Jayaprakash narayan Jayanti: जयप्रकाश नारायण कैसे बने लोक नायक, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Oct, 2023 06:35 AM

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राजनीतिज्ञ, सिद्धांतवादी, त्याग एवं बलिदान की प्रतिमूर्ति और मातृभूमि के पुत्र जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्तूबर, 1902 को बिहार के बलिया जिला के सिताबदियारा

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Jayaprakash narayan Jayanti: राजनीतिज्ञ, सिद्धांतवादी, त्याग एवं बलिदान की प्रतिमूर्ति और मातृभूमि के पुत्र जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्तूबर, 1902 को बिहार के बलिया जिला के सिताबदियारा गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम देवकी बाबू और माता का नाम फूलरानी देवी था।  6 वर्ष के होने पर पढ़ने के लिए स्कूल भेजा। पढ़ाई में तेज-तर्रार और बुद्धिमान होने के कारण 1919 में हायर सेकेंडरी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। 1920 में इनका विवाह प्रभावती नामक स्वभाव से अत्यन्त मृदुल लड़की से हुआ। जयप्रकाश नारायण एक निष्ठावान राष्ट्रवादी थे और सिर्फ खादी पहनते थे। इन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के विरोध में ब्रिटिश शैली के स्कूलों को छोड़कर बिहार विद्यापीठ से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की, जिसे प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और गांधीवादी डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा, द्वारा स्थापित किया गया था। इन्होंने समाजशास्त्र में एम.ए. की।

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1922 में अपनी पत्नी प्रभावती को महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में छोड़कर कैलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए रवाना हुए। अमरीका में उच्च शिक्षा के खर्चों के लिए खेतों, बूचडख़ानों, कारखानों व खदानों आदि में छोटे-मोटे कार्य किए। इस दौरान इन्हें श्रमिक वर्ग की कठिनाइयों की करीबी जानकारी मिली। अमेरिका से वापस आकर 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने पर 1932 में इन्हें जेल में बंद कर दिया गया, जहां राम मनोहर लोहिया, अशोक मेहता,  मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन, सी.के. नारायणस्वामी और अन्य नेताओं के साथ संपर्क बने। उन दिनों सभी नेता मानते थे कि संघर्ष तभी सफल होगा, जब हम समाजवाद की राह का अनुसरण करेंगे क्योकि कोई भी आंदोलन बिना मध्यमवर्गीय लोगों के सहयोग के सफल नहीं होता। भविष्य में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ तो इन्हें महासचिव बनाया गया।

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जयप्रकाश विलक्षण प्रतिभा से युक्त थे। उनकी बातों का भारतीय जनमानस पर अच्छा प्रभाव था। आजीवन मन से वह देश की सेवा करते रहे। उनके नेतृत्व में विभिन्न आंदोलन हुए। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इनके अन्य उत्कृष्ट गुण सामने आए। इन्हें भारत रक्षा नियम, जो एक सुरक्षात्मक कारावास कानून था और जिसमें कोई सुनवाई नहीं थी, के तहत गिर तार कर लिया गया। इन्हें हजारीबाग सेंट्रल जेल में रखा गया, जहां से नवंबर 1942 की दीवाली के दिन भागने में सफल रहे। इस साहस ने इन्हें ‘लोक नायक’ बना दिया।

1974 में जब लोग बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और महंगाई से पीड़ित थे, तो इन्होंने पटना के गांधी मैदान में एक जनसभा से शांतिपूर्ण ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया। छात्रों से एक साल के लिए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को बंद कर वह समय राष्ट्र के पुननिर्माण के लिए समर्पित करने को कहा, जिससे यह लोकप्रिय ‘जेपी’ हो गए। 1975 में निचली अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने उनके इस्तीफे की मांग की। इसके बदले में इंदिरा ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और सभी विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। 5 महीने बाद जयप्रकाश गिरफ्तार किए गए। भ्रष्टाचार के खिलाफ जेपी आंदोलन व्यापक हो गया और इसमें जनसंघ, समाजवादी, कांग्रेस तथा भारतीय लोकदल जैसी कई पार्टियां कांग्रेस सरकार को गिराने एवं नागरिक स्वतंत्रताओं की बहाली के लिए एकत्र हो गई।

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इस प्रकार जयप्रकाश ने गैर-साम्यवादी विपक्षी पार्टियों को एकजुट कर जनता पार्टी का गठन किया, जिसने 1977 के आम चुनाव में भारी सफलता प्राप्त करके आजादी के बाद की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई। जयप्रकाश ने स्वयं राजनीतिक पद से दूर रहकर मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री मनोनीत किया। श्रद्धांजलि के तौर पर इस आधुनिक क्रांतिकारी को भारत सरकार ने 1999 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। भारत का यह सपूत 8 अक्टूबर, 1979 को पटना, बिहार में चिर निन्द्रा में सो गया।  
 

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