‘जंतर-मंतर’ : दुनिया की सबसे बड़ी ‘धूप घड़ी’

Edited By Jyoti,Updated: 09 Aug, 2022 03:50 PM

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राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित जंतर-मंतर एक ऐतिहासिक स्मारक है। 1724 से 1734 के बीच निर्मित यह एक खगोलीय वेधशाला है। यह यूनेस्को की ‘विश्व धरोहर सूची’ में भी शामिल है। इसमें 14 प्रमुख यन्त्र हैं जो समय मापने, ग्रहण की भविष्यवाणी

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राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित जंतर-मंतर एक ऐतिहासिक स्मारक है। 1724 से 1734 के बीच निर्मित यह एक खगोलीय वेधशाला है। यह यूनेस्को की ‘विश्व धरोहर सूची’ में भी शामिल है। इसमें 14 प्रमुख यन्त्र हैं जो समय मापने, ग्रहण की भविष्यवाणी करने, किसी तारे की गति एवं स्थिति, सौर मण्डल के ग्रहों आदि के बारे में जानने में सहायक हैं। इनमें विश्व की सबसे बड़ी पत्थर की सूर्य घड़ी या धूप घड़ी है, जिसका नाम वृहद सम्राट यंत्र है। इस खगोलीय उपकरण को इस तरह बनाया गया है कि इसकी रचना करीब 27 मीटर ऊंची है। इन यन्त्रों को देखने से पता चलता है कि प्राचीन काल से ही भारतीयों को गणित एवं खगोलिकी की जटिल संकल्पनाओं (कांसैप्ट्स) का इतना गहन ज्ञान था कि वे इन को एक ‘शैक्षणिक वेधशाला’ का रूप दे सके ताकि कोई भी उन्हें जाने और उनका आनन्द ले सके।
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इतिहास
सिटी पैलेस के पास स्थित जंतर-मंतर का निर्माण जयपुर के संस्थापक एवं खगोलशास्त्री महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा अंतरिक्ष और समय की सही जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से कराया गया था। इसकी स्थापना से पहले सवाई जयसिंह ने विश्व के अलग-अलग देशों में से खगोल विज्ञान के प्रमुख एवं महत्वपूर्ण ग्रंथों की पांडुलिपियां एकत्र कर अध्ययन किया था। जिसके बाद उस दौर के प्रसिद्ध एवं प्रख्यात खगोलशास्त्रियों की मदद से महाराजा ने जयपुर के अलावा दिल्ली, बनारस, उज्जैन और मथुरा में 5 वेधशालाओं का निर्माण हिन्दू खगोलशास्त्र के आधार पर करवाया था। जयपुर वेधशाला का निर्माण कार्य 1724 ई. में शुरू किया गया और 10 साल बाद 1734 ईस्वी में यह बन कर तैयार हुआ। उनके द्वारा निर्मित 5 वेधशालाओं में से आज केवल दिल्ली और जयपुर के जंतर-मंतर ही शेष बचे हैं, बाकी पुराने खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। 
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आज भी होता है इस्तेमाल
यह वास्तु खगोलीय उपकरणों का अद्भुत संग्रह है, जिसका इस्तेमाल वर्तमान में भी गणना और शिक्षण के लिए किया जाता है। इसके अलावा इस खगोलीय वेधशाला का इस्तेमाल निरीक्षण करने समेत सूर्य के चारों ओर ग्रहों की कक्षाओं का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है। वेधशाला करीब 18,700 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली हुई है। इसके निर्माण में बेहद अच्छी गुणवत्ता वाले संगमरमर के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। यह अपनी अद्भुत संरचना की वजह से भी विख्यात है। यहां रखा राम यंत्र आकाशीय ऊंचाई मापने का प्रमुख यंत्र है, वहीं सम्राट यंत्र स्थानीय समय को 2 सेकंड की सटीकता तक माप सकता है। यहां पर इसके अलावा उन्नातांश यंत्र, दिशा यन्त्र, नाड़ीवलय यंत्र, जय प्रकाश यन्त्र, लघुसम्राट यंत्र, पाषांश यंत्र, शशि वलय यंत्र, चक्र यंत्र, दिगंश यंत्र, ध्रुवदर्शक पट्टिका, दक्षिणोदक यंत्र, जयप्रकाश यंत्र भी मौजूद हैं।
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खास बातें
इसका नाम जंतर-मंतर संस्कृत के शब्द ‘जंत्र मंत्र’ से लिया गया है, जिसका मतलब है ‘उपकरण’ और ‘गणना’ जिसके अनुसार जंतर-मंतर का अर्थ है ‘गणना करने वाला उपकरण’। जयपुर का जंतर-मंतर भारत की सबसे विशाल प्राचीन खगोलीय वेधशाला है। इसे दिल्ली की वेधशाला के आधार पर बनाया गया है।
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