Kartik Purnima Katha: भगवान शिव और विष्णु दोनों होंगे प्रसन्न, कार्तिक पूर्णिमा पर पढ़ें ये पवित्र व्रत कथा

Edited By Updated: 05 Nov, 2025 05:00 AM

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Kartik Purnima Katha: यह कथा उस समय की है, जब भगवान कार्तिकेय ने शक्तिशाली असुर तारकासुर का वध किया। अपने पिता की मृत्यु से क्रोधित होकर, तारकासुर के तीन पुत्रों - तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने देवताओं से प्रतिशोध लेने का निश्चय किया। तीनों...

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Kartik Purnima Katha: यह कथा उस समय की है, जब भगवान कार्तिकेय ने शक्तिशाली असुर तारकासुर का वध किया। अपने पिता की मृत्यु से क्रोधित होकर, तारकासुर के तीन पुत्रों - तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने देवताओं से प्रतिशोध लेने का निश्चय किया। तीनों भाइयों ने कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया और हज़ारों वर्षों तक घोर तप किया। उनकी इस तपस्या से सृष्टि के रचयिता, ब्रह्मा जी, अत्यंत प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। असुरों ने अमरता का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्मा जी ने बताया कि यह संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि वे एक ऐसी शर्त रख सकते हैं, जिसके पूरी होने पर ही उनकी मृत्यु हो सकती है।

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इस पर तीनों असुरों ने बहुत विचार किया और एक अत्यंत जटिल वरदान माँगा: "हे प्रभु! आप हमारे लिए तीन अलग-अलग तारों पर तीन भव्य नगरों का निर्माण करें। हमारी मृत्यु केवल तभी हो, जब ये तीनों नगर अभिजित नक्षत्र में एक सीधी रेखा में आ जाएँ, और उसी क्षण कोई अत्यंत शांत अवस्था में स्थित व्यक्ति, एक असंभव रथ और बाण का उपयोग करके हमें मारे। ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहकर उनकी इच्छा पूरी की।

त्रिपुरों का निर्माण और आतंक
वरदान मिलते ही, ब्रह्मा जी ने विश्वकर्मा जी को आदेश दिया, जिन्होंने तीनों असुरों के लिए तीन नगरों का निर्माण किया। 
तारकाक्ष के लिए: स्वर्ण पुरी (सोने का नगर)
कमलाक्ष के लिए: रजत पुरी (चाँदी का नगर)
विद्युन्माली के लिए: लौह पुरी (लोहे का नगर)

इन तीनों नगरों के स्वामी होने के कारण, ये तीनों असुर त्रिपुरासुर कहलाए। वरदान से उत्साहित होकर, त्रिपुरासुर ने तीनों लोकों में भयंकर आतंक फैलाना शुरू कर दिया। उन्होंने ऋषि-मुनियों को सताया और देवताओं को स्वर्गलोक से भी बाहर निकाल दिया।

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हादेव की शरण में देवता
त्रिपुरासुर के अत्याचार से त्रस्त होकर, सभी देवताओं ने मिलकर उन्हें पराजित करने का प्रयास किया, पर वे सफल नहीं हुए। अंत में, निराश होकर सभी देवता कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की शरण में पहुँचे और उन्हें अपनी दुर्दशा सुनाई। भगवान शिव ने पहले देवताओं को अपना आधा बल देकर प्रयास करने को कहा, लेकिन देवता उस प्रचंड शक्ति को सहन नहीं कर पाए। तब महादेव ने स्वयं त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लिया।

संभव रथ का निर्माण
त्रिपुरासुर को मारने के लिए उन्हें वरदान में बताए गए 'असंभव रथ और बाण' की आवश्यकता थी। देवताओं ने मिलकर ऐसे दिव्य रथ का निर्माण किया। 

रथ: स्वयं पृथ्वी को रथ बनाया गया।
पहिए: सूर्य और चंद्रमा को पहिए बनाया गया।
सारथी: स्वयं सृष्टा ब्रह्मा जी सारथी बने।
धनुष: मेरु पर्वत को धनुष बनाया गया।
धनुष की डोर: वासुकी नाग बने।
बाण: भगवान विष्णु बाण बने।
सभी देवताओं ने अपनी शक्ति लगाकर इस रथ को संभाला।

त्रिपुरासुर का अंत
जब भगवान शिव इस विशाल रथ पर सवार हुए, तो उनकी असीम शक्ति के कारण रथ डगमगाने लगा। तब भगवान विष्णु एक वृषभ का रूप धारण कर रथ में जुड़ गए, जिससे रथ स्थिर हो गया। रथ पर सवार होकर, महादेव ने अपने धनुष पर भगवान विष्णु रूपी बाण और पाशुपत अस्त्र का संधान किया। उन्होंने अपनी शक्ति से तीनों नगरों को आदेश दिया कि वे एक पंक्ति में आ जाएं। जैसे ही तीनों नगर अभिजित नक्षत्र में एक सीधी रेखा में आए, भगवान शिव ने बिना किसी प्रयास या हलचल के, अत्यंत शांत अवस्था में, अपना बाण छोड़ दिया। बाण के प्रचंड वेग और पाशुपत अस्त्र की शक्ति से तीनों नगर जलकर भस्म हो गए, और तीनों असुरों का अंत हो गया। ह अद्भुत संहार कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसी विजय के कारण भगवान शिव को त्रिपुरांतक (नाम से जाना गया। देवताओं ने इस विजय पर दीये जलाकर खुशियां मनाई, जिसे देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है। 

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