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हर साल यहां परंपरागत तौर पर किया जाता है कंस का वध

Edited By Jyoti,Updated: 27 Sep, 2019 03:59 PM

kansa slaughter is done traditionally here every year in narsinghpur

नरसिंहपुर जिले के मुड़िया गांव में अन्याय व अत्याचार पर जीत के प्रतीक कंस वधोत्सव की 200 साल पुरानी परंपरा आज निभाई जा रही है। बता दें कंस वध की यह परंपरा लगभग 200 सालों से ऐसे ही चली आ रही है।

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नरसिंहपुर जिले के मुड़िया गांव में अन्याय व अत्याचार पर जीत के प्रतीक कंस वधोत्सव की 200 साल पुरानी परंपरा आज निभाई जा रही है। बता दें कंस वध की यह परंपरा लगभग 200 सालों से ऐसे ही चली आ रही है। कंस का वध बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। मुड़िया गांव में इस परपंरा को सदियों से निभाया जा रहा है. दरअसल ग्रामीणों के मुताबिक 200 साल पहले यहां प्लेग की महामारी फैली। जिसके बाद भगवान कृष्ण ने कुशवाहा परिवार को स्वप्न देकर हर घर से मिट्टी लाकर गांव के बाहर कंस की प्रतिमा बनाकर उसका सांकेतिक वध करने को कहा। माना जाता है तभी से यहां ये परंपरा चली आ रही है। बल्कि यहां के ग्रामीणों का कहना है इसके बाद आज तक गांव में किसी की आकाल मौत नहीं हुई।

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कुछ ऐसा होता है कंस के वध का नज़ारा
बता दें यहां इस दौरान इस घटना से जुड़े पात्रों की झांकियां बनती हैं। आमने सामने दो सेनाएं होती हैं, एक तरफ कंस की सेना तो दूसरी तरफ भगवान श्री कृष्ण की सेना। पूरे स्टेडियम में युद्ध का माहौल देखने को मिलता है। अपने रथ पर सवार होकर श्री कृष्ण अग्रसर होते हैं तो राक्षस भी अलग-अलग वेषभूषा में युद्ध लड़के को तैयार होते हैं। बताया जाता है आस पास के गांव के लोग चारों तरफ़ से युद्ध का लाइव नाज़ारा देखने के लिए आते हैं।

यहां जानें युद्ध के कुछ नियम
यहां के लोगों द्वारा बताए अनुसार गांव वालों अपने-अपने खेतों और घरों से मिट्टी लेकर गांव के बाहर कंस की एक मूर्ती बनाते हैं और जिसके मुकुट के ऊपर लगा से सफ़ेद फूल लगा होता है, जिसे कलगी कहते हैं। जिसे श्री कृष्ण को आकर कृष्ण को आकर निकालना होता है। इसे मुकुट को निकालना ही कंस का सांकेतिक वध माना जाता है। राक्षसों की सेना द्वारा भगवान श्री कृष्ण को रोकने का प्रयास किया जाता है। जिसके बाद दोनों सेनाओं के बीच जमकर युद्ध होता है। देसी अंदाज़ में पूरे युद्ध की लाइव कामेंट्री चलती है। इन दोनों सेनाओं में ज्यादातर बच्चे ही शामिल होते है। 4 से पांच घंटे यहां ऐसा ही नज़ारा होता है जिसका आस पास के गांव के लोग जमकर आनंद उठाते हैं।

जैसे कि आप जानते हैं आखिर में श्री कृष्ण की जीत होती है। जिसके बाद जश्न शुरू हो जाता है। इस गांव के निवासियों का कहना है कि लगभग 300 साल पहले जब गांव में महामारी फैली तो भगवान ने सपने में आकर कहा की बिमारी और बुराई के अंत के किए गांव के प्रत्येक घर से कच्ची मिट्टी लाकर कंस की मूर्ति बनाएं और उसका वध करें जिससे तुम्हारे सारे कष्ट दूर हों। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।

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परंपरा के अनुसार एक गांव से भगवान का वाहन आता है। दूसरे गांव में कंस और उसके दानव का युद्ध में वध किया जाता है। यह वध प्रतिकमात्मक होता है जहां पहले कंस की सेना और कृष्ण की सेना के बीच युद्ध होता है। बांस के लंबे टुकड़े से एक दूसरे पर वार करते हैं और अंत में भगवान श्री कृष्ण द्वारा कंस की मुकुटी पर कांस की लगी कलगी हो उखाड़ लेने को ही वध माना जाता है। क्योंकि कांस का पौधा पूरी फसल को बर्बाद कर देता है इसलिए उसे ही बुराई का प्रतीक माना जाता है।

आयोजनकर्ता और गांव सरपंच के मुताबिक मुड़िया गांव के कंस के वध के साथ बुराई को मिटाने का संकल्प लेकर ग्रामीण पुरानी परंपरा का निर्वहन भी कर रहे हैं और साथ ही सामाजिक बुराई जैसे नशा, गंदगी, खुले में शौच को बंद करने की भी शपथ ले रहे हैं। इस लोक परंपरा के माध्यम सामाजिक बुराइयां जैसे नशाखोरी, खुले में शौच जैसी बुराईयों से निपटने का भी संदेश दिया जाता है।

 

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