले वाला हो, ऐसा भोजन सात्विक भोजन है और सात्विक प्रवृत्ति वाले लोग ऐसा भोजन पसंद करते हैं। राजसिक प्रवृत्ति के लोग अधिक तीखा, मिर्च-मसाले वाला, तेज नमकीन या अधिक मीठा भोजन पसंद करते हैं। बासी, पुराना पका हुआ और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भोजन तामसिक प्रवृत्ति के लोग पसंद करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 6-7 घंटे पहले का पका हुआ भोजन तामसिक होता है। इस प्रकार भोजन के भी तीन प्रकार के गुण होते हैं।

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!